गांधी की प्रासंगिकता
डॉ. भाईराम शर्मा
बीसवीं शताब्दी में जन-मानस को आंदोलित एवं प्रभावित करने वाले एक महान व्यक्तित्व के रूप में भारतवर्ष में महात्मा गांधी का आविर्भाव हुआ था। बहुत से लोग कहते हैं कि गांधी बहुत पुराने, दकियानूसी विचारों के थे और भारत को पुरातन काल में ले जाना चाहते थे, लेकिन गांधी भूतकाल के नहीं, भविष्य के मसीहा थे। वे उन्नीसवीं सदी की नहीं, इक्कीसवीं सदी की बातें कर रहे थे। उनकी बातें हम आत्मसात नहीं कर सके इसलिए हमने उसकी हत्या कर दी। कुछ समय पूर्व फ्रांसीसी दार्शनिक रोम्यां रोला ने कहा था-कुछ अर्थों में तो गांधीजी आज के विज्ञान से भी आगे बढ़ गये थे, भविष्य की समस्याओं को उन्होंने भांप लिया था। इस अर्थ में वे एक अत्याधुनिक व्यक्ति थे। गांधी जी के विचार कभी पुराने नहीं पड़ेंगे, वे सदैव हमें भविष्य का रास्ता खोजने में सहायक सिद्ध होंगे।
गांधी जी की महानता इस बात में है कि उनके विचारों की महत्ता आज भी बनी हुई है। उनके विचार उनके जीवनकाल में जितने महत्वपूर्ण थे, उतने ही महत्वपूर्ण आज के लिए भी हैं और आने वाले दशकों के लिए भी उनका महत्व बना रहेगा। वास्तव में गांधी कोई व्यक्ति न होकर अभिव्यक्ति या अनुभूति हैं। गांधी की मृत्यु के पश्चात देश ने ज्यों-ज्यों कदम आगे बढ़ाये हैं उन्हें विस्मृत करने की पूर्ण चेष्टा की गयी, लेकिन वास्तविकता यह है कि गांधी रह-रह कर स्मरण ही नहीं आते रहे हैं, अपितु अनिवार्य भी प्रतीत होते रहे हैं। भले ही गांधी नहीं रहे, लेकिन उनका विचार अमर हो गया। विद्वानों को उनके दर्शन में ही विश्व शान्ति और प्रगति के अंकुर दृष्टिगोचर हुए। जिन देशों ने गांधी के विचार को जितना अपनाया, उन्होंने उसका फल पाया। भारत में इस विचारधारा की व्यावहारिकता एवं सफ लता पर संदेह प्रकट कर इसे विशेष प्रोत्साहन नहीं दिया गया। भारतीयों ने गांधी को एक राजनैतिक नेता के स्थान पर महात्मा और आध्यात्मिक शक्ति के नायक के रूप में ग्रहण किया। गांधीवाद का उपदेश देश के साधनहीन, सर्वसाधारण के लिए ही उपयोगी समझा जाता रहा। फलतः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात केवल देश के शासक बदले, गांधी की क्रांति कहीं नहीं हुई। शासन दरिद्रनारायण के हाथों में न आकर पूंजीपतियों के हाथों में आ गया। स्वतंत्र भारत से गांधीजी ने क्या आशा रखी थी और उससे उनकी क्या अपेक्षा थी, वह बात विस्मृति के गाल में चली गई।
गांधी की दूरदृष्टि बड़ी सूक्ष्म एवं प्रबल थी। उन्होंने सामाजिक, नैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किया था, परंतु दुर्भाग्य से सत्ता की लोलुपता में पड़ कर नेताओं ने इस कार्यक्रम को तिलांजलि दी और यंत्रीकरण, औद्योगीकरण आदि नूतन कार्यक्रमों पर अमल किया। परिणामतरू देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक अवस्था में वैसी प्रगति नहीं हो सकी, जैसी होनी चाहिए थी। कांग्रेस ने अपने शासनकाल में गांधीजी को एक आध्यात्मिक गुरु मानकर उनको कोरी श्रद्धांजलि देना ही अपना कर्तव्य समझा। गांधी जी का मत था कि भारत को पश्चिम जैसा औद्योगीकरण करने की जरूरत नहीं है। पश्चिमी सभ्यता शहरी सभ्यता है। इंग्लैंड और इटली जैसे छोटे देश अपनी व्यवस्थाओं का शहरीकरण कर सकते हैं। अमेरिका बड़ा देश है, किन्तु उसकी आबादी बहुत विरल है इसलिए उसे भी संभवतः वैसा ही करना पड़ेगा, परंतु भारत जैसे बड़े देश को, जिसकी जनसंख्या बहुत अधिक है और जहां ग्राम जीवन की परम्परा है, उसको पश्चिमी नमूने की नकल करने की कोई जरूरत नहीं है। इस सम्बंध में गांधी जी ने लिखा है कि मैं नहीं मानता कि औद्योगीकरण हर हालत में किसी भी देश के लिए जरूरी है ही, भारत के लिए तो वह सबसे कम जरूरी है। मेरा विश्वास है कि आजाद भारत दुख से कराहती हुई दुनिया के प्रति अपने कर्तव्य का ऋ ण अपने गांवों का विकास करके, दुनिया के साथ मित्रता का व्यवहार करके और इस तरह सादा जीवन अपना कर ही चुका सकता है। इसी विचारधारा के अनुसार गांधीजी ने राष्ट्रीय नेताओं से गांवों के पंचायती राज और ग्राम-स्वराज्य के सही अर्थ में भारत को स्वतंत्रता के मार्ग पर ले चलने का आह्वान किया था। वस्तुतरू गांधीजी औद्योगीकरण और यंत्रीकरण के भी पूर्णतरू विरुद्ध नहीं थे, परंतु उनका मत था कि पहले लोगों में बौद्धिक विकास होना चाहिए। अहिंसक समाज की स्थापना हो जाय तब यदि आवश्यकता अनुभव होगी तो औद्योगीकरण को भी ग्रहण किया जा सकता है। उन्होंने तो प्रमुख उद्योगों के लिए मशीनों के प्रयोग की भी इस शर्त पर अनुमति दे दी थी कि उस पर स्वामित्व राज्य का होना चाहिए। साम्यवाद के मसीहा कार्ल मार्क्स ने सर्वहारा वर्ग को खेत-खलिहान और कल-कारखानों के स्वामित्व का स्वप्न दिया था, तो महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज्य के माध्यम से पूर्ण प्रजातंत्र और समाज के अंतिम-से-अंतिम, पिछड़े व्यक्ति की उन्नति का स्वप्न दिया था। वस्तुतः गांधी और गांधीवाद बड़ा ही लचीला है। समय-समय पर परस्पर विरोधी विचारधारा वाले लोग एवं नेता गांधी को ग्रहण करते रहे हैं।भारत के राजनेता सत्ता के लिए गांधीजी के नाम का प्रयोग करते रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने दीर्घकाल तक गांधीजी के नाम पर ही शासन किया तथा जनता पार्टी भी इसी नाम का सहारा लेकर सत्ता में आई थी। चुनावों में भी विभिन्न दल अपने-अपने घोषणापत्रों में गांधी की दुहाई देते रहते हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि इन नेताओं को न तो किसी प्रतिज्ञा की परवाह है और न गांधी के सपनों को साकार करने की। उन्हें तो मात्र अपनी कुर्सी और पदवी की चिन्ता है। आज सारे विश्व पर हिंसा द्वारा विनाश का खतरा छाया हुआ है। गांधीजी इस पर कहते हैं कि अहिंसक बनने की कोशिश करो। अहिंसा का अर्थ है, मन-वचन-कर्म में अहिंसा। गांधी अहिंसा को जिस अर्थ में प्रयुक्त करते थे उस अर्थ में उसे सफ लता तभी मिल सकती है जब, जिस परिस्थिति में उसका प्रयोग करना है, उस परिस्थिति को एक नैतिक परिस्थिति माना जाय। इस समय देश में हिंसा के अतिरिक्त असत्य का वातावरण फैलता जा रहा है। आम जनता के मन में देश के नेताओं के शब्दों पर विश्वास नहीं रहा है। यह सचमुच ही बहुत दुख की बात है कि बापू ने हमें सत्य और अहिंसा का सदा गहरा महत्व बतलाया, परंतु आज देश में इन दोनों गुणों की न्यूनता स्पष्ट दिखाई दे रही है।
वस्तुतः गांधी-मार्ग बड़ा जटिल एवं कंटीला है। उसे आत्मसात करना और व्यवहार में लाना अत्यंत दुष्कर कार्य है। अगर हम गांधी के सिद्धांतों का पालन करना चाहेंगे तो पर्याप्त असुविधा होगी। अलबत्ता, विश्व आज जिस रोग से ग्रस्त है उसका निदान भले ही बड़ा कठोर हो, पर गांधी का बताया उपचार अचूक है। हमारा कार्य अब यही है कि सत्य और अहिंसा को ऐसा व्यावहारिक रूप दें जिसका पालन किया जा सके।
दहकती खबरें न्यूज चैनल व समाचार पत्र सम्पादक- सिराज अहमद सह सम्पादक - इम्तियाज अहमद समाचार पत्र का संक्षिप्त विवरण दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र राजधानी लखनऊ से प्रकाशित होता है । दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त समाचार पत्र एवं उक्त समाचार पत्र का ही यह न्यूज़ पोर्टल है । निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं या हमें ईमेल कर सकते हैं - 9044777902, 9369491542 dahaktikhabrain2011@gmail.com
सोमवार, 4 नवंबर 2019
गांधी की प्रासंगिकता
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