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रविवार, 23 जून 2019

पूरे देश की स्वास्थ्य सेवा आई०सी०यू में.....

 


पूरे देश की स्वास्थ्य सेवा आई०सी०यू में


("दहकती खबरें")


बिहार में इन्सेफिलाईटिस से 175 बच्चों की मौत से बताता है कि बिहार की स्वास्थ्य सेवा आई0सी0यू में है। जब राज्य इतनी बड़े आपातकाल का सामना कर रहा था तब स्वास्थ्य मंत्री स्कोर पूछ रहे थे, राज्य के मुख्यमंत्री माननीय नितीश कुमार जो 14 साल से बिहार के मुख्यमंत्री है। 14 साल में मुजफरपुर के हास्पिटल में एक बार भी नहीं आए आखिरकार 10-15 दिन बाद वो जागे और हॉस्पिटल पहुँचे। इन्सेफिलाईटिस होने कि वजह क्या है, यदि ध्यान दिया जाता तो इससे बचा जा सकता था। 1- बढ़ती गर्मी, 2-पोषण कार्यक्रम की कमी, 3- स्वास्थ्य विभाग को बड़े पैमाने पर मार्च-अप्रैल में इन्सेफिलाईटिस पूरे देश को लेकर जागरूकता अभियान चलाना था, जहाँ पर हमने बड़ी मौते देखी हैं। लेकिन यह अभियान टेक ऑफ नहीं हो पाया क्योंकि बिहार लोकसभा चुनाव के जोश में डूबा था यानी हमारे बच्चों से ज्यादा जरूरी राजनीति है। इस अभियान की मुख्य बातें ये थी - 1. पूरे बाहों की कॉटन शर्ट पहनना ताकी धूप न लगे, 2. खाली पेट सोने न जाये बच्चे, क्योंकी शुगर की कमी से अधिकतर मौत हो जाती है। 3. ओ0आर0एस की पैकेट का वितरण 4 पी0एस0सी0 की कमी व पी0एस0सी0 में गलूकोमीटर नहीं है जिससे पता लगाया जाता बच्चों में शुगर की कितनी कमी है 5. बीमारी से झूझने के लिए बड़े हास्पिटलों की कमी। बिहार में 2017-18 के बजट में एक हजार करोड़ की कमी हुई पिछले साल की तुलना में, बिहार में 5000 डाक्टरों की कमी है। बिहार सरकार को बताना चाहिए कि चाल साल में राज्य में बनने वाले दूसरे प्डै के लिए जमीन क्यों नहीं खोज पाई ? क्यों उसे दबंगा मेडिकल कॉलेज को AIIMS में अपग्रेड करना पड़ा ? 2015-16 के बजट में वित्त मंत्री अरूण जेटली ऐलान करते हैं बिहार में एक नया AIIMS इस घोषण के तीन साल बाद 19 दिसम्बर 2017 को केन्द्र स्वास्थ्य मंत्रालय एक बयान जारी करता है बताता है कि नये AIIMS की ताजा स्थिति क्या है। उसमें राज्य सभा में स्वास्थ्य मंत्री श्री अशवनी चौबे ने एक बयान जारी करके बिहार सरकार से गजारिश की, कि नए AIIMS की स्थापना के लिए तीन चार जगहों के विकल्प सुझाए, मगर राज्य सरकार अभी तक इन जगहों की पहचान नहीं कर पाई। सन् 2015 में घोषण होती है कि बिहार में एक नया AIIMS बनेगा। 2015 से 2019 आ जाता है लेकिन जमीन नहीं मिल पाती है इतने दिन में दूसरा AIIMS बन जाता और कितने लोगों की जान बच जाती। श्री क ष्णा मेडिकल कॉलेज मुजफरपुर के हालात निम्न हैं - डाक्टरों की कमी - इन्सेफिलाईटिस के लिए अलग वार्ड नहीं - 49 साल पुराना हॉस्पिटल आज भी उसी हाल में है। पिछले सात साल में 3 बार सौ-सौ बच्चों की मरने की घटना बिहार में डाक्टर के लिए 11,734 पद स्वीकत जब की फामसा 6,000 डाक्टर की नियुक्ति इसमें 2,000 डाक्टर कॉन्ट्रैक्ट बेस में है 23,000 स्थाई। बिहार में 28,391 लोग पर एक डाक्टर देश में फिलहाल 11.49 लाख डाक्टर 11 हजार पर एक डाक्टर देश में जबकि के मुताबिक 1000 लोगों पर 1 डाक्टर होना चाहिए प्रति व्यक्ति खर्च कुल जी0डी0पी का 1.3 परसेंट है जबकी स्वास्थ्य खर्च कम से कम 6 परसेंट होना चाहिए। भारत में बाल मृत्यु दर 20,50,000 है, भारत में बाल मृत्यु दर अभी भी विश्व में सबसे ज्यादा है। उ0प्र0 में 19,962 पर 1 डाक्टर, कर्नाटक में 13,556 पर एक डाक्टर, मध्य प्रदेश में 18,518 पर एक डाक्टर उपलब्ध है, पूरे देश में स्वास्थय सेवा आई0सी0य में है। 175 बच्चों की मौत की जिम्मेदारी कोई भी लेने को तैयार नहीं हैसब जगह खामोशी छाई है। 103 पी0एस0सी0 है मुजफरपुर में एच0एम0आई0एस0 हेल्थ मिन्सिट्री की स्टडी कहती है98 आकलन लायक नहीं है 5 को 0 रेटिंग कम्यूनिटी हेल्थ सेन्टर जहॉ 43 होने चाहिए थे वहाँ 1 है। 9 वेंटीलेटर हैं एक भी काम नहीं कर रहा एक भी सीटी स्कैन काम नहीं कर रहा टीकाकरण 60 प्रतिशत बच्चों का हुआ ही नहीं जो बच्चे मरें है ज्यादातर वों है जिनके टीका नहीं लगा था। ये मेडिकल कॉलेज के डाक्टर ने कहा है जितने बच्चे मरें है सब कुपोषण के शिकार थे। जिनकी शुगर लेवल 15 से 20 प्रतिशत था जबकी 60 प्रतिशत होना चाहिए। देश में कुल 25,650 पी0एच0सा है, 61 पी0एच0सी पर एक डाक्टर हे 15,700 पी0एच0सी में 1 डाक्टर तैनात हैं 7.6 फीसदी में डॉक्टर नहीं है4,744 पा0एच0सा में फामसा नहीं 9,183 पा0एच0सा में लैब टेक्नीशियन नहीं है। देश का स्वास्थ्य बीमार हैं मुख्यमंत्री जी एवं प्रधानमंत्री खामोश है, देश के बच्चे फल का भविष्य में इनके बारे में सोचना जरूरी है। 


अन्जुम खान (वरिष्ठ पत्रकार "दहकती खबरें")



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