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गुरुवार, 21 नवंबर 2019

पर्यटन का केंद्र बनेगा देवीपाटन मंडल: योगी

दहकती ख़बरें 
ब्यूरो 


11/21/2019


पर्यटन का केंद्र बनेगा देवीपाटन मंडल: योगी
बलरामपुर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज कहा कि देवीपाटन मंडल उच्च स्वास्थ सेवाओ ,शिक्षा और पर्यटन का केन्द्र बनने की ओर अग्रसर है। बलरामपुर जिले के पुलिस लाइन सभागार में केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं , विकास योजनाओं व कानून व्यवस्था की समीक्षा करने के बाद श्री योगी ने पत्रकारों से कहा बलरामपुर में संचालित संयुक्त चिकित्सालय में मेडिकल कालेज का सेटेलाइट केन्द्र स्थापित किया गया है जबकि बहराइच में मेडिकल कालेज खोला जा रहा है। अब गोण्डा में भी मेडिकल कालेज के लिये सरकार प्रयासरत है।
उन्होने कहा कि श्रावस्ती जिले में स्थित बौद्ध धाम , बलरामपुर के देवीपाटन मंदिर और गोण्डा जिले के दर्शनीय स्थलों को पर्यटन के तौर पर और अधिक गति देने की दिशा में प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बलरामपुर और अन्य नेपाल सीमावर्ती इलाकों में रह रहे थारू जनजाति और वनवासियों के उत्थान के लिये सरकार कई महत्वपूर्ण योजनाओ का क्रियान्वन करा रही है। भाजपा की केन्द्र एवं प्रदेश की सरकारों ने जाति धर्म पंथ मजहब व दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबका साथ सबका विकास के तर्ज पर काम करके सबका विश्वास हासिल करने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। उन्होने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टालरेंस पर कार्य कर रही है। सीएम ने अधिकारियों को अधूरी योजनाओ की युद्धस्तर पर शीघ्र पूर्ण कराकर लाभार्थियों को लाभ पहुंचाने व कानून व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिये अधिकारियों को प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिये। मंगलवार को श्रावस्ती से तुलसीपुर पहुंचे श्री योगी ने आज भोर में देवीपाटन मंदिर के गर्भगृह में मां पाटेश्वरी की आराधना की और बाद में मंदिर परिसर एवं थारू जनजाति के लिये संचालित छात्रावास , अस्पताल व विद्यालय का निरीक्षण किया। उन्होने गौशाला पहुंचकर गौमाता की सेवा कर उन्हें आहार खिलाया। सीएम ने स्थानीय लोगों से संवाद भी किया।


संसद में सीट बदले जाने पर भड़के संजय राउत, सभापति को लिखी चिट्ठी

दहकती ख़बरें 
ब्यूरो 


संसद में सीट बदले जाने पर भड़के संजय राउत, सभापति को लिखी चिट्ठी


नई दिल्ली राज्यसभा चैंबर में अपनी सीट बदले जाने से शिवसेना सांसद संजय राउत ने नाराजगी जताई है। राउत ने राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर आश्चर्य प्रकट किया और आरोप लगाया कि यह जानबूझकर शिवसेना की भावनाओं को चोट पहुंचाने और पार्टी की आवाज दबाने के लिए लिया गया। संजय राउत ने पत्र में लिखा है कि मैं इस गैरजरूरी तौर पर उठाए गए कदम के कारण को भी समझ नहीं पा रहा हूं क्योंकि एनडीए से अलग होने को लेकर कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। इस फैसले ने सदन की गरिमा को प्रभावित किया है। मैं गुजारिश करता हूं कि हमें पहली, दूसरी या तीसरी पंक्ति की सीट दी जाए और सदन की शिष्टता भी कायम रखी जाए। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव साथ-साथ लड़ने के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ते हुए भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया  और एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की कोशिशों में लगी है। हालांकि, शिवसेना की इस जद्दोजहद में अबतक सफल नहीं हो पा रही है और कभी एनसीपी से तो कभी कांग्रेस की तरफ से चैंकाने वाले बयान आते रहते हैं।  उधर शिवसेना नेता संजय राउत ने बुधवार को फिर विश्वास जताया कि राज्य में अगले महीने तक उनकी पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि राज्य में सरकार बनने की तस्वीर अगले दो दिनों में स्पष्ट हो जाएगी। राज्य में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन है। उन्होंने बताया,'हम लोग सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आगले दो दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी और शिवसेना के नेतृत्व में दिसंबर तक सरकार बन जाएगी।


कमरे जैसी कमर को पतला करेगा नौकासन, और भी मिलेंगे कई फायदे

कमरे जैसी कमर को पतला करेगा नौकासन, और भी मिलेंगे कई फायदे
खुद को बीमारियों से दूर रखने के लिए हैल्दी डाइट के साथ साथ हलका-फुलका व्यायाम और योग भी बहुत जरूरी है। इससे आप ना बीमारियों से बचेंगे बल्कि कई तरह की स्किन व ब्यूटी प्रॉब्लम्स का हल भी होगा। योग,  मोटापा कम करने के लिए भी यह काफी फायदेमंद है। आज हम आपको ऐसा योगासन के बारे में बताते हैं जिससे आप अपनी कमरे जैसी कमर को पतला कर सकते हैं और अन्य कई तरह के फायदे भी ले सकते हैं।
नौकासन करने की विधि
इस आसन को करने से पहले खुले आंगन में मैट बिछा लें। अब उस मैट पर सीधी मुद्रा में बैठ जाएं। अब धीरे- धीरे अपने दोनों पैरों को एक साथ हवा में ऊपर की तरफ उठाएं। अपने दोनों हाथों को घुटने की तरफ ले जाते हुए अपने घुटनों को छुएं। यह प्रक्रिया करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपकी रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी मुद्रा में होनी चाहिए। यह आसन करते समय आपको 30 सेकंड के लिए इसी अवस्था में रहना चाहिए। आप चाहे तो आगे चलकर इस आसन को करने का समय बढ़ा सकते हैं।
नौकासन करने के फायदे
कमर की चर्बी कम करने में फायदेमंद
यह आसन आपकी कमर की चर्बी कम करने में बेहद फायदेमंद है। इस आसन को करने से आपके शरीर में जमा एक्स्ट्रा चर्बी कम होगी, जिससे वजन कम होकर आपकी बॉडी सही शेप में आएंगी।
बॉडी में एनर्जी लाए
यह आसन आपके शरीर में एनर्जी लेकर आता है। इससे आप एकदम फ्रैश भी महसूस करते हैं। इससे हड्डियों को मजबूती भी मिलती है।
भूख बढ़ाएं
यह आसन आपकी पाचन शक्ति बढ़ा कर गैस, कब्ज, बदहजमी जैसी समस्या से छुटकारा दिलाता है। यह आपकी भूख बढ़ाने में भी मदद करता है।
लिवर-किडनी के लिए बेस्ट
शरीर के अंदरुनी अंग जैसे लिवर-किडनी के लिए यह आसन बढ़िया है। इससे यह
तनाव कम करें
इस आसन को करने से आप हल्का फील करेंगे। आपका स्ट्रेस कम करने में आपकी मदद करेगा।
सावधानियांः
अस्थमा और दिल के मरीज
वैसे यह आसन आपके पूरे शरीर के लिए बहुत लाभदायक साबित होता है, लेकिन आप अस्थमा या दिल से जुड़ी किसी समस्या से परेशान है तो इस आसन को न करें।
गर्भावस्था में रखें परहेज
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान यह आसन नहीं करना चाहिए।



दिल खोलकर डायबिटीज मरीज खाएं ये फल,नहीं होगा नुकसान

शुगर के मरीजों के लिए खान-पान से जुड़ी कई लिमिट्स होती हैं। ऐसे में उनके लिए क्या खाएं और क्या न खाएं हमेशी यही प्रॉबल्म बनी रहती है। अब जैसा कि सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है, ऐसे में अलग-अलग और बहुत सी स्वाद सब्जियां और फ्रूट्स मार्किट में देखने को मिलेंगे। मगर कहीं न कहीं शुगर के मरीज इसी सोच में पड़ जाएंगे कि उनमें से क्या खाया जाए और क्या नहीं...
ऐसे में आज खास शुगर पेशेंट्स के खाने लायर फ्रूट्स एंड फूड लिस्ट लेकर आए हैं जिनके सेवन से न केवल शुगर के मरीजों की डायबिटीज कंट्रोल में रहेगी बल्कि उन्हें और भी कई स्वास्थय लाभ मिलेंगे। आप चाहें तो इस बिमारी से बचने के लिए भी इन फ्रूट्स का सेवन कर सकते हैं। आइए नजर डालते हैं उन फ्रूट्स लिस्ट पर...
कीवी
कीवी स्वास्थय के लिए सबसे फायदेमंद फलों में से एक हैं। इसमें विटामिन-ब् के साथ-साथ भरपूर फाइबर और एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। जिस वजह से डायबिटिक पेशेंट्स के लिए इसका सेवन बहुत लाभदायक सिद्ध होता है।
संतरा
कीवी की तरह संतरा भी विटामिन-ब् का भरपूर स्त्रोत है। फाईबर और पोटाशियम से भरपूर संतरे का फल शुगर के साथ-साथ आपके वजन और कोलेस्ट्रोल लेवल को भी कंट्रोल में रखने का काम करता है। इस फल के सेवन से आपका ब्लड शुगर लेवल कभी नहीं बढ़ेगा।
सेब
शुगर के मरीजों को अक्सर भूख लगती रहती है, ऐसे में भूख लगने पर सेब खाने से जहां आपकी भूख शांत होगी वहीं आपको भरपूर विटामिन्स, प्रोटीन और पोटाशियम भी मिलेगा।  सिर्फ डायबिटीज के लिए ही नहीं, सेब हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है और यह दिल की बीमारियों के खतरे को भी कम कर सकता है।इन सबके अलावा अमरूद, जामुन और ब्लू बेरीज फलों का भी आप सेवन कर सकते हैं। ये सब फल भी डायबिटीज को कंट्रोल में रखकर आपके एनर्जी प्रदान करते हैं। 
नहीं लेना चाहिए इन फलों का रस
फलों का रस पीने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ता है। आप इन सब फलों में से किसी भी फल का जूस पिएंगे तो आपको नुकसान झेलना पड़ेगा क्योंकि फलों का रस सीधा आपके ब्लड में घुल जाता है जिस वजह से आपकी ब्लड शुगर लेवल बहुत तेजी से बढ़ सकती है। डायबिटिक पेशेंट्स को फलों का रस पीने से बिल्कुल परहेज करना चाहिए।
तो ये थे डायबिटिक पेशेंट्स के लिए कुछ खास फल, जिनका सेवन आप बिल्कुल टेंशन फ्री होकर कर सकते हैं। 



सो-कर बर्न करें कैलोरी और घटा लें वजन, जानिए कैसे?

सो-कर बर्न करें कैलोरी और घटा लें वजन, जानिए कैसे?
बॉडी को फिट एंड फाइन बनाए रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना बहुत जरुरी है। शोध के अनुसार पाया गया है कि जो व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेते, वे लोग अन्य लोगों के मुकाबले अधिक मोटे होते हैं। नींद लेने से हमारे शरीर के हार्मोनस बैलेंस में रहते हैं, जिससे न केवल मोटापा बल्कि हम डायबिटीज, स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों से भी बचे रहते हैं। इन बीमारियों से ग्रस्त लोगों को मोटापे की समस्या से ज्यादा गुजरना पड़ता हैं। ऐसे में इन लोगों को पर्याप्त मात्रा में नींद लेनी चाहिए जिससे वे सोते समय भी अपना वजन कम कर सके। 
कैसी होनी चाहिए आपकी नींद...
7 से 8 घंटे की नींद लें
अगर आप बिना कोई मेहनत किए वजन घटाना चाहते हो तो आपको 7-8 घंटों की पर्याप्त मात्रा में नींद लेनी चाहिए। अध्ययनों द्वारा पाया गया है कि पर्याप्त नींद न लेने से हमारी कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप कोशिकाएं ठीक से ग्लूकोज नहीं ले पाती है और न ही उसका ठीक से मेटाबॉलिज्म कर पाती है।
अंधेरे कमरे में सोएं
माना जाता है कि डार्क रूम में सोने से खूबसूरती में निखार लाने में मदद मिलती है। इससे दिमाग  शांत रहता है जिससे अच्छी और गहरी  नींद आती है। बहुत से लोग इस बात से अंजान हैं कि सोते समय हमारा शरीर मेलाटोनिन का उत्पादन करता है दृयह  पीनियल ग्रंथि द्वारा स्रावित एक 'स्लीप' हार्मोन है  जो हमें सो जाने और सोते रहने की अनुमति देता है। यह रात 11 बजे से 3 बजे के बीच उत्पन्न होता है। मेलाटोनिन कैलोरी-बर्निंग ब्राउन फैट के उत्पादन में सहायता कर सकता है। जिससे सोते समय भी आपका बॉडी फैट बर्न होता है।
ठंडे और शांत कमरे में सोएं
सोने के लिए ठंडा और शांत कमरा ही चुने। शांत कमरे में सोने से आप बिना किसी रूकावट के भरपूर मात्रा में नींद ले पाएंगे। एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग सोने के लिए 19 डिग्री ठंडे तापमान वाले कमरे को चुनने हैं, वे लोग गर्म तापमान वाले कमरे की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक कैलोरी बर्न करने में सक्षम होते हैं। क्योंकि हमारा शरीर तापमान बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करता हैं और इस प्रक्रिया द्वारा कैलोरी बर्न करता है।



डीप नेक क्राॅप टाॅप में मलाइका के दिखे......

डीप नेक क्राॅप टाॅप में मलाइका के दिखे क्लीवेज, लेटेस्ट तस्वीरों ने बढ़ाईं फैंस की धड़कनें
मंगलवार रात डिजाइनर फाल्गुनी एंड शेन पीकॉक फ्लैगशिप ने मुंबई के काला घोड़ा में एक और स्टोर की ओपनिंग की। इस ओपनिंग सेरेमनी में कई अनन्या पांडे पांडे अपनी मां भावना पांडे, गौरी खान, शनाया कपूर अपनी मां महीप कपूर और जैकलीन फर्नांडिस समेत कई स्टार्स पहुंचे। इस स्टोर को शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान डिजाइन किया है। लेकिन इस इवेंट में एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा के लुक को देख सबकी निगाहें उनपर थम-सी गईं। इस दौरान मलाइका पर्पल कलर के डीप नेक क्राॅप टाॅप के साथ मैचिंग ट्राउजर में बेहद ही हाॅट दिखीं। इस क्राॅप टाॅप में उनके क्लीवेज साफ दिख रहे हैं। इसके साथ उन्होंने मैचिंग ब्लेजर पेयर किया है। 46 की मलाइका का ये लुक देख आपकी सांसे थम जाएंगी। मल्ला ने अपने लुक को मिनिमल मेकअप, स्ट्रेट हेयर और न्यूड लिपस्टिक के साथ कंप्लीट किया है। इस दौरान उन्होंने एक हार्ट शेप का पर्स हभी कैरी किया है। स्टोर लाॅन्च में मलाइका ने ग्लैमरस अंदाज में पोज दिए। मलाइका की ये तस्वीरें सोशल साइट पर काफी वायरल हो रही हैं, जिन्हें फैंस काफी पसंद कर रहे हैं। बता दें कि मलाइका अपने फैशन और स्टाइल की वजह से हमेशा ही सुर्खियां बटोरती हैं। छैया छैया गर्ल को अक्सर अस्पताल, सैलून, और जिम जाते हुए मीडिया कैमरे में कैद किया जाता है। 46 की मलाइका अपनी टोन्ड बाॅडी से बड़ी-बड़ी हसीनाओं को मात देती है। काम की बात करें तो मलाइका उइन दिनों स्लिवर स्क्रीन से दूर हैं। हालांकि वह अपनी लव-लाइफ को लेकर काफी चर्चा में रहती हैं। मलाइका इन दिनों एक्टर अर्जुन कपूर संग अपने रिलेशन को लेकर काफी चर्चा में हैं। मलाइका अरोड़ा नेहा धूपिया के चैट शो नो फिल्टर नेहा में पहुंची थीं। इश शो में उन्होंनें अपनी शादी को लेकर कई खुलासे किए थे। 



क्राॅप टाॅप में राजकुमार की हीरोइन का स्टनिंग लुक, गाड़ी से उतर यूं दिए.......

क्राॅप टाॅप में राजकुमार की हीरोइन का स्टनिंग लुक, गाड़ी से उतर यूं दिए पोज
बाॅलीवुड की ब्यूटीफुल एक्ट्रेस मौनी राॅय को मंगलवार शाम मुंबई की सड़कों पर स्पाॅट किया गया। इस दौरान ऑल ब्लैक लुक में एक्ट्रेस का स्टनिंग लुक देखने को मिला। मौनी ब्लैक स्लीवलेस क्राॅप टाॅप और पैंट में स्टाइलिश लुक में दिखीं। इसके साथ उन्होंने ब्लैक स्लीपर्स पेयर किए थे। मिनिमल मेकअप, न्यूड लिपस्टिक पोनी और शेड्स मोनी के लुक को चार-चांद लगा रहे हैं। गाड़ी से उतरकर मौनी ने ग्लैमरस अंदाज में मीडिया को पोज दिए। मौनी की ये तस्वीरें सोशल साइट पर काफी वायरल हो रही हैं, जिन्हें फैंस बेहद पसंद कर रहे हैं।



डांस क्लास के बाहर स्पॉट हुईं कियारा, कैजुअल लुक से किया .......

डांस क्लास के बाहर स्पॉट हुईं कियारा, कैजुअल लुक से किया फैंस को अट्रेक्ट
कबीर सिंह एक्ट्रेस कियारा अडवानी फिल्म में धांसू किरदार निभाने के बाद फैंस के दिलों में छाईं रहती हैं। मूवी में एक्ट्रेस शाहिद कपूर के साथ अहम किरदार में नजर आईं थी। सिर्फ फिल्मों में ही नही, बाहरी दुनिया में भी कियारा अपने फैशन सेंस को लेकर काफी पापुलर हैं। एक्ट्रेस अपने फैशन स्टाइल से फैंस को खुश करने में कभी पीछे नही रहती। हाल ही में हसीना को मुंबई में डांस क्लास के बाहर स्पॉट किया गया। इस दौरान एक्ट्रेस बेहद लाजवाब दिखाई दे रही हैं। लुक की बात करें तो इस दौरान एक्ट्रेस स्पोर्टस ब्रा के ऊपर डेनिम जैकेट में नजर आ रही हैं और ओरेंज कलर की प्रिंटेड जॉगिन्ग कियारा के लुक को कम्पलीट कर रही है। नो मेकअप लुक और ओपन हेयर्स में एक्ट्रेस सभी का ध्यान अपनी ओर अट्रेक्ट कर रही हैं। यह पहली बार नही है जब कियारा कैजुअल वियर में नजर आ रही हैं। इसके पहले भी एक्ट्रेस को कई जगह इस तरह के आउटफिट्स में स्पॉट किया जाता है। एक्ट्रेस के हर लुक को फैंस द्वारा बखूबी पसंद किया जाता है। 
काम की बात करें तो कियारा जल्द ही फिल्म गुड न्यूज में नजर आएंगी। मूवी का ट्रेलर हाल ही में रिलीज हुआ है। फिल्म में कियारा करीना कपूर खान, अक्षय कुमार और दिलजीत दुसांझ के साथ स्क्रीन शेयर करेंगी। 



इंडियन आइडल के सेट के बाहर नजर आईं दिव्या खोसला, मिनी स्कर्ट में दिखा .......

इंडियन आइडल के सेट के बाहर नजर आईं दिव्या खोसला, मिनी स्कर्ट में दिखा बोल्ड अवतार
बॉलीवुड फिल्म सनम रे की डायरेक्टर और एक्ट्रेस दिव्या खोसला कुमार अक्सर अपने स्टनिंग लुक को लेकर सुर्खियों में रहती हैं। दिव्या हमेशा अपने फैशन और स्टाइल को टॉप पर रखती हैं। सोशल मीडिया पर भी एक्ट्रेस की बोल्ड तस्वीरों को खूब पसंद किया जाता है। हाल ही में एक बार फिर एक्ट्रेस का बेहद गॉर्जियस लुक देखने को मिल रहा है। एक्ट्रेस की यह तस्वीरें इंडियन आइडल शो के सैट के बाहर की हैं। इस दौरान दिव्या व्हाइट शर्ट और प्रिंटेड मिनी शॉर्ट में नजर आ रही हैं। ड्रेस के साथ एक्ट्रेस ने मैचिंग शूज पेयर किए हुए हैं। मिनिमल मेकअप, रेड लिप्सटिक और हाई पोनी एक्ट्रेस के लुक को चार-चांद लगा रहे हैं। गॉर्जियस लुक को कैरी करते हुए दिव्या कैमरे के सामने जबरदस्त पोज दे रही है। काम की बात करें तो दिव्या जल्द ही फिल्म तेरा यार हूं मैं में अहम किरदार में नजर आएंगी। फिल्म में एक्ट्रेस स्टार अमिताभ बच्चन और एस. जे. सूर्य के साथ अहम भूमिका निभाती नजर आएंगी। इसके अलावा दिव्या फिल्म सत्यमेव ज्यते 2 की भी शूटिंग कर रही हैं। यह फिल्म अगले साल पर्दे पर रिलीज होगी।



विधु विनोद चोपड़ा की शिकारा -ए लव लेटर फ्रॉम कश्मीर इस दिन होगी रिलीज

विधु विनोद चोपड़ा की शिकारा -ए लव लेटर फ्रॉम कश्मीर इस दिन होगी रिलीज
फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा की आगामी फिल्म शिकारा- ए लव लेटर फ्रॉम कश्मीर अपनी घोषणा के वक्त से ही सुर्खियों में छाई हुई है,और इसी बीच दर्शकों को खुशी मनाने का एक ओर मौका मिल गया है क्योंकि यह फिल्म अब तय तारीख से पहले रिलीज करने का निर्णय लिया गया है। यह फिल्म अब 7 फरवरी 2020 को सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा को कश्मीर से एक प्रेम पत्र के रूप में वर्णित किया गया है, जिसे देख कर ऐसा लग रहा है कि फिल्म निर्माता अपनी इस आगामी फिल्म के साथ खूबसूरत वादियों से एक ओर ताजा कहानी के साथ अपने प्रशंसकों का मनोरंजन करने के लिए तैयार हैं। फिल्म निर्माता ने हाल ही में अपनी प्रतिष्ठित फिल्म परिंदा से वीडियो और क्लिप साझा करते हुए 30 साल पूरे होने का जश्न मनाया था जो आज भी भारतीय सिनेमा की एक आइकोनिक फिल्म है। वही, अब अपनी अगली फिल्म शिकारा के साथ, विधु दर्शकों के सामने फिल्म-निर्माण का एक ओर बेहतरीन नमूना पेश करने के लिए तैयार है जहां वह जम्मू-कश्मीर की कहानियों पर आधारित एक कहानी पेश करेंगे। फिल्म की नई रिलीज तारीख की घोषणा के साथ, दर्शकों की रुचि और उत्साह के साथ अपने चरम पर है। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा-अ लव लेटर फ्रॉम कश्मीर अब 7 फरवरी, 2020 में रिलीज के लिए तैयार है। फॉक्स स्टार स्टूडियोज द्वारा प्रस्तुत, यह फिल्म विनोद चोपड़ा प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित और फॉक्स स्टार स्टूडियो द्वारा सह-निर्मित है। 


वेकेशन एंजॉय करने लॉस एंजेलिस पहुंची कपूर सिस्टर्स, बोल्ड अंदाज में.........

वेकेशन एंजॉय करने लॉस एंजेलिस पहुंची कपूर सिस्टर्स, बोल्ड अंदाज में नजर आईं सोनम-रिया
ज्यादातर लोगों की आइडियल हॉलिडे की अलग-अलग परिभाषा होती है। किसी की परिभाषा चाहे जो भी रही हो, लेकिन कपूर सिस्टर्स के लिए हॉलिडे सिब्लिंग्स के बॉन्ड, सुंदर सनसेट और खूब सारी खरीददारी से है। बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर और उनकी बहन, सेलिब्रिटी-स्टाइलिश और प्रोड्यूसर रिया कपूर अपने बिजी शिड्यूल से समय निकालकर लॉस एंजेलिस छुट्टियां मनाने निकलीं। तस्वीरें देखकर लग रहा है कि दोनों बहनें हॉलिडे खूब एंजॉय कर रही हैं। सोनम और रिया भले ही वहां क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही हों, लेकिन बहनों की ये जोड़ी अपने फैंस को अपडेट रखने के लिए लगातार फोटो पोस्ट कर रही हैं। सोनम और रिया के इंस्टाग्राम फीड्स उन सभी चीजों के लिए एक-स्टॉप डेस्टिनेशन हैं जो एक परफेक्ट वेकेशन के लिए होती हैं। अभी हाल ही में, रिया की स्टाइल ने तब सुर्खियाँ बटोरीं जब उन्होंने करीना कपूर खान के साथ गुड न्यूज के ट्रेलर लॉन्च इवेंट में अक्षय कुमार, दिलजीत दोसांझ, और कियारा आडवाणी के साथ काम किया।
करीना के लिए डिजाइनर डायोन ली के कलेक्शन से एक लेमन ड्रेस चॉइस करते हुए, रिया ने एक बार फिर अपने आप को प्रूव किया।सोनम ने आखिरी बार द जोया फैक्टर में काम किया था। इससे पहले, एक्ट्रेस को अनिल कपूर, जूही चावला और राजकुमार राव अभिनीत एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा में देखा गया था।



स्टोर लॉन्च में छाया शनाया का स्टनिंग लुक, वन पीस ड्रेस में......

स्टोर लॉन्च में छाया शनाया का स्टनिंग लुक, वन पीस ड्रेस में बिखेरे जलवे
एक्टर संजय कपूर की बेटी शनाया कपूर बॉलीवुड में डेब्यू करने को लेकर सुर्खियों में हैं। शनाया की बेस्ट फ्रेंड अनन्या पांडे और उनके पापा ने कई बार इस बात का खुलासा किया है। शनाया की स्टनिंग पिक्चर्स देखकर कोई भी कह सकता है कि वो बॉलीवुड की आज की सबसे खूबसूरत हसीनाओं में से एक है। बीते मंगलवार शनाया को मुंबई के स्टोर लॉन्च में बेहद गॉर्जियस लुक में स्पॉट किया गया। स्टोर लॉन्च के दौरान शनाया स्नेक प्रिंट ड्रेस में लाजवाब लग रही हैं। ड्रेस के ट्रांसपेरेंट नेक में शनाया के क्लीवेज भी साफ दिखाई दे रहे हैं। मिनिमल मेकअप, न्यूड लिपस्टिक और ओपन हेयर्स हसीना के लुक को चार-चांद लगा रहे हैं। लुक को कैरी करते हुए शनाया मां महीप कपूर के साथ कन्फिडेंस में पोज दे रही हैं। काम की बात करें तो शनाया ने अभी तक फिल्मों में एंट्री नही की, लेकिन जल्द ही वो कजन जाह्नवी कपूर के साथ फिल्म द कारगिल गर्ल के जरिए बॉलीवुड में डेब्यू करेंगी। 



बिकिनी में जैकी श्राॅफ की बेटी ने दिखाई टोन्ड बाॅडी, स्वीमिंग पूल किनारे दिए......

बिकिनी में जैकी श्राॅफ की बेटी ने दिखाई टोन्ड बाॅडी, स्वीमिंग पूल किनारे दिए पोज
एक्टर जैकी श्राॅफ की बेटी कृष्णा श्रॉफ अक्सर अपनी तस्वीरों की वजह से चर्चा में रहती हैं। कृष्णा इंस्टा अकाउंट पर फैंस के साथ बोल्ड तस्वीरें शेयर करती रहती हैं। हाल ही में एक बार बार फिर कृष्णा की कुछ तस्वीरें इंटरनेट पर छाईं हुईं हैं। इन तस्वीरों में वह स्वीमिंग पूल के किनारे चिल करती दिख रही हैं। लुक की बात करें तो कृष्णा ब्लैक बिकिनी में बेहद बोल्ड दिख रही हैं। वह कातिलाना अंदाज में कैमरे के सामने पोज कर रही हैं। इन तस्वीरों में कृष्णा की टोन्ड बाॅडी देख आपकी सांसे थम जाएंगी। फैंस कृष्णा की इन तस्वीरों को काफी पसंद कर रहे हैं। 
बता दें कि टाइगर श्राॅफ की बहन कृष्णा अपनी लव लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में हैं। कृष्णा ने अपने रिलेशन को किसी से छुपाया नहीं है। वह बास्केटबॉल प्लेयर एबन ह्याम्स को डेट कर रही हैं।
कृष्णा अक्सर अपने बॉयफ्रेंड संग रोमांटिक तस्वीरें शेयर करती हैं। कृष्णा के बॉयफ्रेंड इबान प्रोफेशनल बास्केटबॉल प्लेयर हैं। वद पहले ऐसे भारतीय बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियन नेशनल बास्केट बॉल लीग में खेला था।



 


 


चुनावी बॉन्ड या रिश्वत का करार

चुनावी बॉन्ड या रिश्वत का करार
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक नोटबंदी की घोषणा कर पूरे देश में अफरा-तफरी मचा दी, अब तक इसी तरह से नोटबंदी के तात्कालिक प्रभाव की व्याख्या की जाती रही है। लेकिन अब ऐसे वाक्य शायद नए सिरे से लिखे जाने चाहिए। जैसे, नोटबंदी की घोषणा कर मोदीजी ने देश को बड़ा झांसा दिया और भाजपा के लिए बड़ी राहत की व्यवस्था कर दी। झांसा इसलिए कि नोटबंदी के पीछे उद्देश्य यही बताया गया था कि देश से काला धन खत्म होगा, आतंकवाद पर लगाम लगेगी, भ्रष्टाचार रूकेगा। मोदीजी ने तो खुलेआम चुनौती भी दी थी कि 50 दिन में सब ठीक न हो जाए तो देशवासी जिस चैराहे पर चाहें, उन्हें सजा दे दें। लेकिन हिंदुस्तानी अवाम में गजब की सहनशीलता है और लोकतंत्र के लिए इज्जत भी। तभी वो इस झांसे को देखती-सहती रही और किसी चैराहे पर न पहुंची, न किसी को बुलाया। दूसरी ओर भाजपा के लिए बड़ी राहत की व्यवस्था मोदीजी ने कर दी, क्योंकि उसके चुनावी चंदे में खूब बरकत हुई, उसका बैंक बैलेंस बढ़ा, भव्य मुख्यालय भी बन कर तैयार हो गया। नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद 2017 के बजट में मोदी सरकार ने कुछ ऐसे प्रावधान पेश किए, जिससे उसे बिना कानूनी अड़चन के चुनावी चंदे के रूप में भारी-भरकम राशि मिल सके। बीते दिनों हफपोस्ट इंडिया ने कुछ ऐसी रिपोर्ट्स प्रकाशित की हैं, जिससे चुनावी बॉन्ड पर मोदी सरकार के खेल का खुलासा हुआ है। इस योजना में यह प्रावधान किया गया था कि दानकर्ता बिना जानकारी सार्वजनिक किये या पहचान बताये राजनीतिक दलों को असीमित चंदा दे सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण से चार दिन पहले एक कर अधिकारी को दस्तावेज खंगालते हुए ये एहसास हुआ कि इन बदलावों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट में संशोधन करना होगा। इसके बाद 28 जनवरी 2017 को संशोधनों का एक ड्राफ्ट बनाकर आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यन गांधी के पास त्वरित टिप्पणी के लिए भेजा गया। आरबीआई ने 30 जनवरी, 2017 को अपना विरोध जताते हुए जवाब दिया कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा, भारतीय मुद्रा पर भरोसा टूटेगा और नतीजतन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। लेकिन आरबीआई की इन आपत्तियों को खारिज करते हुए बजट भाषण में इस योजना की घोषणा की गई और लोकसभा ने वित्त विधेयक पारित किया, इसे मनी बिल यानी धन विधेयक कहते हुए सरकार ने राज्यसभा में पेश नहीं किया। रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई की आपत्तियों पर केंद्र ने सीधा ये कहा कि आरबीआई एक्ट में बदलाव को लेकर आरबीआई के पास वीटो पावर नहीं है। संसद सर्वोच्च है और उसे आरबीआई एक्ट के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है। इस तरह संसद की सर्वोच्चता का हवाला देकर मोदी सरकार ने आरबीआई को दरकिनार कर दिया। लेकिन अब ये भी खुलासा हुआ है कि सरकार ने संसद को भी इस संबंध में गुमराह किया है। आरटीआई कार्यकर्ता कमो(सेनि)लोकेश बत्रा को जानकारी मिली है कि 2018 के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा सदस्य मो. नदीमुल हक ने सरकार से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग ने इस तरह के चुनावी बॉन्ड पर कोई आपत्ति उठाई है? इस पर वित्त राज्यमंत्री पी.राधाकृष्णन ने जवाब दिया था कि सरकार को चुनावी बॉन्ड पर चुनाव आयोग से कोई आपत्ति नहीं मिली है। लेकिन यह सही नहीं है, क्योंकि मई 2017 में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को चुनावी बॉन्ड पर अपनी चिंताओं से अवगत कराता हुआ पत्र लिखा था। आयोग चाहता था कि सरकार इस फैसले को वापस ले। जुलाई 2017 को कानून मंत्रालय ने इसे वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामले विभाग के पास भेजा, लेकिन इन आपत्तियों पर जवाब देने की जगह वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई और चुनाव आयोग की बैठक बुलाई ताकि चुनावी बॉन्ड की योजना को अमलीजामा पहनाया जा सके। चुनावी बॉन्ड के इस खेल में यह भी खुलासा हुआ है कि इस तरह से मिले चंदे का 95 प्रतिशत भाजपा के खाते में गया है, यानी बाकी दलों के हिस्से केवल 5 प्रतिशत चंदा चुनावी बॉन्ड से आया है।
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड की वैधता पर सुनवाई भी चल रही है, जिसका नतीजा किसके पक्ष में आता है, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल तो यह समझ आ रहा है कि जब बिना खुलासा किए चुनावी चंदा देने और लेने की सहूलियत मिल जाए, तो काला धन खपाना कितना सरल हो जाता है। इसलिए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का यह कहना बिल्कुल सही है कि न्यू इंडिया में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं।


मंदी तोड़ने के उपाय

मंदी तोड़ने के उपाय
डॉ. भरत झुनझुनवाला 
भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छंटते नहीं दिख रहे हैं। तमाम संस्थाओं का अनुमान है कि वर्तमान आर्थिक विकासदर चार से पांच प्रतिशत के बीच रहेगी जो कि पूर्व के सात प्रतिशत से बहुत नीचे है। इस परिस्थिति में कुछ मौलिक कदम उठाने पड़ेंगे अन्यथा परिस्थिति बिगड़ती जायेगी। पहला कदम सरकारी बैंकों की स्थिति को लेकर है। सरकार नें हाल में कुछ छोटे सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय किया है। साथ-साथ सरकार नें पिछले तीन वर्षों में सरकारी बैंकों की पूंजी में 250 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया है। इस निवेश के बावजूद समस्त सरकारी बैंकों के शेयरों की बाजार में कीमत, जिसे श्मार्केट कैपिटलाईजेशनश् कहते हैं, कुल 230 हजार करोड़ रुपये है। इसका अर्थ हुआ कि सरकार नें जो 250 हजार करोड़ रुपये इनमे निवेश किये उसमें से केवल 230 हजार करोड़ रुपये बचे हंै। इन बैंकों में पिछले चालीस वर्षों में जो देश ने निवेश किया है वह भी पूरी तरह स्वाहा हो गया है। यानि सरकारी बैंक अपनी पूंजी को उड़ाते जा रहे हैं और सरकार इन्हें जीवित रखने के लिए इनमें पूंजी निवेश करती जा रही है। इस समस्या का हल सरकारी बैंकों के विलय से नहीं निकल सकता है क्योंकि जिन सुदृढ़ बैंकों में कमजोर बैंकों का विलय किया गया है उनकी स्वयं की हालत खस्ता है। जब वे अपनी पूंजी की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं तो वे कमजोर और छोटे बैंकों की पूंजी की कैसे रक्षा करेंगे यह समझ के बाहर है। अतरू सरकार को चाहिए कि इन बीमार बैंकों को जीवित रखने के स्थान पर इनका तत्काल निजीकरण कर दे। इनमें और पूंजी डालने के स्थान पर इनकी बिक्री करके 230 हजार करोड़ की रकम वसूल करे जिसका उपयोग देश की अन्य जरूरी कार्यों जैसे रिसर्च इत्यादि में निवेश किया जा सके। सरकार नें बीते पांच वर्षों में वित्तीय घाटे में नियंत्रण करने में सफलता पाई है। 2014 में सरकार का वित्तीय घाटा हमारी आय का 4.4 प्रतिशत था जो 2019 में घटकर 3.4 प्रतिशत हो गया है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण के लिए सरकार को बधाई क्योंकि यह दर्शाता है कि सरकार फिजूलखर्ची करने के लिए भारी मात्रा में बाजार से ऋ ण नहीं उठा रही है। लेकिन वित्तीय घाटे में जो कटौती हासिल की गयी है उसमें हिस्सा पूंजी खर्चों में कटौती से हासिल किया गया है और केवल  हिस्सा चालू खर्चों में कटौती से हासिल करके किया गया है। पूंजी खर्च में कटौती से घरेलू निवेश कम हो रहा है। स्पष्ट है कि वित्तीय घाटे में नियंत्रण करने से न तो विदेशी निवेश आ रहा है और न घरेलू निवेश बढ़ रहा है। इस परिस्थिति में घरेलू मांग को बढ़ाने के उपाय करने होंगे। उपाय है कि मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आम जनता के हाथ में रकम पहुंचाने वाले सरकारी कार्यक्रमों में खर्च बढ़ाया जाय। जैसे सड़क बनाने के लिए जेसीबी के स्थान पर श्रम का उपयोग किया जाय। अथवा जंगल लगाने के लिए श्रमिकों को रोजगार दिया जाय। इस प्रकार के कार्य करने से आम आदमी के हाथ में क्रय शक्ति आएगी, वह बाजार से माल खरीदेगा और घरेलू बाजार की सुस्ती टूटेगी। इस खर्च को बढ़ाने के लिए सरकार को ऋ ण लेने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। इस कार्य के लिए वित्तीय घाटे को बढ़ने देना चाहिए। निवेश के लिए वित्तीय घाटे को बढ़ने देने में को खराबी नहीं है उसी प्रकार जैसे अच्छा उद्यमी नयी फैक्ट्री लगाने के लिए बैंकों से ऋ ण लेकर निवेश करता है। छोटे उद्योगों को सहारा देने के लिए सरकार ने बीते दिनों में कुछ सार्थक कदम उठाये हैं। जीएसटी में छोटे उद्योगों को रिटर्न फाइल करने में छूट दी गयी है और सरकारी बैंकों पर दबाव डाला गया है कि वे छोटे उद्योगों को भारी मात्रा में ऋ ण दें। फिर भी छोटे उद्योग पनप नहीं रहे हैं। मूल कारण यह है कि चीन से भारी मात्रा में माल का आयात हो रहा है और उसके सामने हमारे उद्योग खड़े नहीं हो पा रहे हैं। चीन के माल के सस्ते आयात के पीछे चीन की दो संस्थागत विशेषताएं हैं। एक यह कि श्रमिकों की उत्पादकता वहां अधिक है। चीन के श्रमिकों को भारत की तुलना में ढाई गुना वेतन मिलता है लेकिन वे ढाई गुना से ज्यादा उत्पादन करते हैं। मान लीजिये उन्हें ढाई गुना वेतन मिलता है तो वे पांच गुना उत्पादन करते हैं। इस प्रकार चीन में माल के उत्पादन में श्रम की लागत कम हो जाती है। चीन में श्रमिक के उत्पादकता अधिक होने का मूल कारण यह है कि वहां पर ट्रेड यूनियन और श्रम कानून ढीले हैं अथवा उद्यमी के पक्ष में निर्णय दिया जाता है। इससे उद्यमी द्वारा श्रमिकों से जम कर काम लिया जाता है और माल सस्ता बनता हैं।चीन में माल सस्ता होने का दूसरा कारण भ्रष्टाचार का स्वरूप है। चीन में भी नौकरशाही उतनी ही भ्रष्ट है जितनी की अपने देश में। चीन से व्यापार करने वाले एक उद्यमी ने बताया कि किसी चीनी उद्यमी को नोटिस दिया गया कि उसकी जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा क्योंकि वहां से सड़क बननी है। इसके बाद  चीनी सरकार के अधिकारी उद्यमी के दफ्तर पहुंचे और उससे साफ-साफ बातचीत हुई। उद्यमी ने कहा कि उसे अपनी फैक्ट्री को अन्य स्थान में ले जाने में वर्तमान की तुलना में तीस प्रतिशत खर्च पड़ेगा। अधिकारियों ने उसी स्थान पर तीस प्रतिशत अधिक रकम का चेक दे दिया और छरू महीने में उसने अपनी फैक्ट्री को दूसरी जगह लगा दिया। उस स्थान पर सड़क का निर्माण हो गया।इस प्रक्रिया में चीन के अधिकारियों ने घूस भी खाई। लेकिन अंतर इस बात का है कि मामला आंतरिक वार्तालाप से तय हो गया। सड़क भी शीघ्र बन गयी और उद्यमी भी परेशान नहीं हुआ। इस प्रकार जो विवादित मामले हैं उनको आमने सामने बैठकर हल कर लिया जाता है जिससे चीन की अर्थव्यवस्था में उत्पादन लागत कम पड़ती है। लेकिन श्रम कानून और भ्रष्टाचार को नियंत्रण करना भारत के लिए एक कठिन कार्य है। इस परिस्थिति में सरकार को चाहिए चीन से आयातित होने वाले माल पर आयातकर बढ़ाए और यदि जरूरत हो तो इस कार्य को करने में विश्व व्यापार संगठन के बाहर भी आ जाए क्योंकि अपने देश की जनता के रोजगार की रक्षा करना प्राथमिक है। सरकार को गंभीरता से मौलिक कदम उठाने चाहिए अन्यथा अर्थव्यवस्था की गति बिगड़ते ही जाने की संभावना बनती ही जा रही है।   


गांधी संजीवनी को संक्रमण साबित करती सामाजिक समझ.....

गांधी संजीवनी को संक्रमण साबित करती सामाजिक समझ
डॉ. दीपक पाचपोर 
तीन घटनाएं- पहली, भारतीय जनता पार्टी प्रशासित एक राज्य के एक स्कूल में परीक्षा के दौरान सवाल पूछा गया-महात्मा गांधी ने आत्महत्या क्यों की थी?दूसरी, कांग्रेस प्रशासित एक राज्य के पत्रकारिता व जनसंचार विश्वविद्यालय में एक प्रसिद्ध गांधीवादी विद्वान के मुख्य आतिथ्य में गांधीजी पर आयोजित हुए एक सेमीनार के प्रश्नोत्तर सत्र में एक युवा छात्र ने बगैर नाम लिए परंतु बड़े ही स्पष्ट संकेतों में मुस्लिमों के लिए कहा- संक्रमण। तीसरी, जहां न भाजपा की सरकार है न कांग्रेस की। तीसरे दल की है। वहां शालेय छात्रों को बताया गया कि गांधीजी की मौत दुर्घटनावश हुई थी।स्कूली बच्चों को तो आत्महत्या वाले या दुर्घटना वाले सवाल की गंभीरता और उसके पीछे छिपी मंशा समझ में नहीं आई होगी लेकिन पत्रकारिता विश्वविद्यालय में जिस छात्र ने संक्रमण वाली बात कही थी वह वयस्क हो चुका है। उसे मतदान का अधिकार है और वह जल्दी ही (संभवतः) पत्रकारिता या विचारों के प्रसार संबंधी अथवा ऐसे ही किसी पेशे में उतरेगा। स्कूली छात्रों ने  अपनी अल्प समझ के अनुरूप आत्महत्या वाले सवाल का जवाब दिया होगा जबकि पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र ने वह सवाल बड़े ही निश्चयात्मक ढंग से पूछा। पूरे आत्मविश्वास के साथ। स्पष्ट है कि उसकी राजनैतिक-सामाजिक मान्यताएं एक तयशुदा बिंदु पर स्थापित हो चुकी हैं। सहपाठी श्रोता छात्र उसके सवाल पर न सिर्फ गदगद थे बल्कि प्रश्नकर्ता के उत्साह को अपनी खिलखिलाहट से हौसला भी दे रहे थे। सवाल की गंभीरता को छात्र नहीं समझ रहा है तो यह चिंताजनक है। अगर समझ रहा है तो यह अधिक चिंता की बात है। यह बेहद कुटिल व सुनियोजित खेल है जो छोटे बच्चों में इस तथ्य को ठूंस रहा है कि गांधी ने आत्महत्या की थी। यह भ्रामक बात इसलिए उनके दिमाग में भरी जा रही है ताकि वे यह न जान सकें कि गांधी की हत्या हुई थी, उनका कोई हत्यारा था और हत्यारे की कोई सामाजिक सोच भी थी। आत्महत्या इसलिए बतानी पड़ रही है कि कुछ समय बाद इतिहास से हत्या, हत्यारे व हत्याकारी विचारधारा की बात मिट जाए। इसी तरह, युवाओं में मुस्लिमों, दलितों, गरीबों, शोषितों, बुद्धिजीवियों, प्रगतिशीलों व समग्र रूप से वैचारिक विरोधियों को संक्रमण समझने व इस नाम से संबोधित करने वालों की संख्या में इन दिनों भरपूर इजाफा हुआ है। उन्हें न सिर्फ अवांछनीय माना जाने लगा है, बल्कि उनसे संबंधित फैसले लेने का अधिकार भी बहुमत वाली सरकार और बहुसंख्यकों ने अपने पास कब्जिया लिया है। गांधी की कथित आत्महत्या या दुर्घटना व अल्पसंख्यकों को श्संक्रमणश् समझने के बीच गहरा संबंध है। जो गांधीजी की हत्या के सही कारणों को छिपाना चाहते हैं, वे ही अल्पसंख्यकों को अवांछनीय समझते हैं व उन्हें इस देश से चलता करना चाहते हैं। सोचिये कि गांधी से विपरीत विचारधारा पर चलने वाले लोग आखिर उनकी मृत्यु के इतने वर्षों के बाद भी किसलिए उनकी लुकाठी से भयभीत होते हैं। कारण है, गांधी की देश में नैतिक उपस्थिति जो केन्द्रीकरण, असमानता, पूंजीवाद, साम्प्रदायिकता के खिलाफ तन जाती है।  जो इस दूषित व मध्ययुगीन विचारों-व्यवस्था के पैरोकार हैं, गांधीजी उनका मकसद आज भी पूरा नहीं होने दे रहे हैं। हालांकि यह विडम्बना अपनी जगह पर बनी हुई है कि गांधी विरोधी शक्तियां और ज्यादातर सरकारें अपने काम गांधीजी के ही नाम पर करती आई हैं लेकिन यह सरकार जिन शक्तियों और विचारों के घोल से बनी है उसे पानी बना देने की ताकत गांधी दर्शन में है। इसलिए वे शक्तियां गांधी के नाम को ही पूर्णतरू विलोपित कर देना चाहती हैं। वर्तमान शासकों की मजबूरी यह है कि दुनिया भारत को उनके नाम से नहीं बल्कि गांधी-नेहरू के कारण जानती है। अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करने के लिए उन्हें गांधी प्रतिमाओं के समक्ष बार-बार झुकना पड़ता है और विदेशों में कहना भी पड़ता है कि श्दुनिया के हर बच्चे की जुबान पर गांधी का नाम होना चाहिये।श् इसी बोझ व लाचारगी को हमेशा के लिए मिटाने हेतु एक सुनियोजित व चरणबद्ध तरीके से वे गांधी विसर्जन का गुपचुप अभियान चला रहे हैं। छोटे बच्चों को गांधी द्वारा आत्महत्या किए जाने के पाठ पढ़ाने से इसकी शुरुआत की गई है। भविष्य में बच्चों को यह पढ़ने को भी मिल सकता है कि गांधीजी ने गोडसे की हत्या की थी और आत्मग्लानि में खुदकुशी कर ली थी। समाज में गांधी के प्रति बचपन से नफरत की घुट्टी पीकर यह पीढ़ी जब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पहुंचती है तो उन्हें अल्पसंख्यकों, दलितों, समतावादियों, बुद्धिजीवियों, प्रगतिशील व आधुनिक विचारकों-व्यक्तियों को संक्रमण मान लेने में कोई गुरेज नहीं होता। आशंका है कि आगे किसी भी क्षेत्र में जाने वाली यह पीढ़ी अपने-अपने स्तर पर समाज की जहरखुरानी करेगी। अगर ये लोग मीडिया और लेखन के क्षेत्र में जाते हैं तो इन्हीं विचारों को समाज में फैलाएंगे। यह बेहद खतरनाक स्थिति होगी। वैसे ये शक्तियां काफी पहले से गांधी के कामों और दर्शन के खिलाफ रही हैं। बापू की छोड़ी वैचारिक विरासत के प्रति उनका विरोध आज भी कम नहीं हुआ है। उनके लिए गांधीवादी विचारों और मान्यताओं को समाप्त करना इसलिए जरूरी है क्योंकि गांधी समानता, नागरिक स्वातंत्र्य, बंधुत्व, साम्प्रदायिक सौहार्द्र, शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के विचारों को फैलाते रहे हैं जबकि ये शक्तियां असमानता, और वर्णीय-वर्गीय श्रेष्ठता की सामाजिक प्रणाली में भरोसा करती हैं। संसाधनों, अवसरों, उत्पादन और पूंजी के केन्द्रीकरण में उनका विश्वास है। इसलिए वे न सिर्फ गांधी बल्कि उन सभी व्यक्तियों-संगठनों- विचारों का सफाया करना चाहती हैं जिनका उद्देश्य समतामूलक, शोषणरहित, विकेंद्रित व धार्मिक सद्भाव वाला समाज रचने में है। विचारों, समूहों और संस्कृति की विविधता में जो यकीन नहीं करते, वे लोग बापू की बातें करने वालों को या तो खत्म कर देंगे अथवा उन्हें राष्ट्रीय विचारधारा से अलग कर देंगे।  यह न हो सका तो उन्हें बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। आत्महत्या-दुर्घटना संबंधी सवाल से लेकर संक्रमण तक की विचारधारा के पीछे यही अभियान चलाया जा रहा है। ऐसा नहीं कि पहले ऐसे व्यक्तियों, संगठनों और शक्तियों की हमारे समाज में उपस्थिति नहीं थी। बेशक थी, परंतु वे समाज की नियति और नीति को निर्धारित करने की सामर्थ्य नहीं रखते थे। चूंकि अब सत्ता एवं उसके माध्यम से समग्र समाज पर उनकी पकड़ बन गई है, उनका प्रयास यही है कि अगले कुछ वर्षों में हमारे परिदृश्य व स्मृतियों से गांधी को पूरी तरह से बेदखल कर दिया जाए। इसके तहत पिछले कुछ समय से गांधी विरोधी तत्व दो स्तरों पर कार्य कर रहे हैं। एक-गांधी को या तो इतिहास से गायब किया जाए अथवा उनका ऐसा चरित्र हनन किया जाए कि वे नई पीढ़ी के लिए घृणा के पात्र बनकर रह जाएं। उनका नामो-निशान तक मिटा देने के लिए शैक्षिक पाठ्यक्रमों से उनका शनैः शनैः विलोप कर दिया जाए। इसीलिए उनकी हत्या को आत्महत्या बताया जा रहा है। चरित्र हत्या के लिए गांधीजी के असंख्य फोटोशॉप्ड (कांट-छांट किये हुए) चित्र इंटरनेट के माध्यम से प्रसारित किए जाते हैं। उनके बारे में तथ्यात्मक व ऐतिहासिक भ्रम पैदा किए जा रहे हैं। नई टेक्नालॉजी ने ऐसे लोगों का काम आसान कर दिया है। जिस प्रकार हम नहीं जानते कि पिछले सैकड़ों सालों के दौरान नष्ट हो चुके अनगिनत शिलालेखों, भोजपत्रों, कपड़ों पर किन लोगों के नाम लिखे गए थे, उनके बारे में क्या उल्लेखित किया गया था, और जिस प्रकार वह सारा कुछ नष्ट हो गया, वैसे ही धीरे-धीरे उन दस्तावेजों को भी नष्ट कर दिया जाएगा जिनमें या तो गांधी का उल्लेख है अथवा मानवता को उनके योगदान की चर्चा है। कमजोर विपक्ष, मरणासन्न मीडिया, पूंजीवादी प्रश्रय, राष्ट्रवाद का मुलम्मा और अंध राजनैतिक श्रद्धा के चलते प्रतिरोध के अभाव की जो स्थिति निर्मित हुई है, उससे उत्साह पाकर गांधीजी से नफरत करने तथा उनके विचारों में विश्वास न रखने वाले लोग-संगठन उन्हें नष्ट करने पर तुले हैं। अब गांधी दर्शन को तो नागरिकों को बचाना होगा क्योंकि गांधी न सत्ता के थे, न राजनैतिक दलों के। उनका संबंध व जुड़ाव एकमेव जनता से था। हम सबके लिए जरूरी है कि नई पीढ़ी के मन में उनके प्रति भरे जा रहे जहर के खिलाफ उन्हें वास्तविकता बताई जाए। उन्हें यह भी बताना आवश्यक है कि गांधी उनके लिए, हमारे लिए, संपूर्ण मानवता के लिए क्यों अपरिहार्य हैं। दरअसल, मूर्छित समाज के लिए गांधीजी तो संजीवनी हैं। उन्हें संक्रमण समझना भूल होगी।


चीन में शिक्षा की नीति....

चीन में शिक्षा की नीति
डॉ राजीव रंजन
प्राध्यापक, शंघाई विवि
अपनी साइकिल में हवा भरवाने के लिए शंघाई विवि के सिविल इंजीनियरिंग में एमएससी का एक छात्र कैंपस की दुकान में आया. साइकिल मिस्त्री ने ट्यूब चेक करके बताया कि कई पंक्चर हैं. फिर उसने कहा कि नया ट्यूब लगवा लो. छात्र ने कीमत पूछी, तो मिस्त्री ने एक की कीमत 29 आरएमबी (लगभग 290 रुपया) और दूसरे की 35 आरएमबी (350 रुपया) बताया. छात्र ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोला, पंक्चर ही लगा दो. पंक्चर 70 रुपया का था. चाहे जेएनयू हो, शंघाई विवि हो या फिर अमेरिका का जॉन हॉपकिंस हो, एक छात्र की समस्या एक है- छात्र पैसा कहां से लाये. कर्ज लेकर पढ़ना तो बाजार का व्यापार है, राष्ट्र का निर्माण नहीं। वह छात्र चीन के हनान प्रांत से था. वहीं जहां से ह्वेनत्सांग भारत आया और नालंदा विवि में शिक्षा हासिल की. हनान और बिहार की हालत एक जैसी है. जनसंख्या ज्यादा और कोई ढंग का उच्च शिक्षा संस्थान नहीं. न उद्योग हैं, न खेती लायक ज्यादा जमीन. शिक्षा और नौकरी के लिए वहां से लोग दूसरे प्रांत में पलायन कर जाते हैं.चीन में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुफ्त और उच्च कोटि की हैं. वहां माध्यमिक शिक्षकों का वेतन भी विवि से कम नहीं हैं, कहीं-कहीं तो ज्यादा है. सरकारी मुलाजिमों, नेताओं के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. ऐसा नहीं हैं कि ग्रामीण और शहरी वातावरण में अंतर नहीं है. लेकिन, चीन की सरकार इस बात की कोशिश कर रही है कि ग्रामीण छात्रों को भी शहरी छात्रों के समकक्ष लाया जा सके.अधिकतर माध्यमिक विद्यालय आवासीय हैं. शंघाई में मेरे घर के पास एक माध्यमिक विद्यालय है. यहां पांच-सात हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते होंगे. जब मैं नया आया था, तो पता ही नहीं चला कि कोई विद्यालय भी यहां है. सुबह या शाम में विद्यार्थियों का कोई हुजूम नहीं दिखता था. शुक्रवार की शाम कुछ बच्चे घर जाते हैं, फिर रविवार की शाम तक वापस.कमोबेश यही हर स्कूल में होता है. यह विकास का एक प्रतिफल है. शहरों में मां-बाप के पास समय नहीं, तो बच्चे हॉस्टल में. लेकिन, यह व्यवस्था ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये बच्चों के लिए वरदान है. हैं तो ये सरकारी विद्यालय, लेकिन पढ़ाई किसी निजी विद्यालय से कम नहीं है. दिल्ली सरकार भी कोशिश कर रही है कि सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया करायी जाये. बिना किसी भेदभाव और ऊंच-नीच के सब बच्चों के लिए शिक्षा जरूरी है.शिक्षा के क्षेत्र में भारत जैसा बाजारीकरण कहीं नहीं हैं. चीन में स्नातक की शिक्षा मुफ्त नहीं है, लेकिन सबको एक प्रवेश राष्ट्रीय परीक्षा (काओ खाओ) पास करनी होती है. चीनी विद्यार्थियों के लिए दुरूस्वप्न है यह परीक्षा. वैसे ही जैसे भारत में मेडिकल या इंजीनियरिंग के लिए नीट, एम्स या आईआईटी, जेईई और राज्य स्तरीय कई परीक्षाएं हैं.लेकिन चीन में कला और सामाजिक विज्ञान के लिए भी यही 'काओ खाओ' परीक्षा है. स्पर्धा टक्कर की होती है. आपके उच्च प्राप्तांक से किसी उच्च रैंकिंग वाले विश्वविद्यालय, जैसे बीजिंग, छिंगहुआ और फूदान आदि विश्वविद्यालयों में आपको नामांकन मिल सकता है, जो किसी भी चीनी विद्यार्थी का सपना होता है. अल्पसख्यकों के लिए वहां प्राप्तांकों में विशेष छूट दी जाती है. 'काओ खाओ' की शुरुआत 1952 में हुई थी, लेकिन माओ के 'सांस्कृतिक क्रांति' के दौरान स्थगित कर दिया गया था. फिर दंेग शिआओ पिंग ने 1977 में इसे शुरू कराया, जो अब प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है. चीन के विवि विश्व स्तर की शिक्षा प्रदान करते हैं, जिससे युवाओं के भविष्य और करियर को अच्छी शुरुआत मिलती है. चीन में एक कहावत है- अगर आप चीन के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, तो कम से कम छिंगहुआ विवि में पढ़ तो सकते ही हैं. छिंगहुआ ने चीन को कई राष्ट्रपति दिये हैं. तात्पर्य यह है कि काओ खाओ एक बहुत ही कठिन और प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा है.आप आईआईटी में इंजीनियरिंग पढ़ें या पटना बीएन कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान पढ़ें, पचास-साठ हजार रुपये एक साल की फीस है. स्नातक में सबको छात्रवृत्ति तो नहीं मिलती है, पर विश्वविद्यालय जरूरतमंदों को सहायता देता है. पानी मुफ्त है और कहीं 20 यूनिट, तो कहीं 80 यूनिट बिजली फ्री हर विद्यार्थी को मिलती है. परास्नातक की साठ हजार से एक लाख बीस हजार रुपये है. इतना ही सालाना छात्रवृत्ति भी है. वहीं लगभग हर विद्यार्थी को अपने सुपरवाइजर से कम से कम पांच हजार रुपया मासिक मिलता है, जो महीनेभर का खर्च है. चीन में शिक्षा को लेकर आंदोलन हुआ है. पहले शिक्षा सिर्फ संभ्रांत परिवारों तक ही सीमित थी. चीन की 70वीं वर्षगांठ पर शिक्षा मंत्रालय ने एक डाॅक्यूमेंट्री बनायी- श्शिक्षा राष्ट्र को मजबूत बनाती है. यह डॉक्यूमेंट्री चीनी सरकार के शिक्षा सुधारों और उसके परिणाम को बताती है. 
आज विश्व में सबसे ज्यादा पेटेंट चीन में कराया जा रहा है, यह सब एक दिन में नहीं हुआ. इसके लिए पूरी रणनीति तैयार की गयी है. आज चीनी छात्र दुनिया के नामी-गिरामी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं. वहीं चीनी विवि भी विश्व रैंकिंग में अपनी पैठ बना रहे हैं. शिक्षा किसी राष्ट्र की आधारशिला है. शिक्षा से ही किसी राष्ट्र और वहां रहनेवाले व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल और सकारात्मक बदलाव आ सकता है. किसी देश का वर्तमान में शिक्षा पर किया गया खर्च उस देश के उज्ज्वल भविष्य का संकेत है.


श्रीलंका से तालमेल....

श्रीलंका से तालमेल जरूरी
डॉ गुलबिन सुल्ताना
श्रीलंका मामले की विशेषज्ञ, आईडीएसए
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में गोताबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बन गये हैं. गोताबाया भी उसी राजपक्षे परिवार से हैं, जिससे पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे आते हैं. ये महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हें. गोताबाया राजपक्षे श्रीलंका के आठवें राष्ट्रपति हैं. श्रीलंका पोडुजना पेरमुना (एसएलपीपी) पार्टी के गोताबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत के बाद कहा कि अब हम श्रीलंका के लिए एक नयी यात्रा शुरू करते हैं, और हमें यह याद रखना चाहिए कि श्रीलंका के सारे नागरिक इस यात्रा का प्रमुख हिस्सा हैं. यह एक राजनीतिक बयान है. अब इनका कार्यकाल कैसा होगा, यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा, लेकिन इतना जरूर है कि श्रीलंका की पिछली सरकारों की नीतियां और गतिविधियां भारत के नजरिये से सकारात्मक नहीं रही हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि श्रीलंका से लिट्टे के खत्म होने के बाद वहां आतंकवाद पूरी तरह से खत्म हो गया, लेकिन इसी साल अप्रैल में हुए सीरियल बम धमाकों ने इस बात को नकार दिया. दरअसल, श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय में रक्षा सचिव के पद पर रहते हुए गोताबाया ने कुछ अच्छे काम किये थे, जिससे श्रीलंका में आतंकवाद उभरने नहीं पाया. इसमें दो राय नहीं कि साल 2005 में रक्षा सचिव बनने के बाद लिट्टे के खात्मे में गोताबाया की अहम भूमिका थी. उस समय गोताबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे. उस दौरान गोताबाया ने सुरक्षा की व्यवस्था को चाकचैबंद किया और श्रीलंका में कोई आतंकवादी गतिविधि न होने पाये, इसका भी इंतजाम किया था. लेकिन, उस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी नीतियां भी बनायी थीं, जो मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन करती थीं. इसके लिए गोताबाया की काफी आलोचना भी हुई थी और उन्हें इस उल्लंघन का आरोपी तक माना गया था. साल 2015 तक वे रक्षा सचिव रहे. लेकिन उसके बाद श्रीलंका में सुरक्षा के साथ समझौते हुए और वहां स्थितियां ऐसी बन गयीं कि आतंकवादी हमले तक हो गये. गोताबाया की जीत में यह भी एक बड़ा फैक्टर रहा है. एसएलपीपी के गोताबाया राजपक्षे की सोच एक तरह से अमेरिका विरोधी रही है. वहीं एसएलपीपी एक राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में भी जानी जाती है.यही वजह है कि चुनावों के दौरान गोताबाया की पार्टी ने आतंकवाद को भुनाया, जिसका उन्हें फायदा भी मिला है. गोताबाया के पहले श्रीलंका में संप्रभुता के साथ खूब खिलवाड़ किया गया, जिसमें अमेरिकी संस्थाओं का दखल बढ़ गया था. इसके खिलाफ भी गोताबाया की पार्टी खड़ी हुई और उसने संप्रभुता के मुद्दे को उछाला. 
इस साल अप्रैल में हुए हमले के पहले श्रीलंका सरकार और अमेरिका के बीच एक सैन्य समझौता होनेवाला था और एक आर्म डील साइन होनेवाली थी, जिसके बाद श्रीलंका को सामरिक संसाधन उपलब्ध होता. उस समय राष्ट्रवादी पार्टियां उस डील का विरोध कर रही थीं. हालांकि उससे पहले हमला हो गया और वह डील नहीं हो पाया. गोताबाया राजपक्षे ने इस मसले को चुनाव में उठाया था और श्रीलंका के लोगों को संप्रभुता से समझौता न होने देने का वादा किया. जाहिर है, किसी भी पड़ोसी देश की संप्रभुता के कमजोर या मजबूत होने का असर उसके पड़ोसी देशों पर भी पड़ता है. इसलिए भारत को गोताबाया को बधाई देने के साथ ही अपने द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए नये सिरे से सोचना होगा. गोताबाया की जीत में भले ही वहां के आंतरिक फैक्टर काम आये हैं, लेकिन इसमें एक और फैक्टर चीन का भी है, जिसकी ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है. साल 2005 से 2015 के बीच गोताबाया के श्रीलंका का रक्षा सचिव रहने के दौरान श्रीलंका का रुख चीन के तरफ झुकने लगा था. श्रीलंका एक संप्रभु राष्ट्र है, वह अपने लिए कोई भी नीति बना सकता है.एक संप्रभु राष्ट्र को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसकी नीतियों का उसके पड़ोसी देशों पर नकारात्मक असर न पड़े. इस बात का श्रीलंका ने ध्यान नहीं दिया और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे पूरी तरह से चीन की तरफ हो गये थे. इस दौरान श्रीलंका ने अपने पड़ोसी भारत की खूब अनदेखी की. 
यही वजह है कि अब गोताबाया के राष्ट्रपति बनने के बाद यह आशंका बलवती हो गयी है कि भारत-श्रीलंका संबंधों में क्या कुछ होगा. लेकिन, बीते समय के अनुभव यही बताते हैं कि अब फिर से श्रीलंका की विदेश नीति में चीन की तरफ झुकाव देखने को जरूर मिलेगा. यही वह बात है, जो भारत के नजरिये से ठीक नहीं है. क्योंकि भारत उसका बड़ा पड़ोसी देश है और भारत-श्रीलंका रिश्तों के अपने वृहद आयाम भी रहे हैं, जिसमें कुछ साल पहले चीन ने सेंध लगाकर श्रीलंका को अपनी ओर खींच लिया था. चुनावों के पहले महिंदा राजपक्षे जब भी भारत आकर यहां के नेताओं से मिले और उस समय उन्होंने इस बात को माना कि भारत के संबंध में उन्होंने कुछ गलतियां की हैं, जिससे दोनों देशों के रिश्ते पर असर पड़ा. फिर आश्वासन भी दिया कि अगर वे सत्ता में आते हैं, तो आगे ऐसी गलतियां नहीं होंगी और भारत एवं चीन को लेकर एक बैलेंस पॉलिसी को लेकर श्रीलंका आगे बढ़ेगा. लेकिन, इन बातों में कितना भरोसा है, यह इस बात से भी देखा जाना चाहिए कि अब श्रीलंका किस नीति पर चलता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि राजपक्षे परिवार तमिल िवरोधी है, और गोताबाया राजपक्षे की नीति कभी श्रीलंका के अल्पसंख्यकों (तमिल और मुस्लिम) के पक्ष में नहीं रही है. हो सकता है कि यह श्रीलंका का अंदरूनी मामला हो, लेकिन भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों के आयाम को देखते हैं, तो इसमें भारत पर असर होता दिखता है. दोनों देश पड़ोसी हैं, इसलिए अगर वहां तमिलों को लेकर कोई नकारात्मक गतिविधि उत्पन्न होती है, तो जाहिर है इसका सीधा असर भारत में बसनेवाले तमिलों पर भी पड़ेगा. यह स्थिति श्रीलंका और भारत के आर्थिक, सामाजिक और कूटनीतिक संबंधों पर असर लायेगी ही. फिलहाल, भारत की यह कोशिश होनी चाहिए कि गोताबाया राजपक्षे और श्रीलंका सरकार के साथ हमेशा एक तालमेल हो, ताकि श्रीलंका का जो चीन की तरफ झुकाव है, उसको अपनी तरफ मोड़ा जा सके. क्योंकि चीन की यह कोशिश है कि सभी देशों को अपने साथ करके दक्षिण एशिया में अपनी ताकत मजबूत करे. भारत के नजरिये से इस स्थिति पर नजर बनाये रखने के लिए भी श्रीलंका से तालमेल बिठाना होगा और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाना होगा. 


बुधवार, 20 नवंबर 2019

बनाना टी पीएं और दूर भगाएं बीमारियां, जानिए चाय बनाने का तरीका

बनाना टी पीएं और दूर भगाएं बीमारियां, जानिए चाय बनाने का तरीका
दुनिया में अधिकतर लोगों के दिन की शुरुआत चाय के साथ होती है बस फर्क इतना ही कि कुछ लोग दूध वाली तो कुछ अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए ग्रीन, ब्लैक टी पीना पसंद करते है। इसी के साथ आम घरों में आपने इलायची, गुड़, सौंफ, अदरक वाली चाय तो सुनी होगी लेकिन केले की चाय सुन कर जरुर हैरान हो जाएंगे। जी हां, केला जितना हमारी सेहत के लिए लाभदायक है उतना ही इससे बनी चाय भी सेहत के लिए लाभदायक है। चलिए आज हम आपको बताते है कैसे केले की चाय बनती है।
साम्रगी
- 2 कप पानी
- छिलके सहित केले
- आधा टीस्पून दालचीनी 
-  टीस्पून शहद 
विधि
एक पैन में 2 कप पानी डाल कर इसमें छिलके समेत केले डाल कर 15 मिनट तक उबालें। इसके बाद इसे कप में डाल लें। टेस्ट के लिए आप इसमें दालचीनी पाउडर और शहद मिला लें। आपकी केले वाली चाय तैयार है।
फायदा 
- पूरे दिन की थकावट के बाद चाय का सेवन करने से नींद अच्छी आती हैं। 
- दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। 
- मैग्नीशियम, पोटैशियम और एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर चाय का सेवन करने से पेट से जुड़ी की प्रॉब्लम को दूर करता है। 
- अगर आपको कब्ज की समस्या है तो रोज चाय पीने से यह दूर हो जाएगी। 
- चाय पीने से टेंशन कम होती है और तनाव भी कम होता है। 
- इसमें मौजूद  एंटीऑक्सीडेंट और पोष्टिक तत्व नर्वस सिस्टम को रीलैक्स करने में मददगार होते हैं। 
-  इसमें विटामिन ए,बी, पोटेशियम, ल्यूटिन और अन्य एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण आपका वजन तेजी से कम होता है



प्राइवेट पार्ट को नुकसान पहुंचाती है रोजाना की ये 6 गलतियां

प्राइवेट पार्ट को नुकसान पहुंचाती है रोजाना की ये 6 गलतियां
शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए सिर्फ खान-पान अच्छा होनी ही काफी नही है,इसके लिए शरीर को साफ होना भी बहुत जरूरी है। कुछ लड़कियां चेहरा,हाथ-पैर,नाखून और बालों की तरफ तो ध्यान देती हैं लेकिन प्राइवेट पार्ट को साफ रखने की तरफ ध्यान नहीं देती। शायद कुछ लोग यह नहीं जानते कि प्राइवेट पार्ट के गंदे होने से सेहत संबंधी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। वेजाइना को स्वस्थ रखने के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।
न करें साबुन का इस्तेमाल
वेजाइना की स्किन बहुत ही सैंसिटिव होती है। साबुन के इस्तेमाल से एलर्जी होने का खतरा रहता है। कैमिकल युक्त साबुन के इस्तेमाल से त्वचा का नैचुरल चभ् बैलेंस बिगड़ जाता है। जिससे बैक्टिरिया इंफैक्शन भी हो सकती है। सिर्फ पानी या फिर फैमिनी वाश का इस्तेमाल बैस्ट है।
कॉटन पैंटी है पर्फैक्ट
आजकल बाजार में कई तरह के फैब्रिक में पैंटी मिलती हैं लेकिन कॉटन का फैब्रिक स्किन के लिए बैस्ट है। रोजाना नायलॉन फैब्रिक पहनने से स्किन पर जलन होने का डर भी रहता है।
रात के समय न पहनें अंडरवियर
सारा दिन अंडरवियर पहनें रखती हैं तो इससे स्किन के जींस प्रभावित होते हैं। इससे त्वचा के टीशू खराब होने का जर रहता है। जिससे कमजोरी भी आ सकती है। रात को सोते समय पैंटी उतार कर और खुले कपड़े पहन कर सोएं
डाइट का भी रखें ख्याल
संतुलित आहार अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है। क्रैनबेरी जूस और दहीं को अपनी डाइट में शामिल करें।
संबंध बनाने से पहले भी रखें सफाई
पार्टनर के साथ संबंध बनाने के पहले और बाद में प्राइवेट पार्ट की सफाई का खास ख्याल रखें। इससे दोनों को इंफैक्शन का खतरा हो सकता है।
एक्सरसाइज भी है जरूरी
कुछ औरतें समय की कमी होने के कारण एक्सरसाइज के लिए वक्त नहीं निकाल पाती। थोड़ा-सा वक्त निकाल आसान व्यायाम जरूर करें। इससे प्राइवेट पार्ट की स्किन के टीशू अच्छे रहते हैं और खून का दौरा भी ठीक तरह चलता रहता है।


प्रेग्नेंट महिलाएं भूलकर भी ना पीएं प्लास्टिक बोतल में पानी


प्रेग्नेंट महिलाएं भूलकर भी ना पीएं प्लास्टिक बोतल में पानी
आजकल लोग घर से बाहर निकलते वक्त अपने साथ या फिर बाहर से खरीदकर प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं। मगर शायद आप नहीं जानते कि प्लास्टिक की बॉटल में पानी पीना आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है। खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को प्लास्टिक की बॉटल में पानी पीने से खास परहेज करना चाहिए क्योंकि इसका असर उनके साथ-साथ कोख में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। शोध के अनुसार जिन प्लास्टिक बॉटल्स में हम पानी पीते हैं, वे बोतलें कूड़े-कर्कट को रीसाइकल करने के बाद तैयार की जाती हैं। साथ ही अगर आप पानी की बोतल बाहर से खरीदते हैं तो पता नहीं होता कि उनमें पानी कब से स्टोर है। ढके हुए बर्तन या फिर बोतल में पानी 4 से 5 घंटे के बाद पीने लायक नहीं रहता। ऐसे में यदि गर्भवती महिला पुराने पडेघ् पानी का सेवन करेगी तो खुद ही सोचें उसकी सेहत और बच्चे के विकास पर भला कितना बुरा असर डलेगा।
बच्चे पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव
प्लास्टिक की बॉटल में पानी पीने से गर्भ में पल रहे बच्चे के शुक्राणुओं पर गहरा असर डलता है। जिस वजह से उसका विकास धीमी गति से होता है। साथ ही जन्म लेने वाले बच्चे को डायबिटीज और दिल से जुड़ी बिमारियां होने के चांसिस रहते हैं।
प्रेगनेंसी में दिक्कत
इसी के साथ जो महिलाएं गर्भधारण करने के बारे में सोच रही हैं, उनके लिए भी यह प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना नुकसानदायक सिद्ध होता है। जिस वजह से गर्भधारण करने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
सिस्ट (गांठे)
इस तरह प्लास्टिक बॉटल में पानी पीने से व्अंतपमे में गांठे बनने लगती है। जिस वजह से शरीर में फैट और अन्य कई समस्याओं का महिलाओं का सामना करना पड़ता है।
तो ये थी प्लास्टिक वाली बॉटल में पानी पीने से सेहत को पहुंचने वाले नुकसान। प्लास्टिक की जगह अपने पास तांबे या फिर मेटल से बनी पानी की बॉटल रखें। 
तांबे के फायदे
तांबा यानि कॉपर, कॉपर से तैयार बॉटल में पानी पीने से शरीर को बहुत से लाभ मिलते हैं। तांबा जहां शरीर में कॉपर की कमी को पूरा करता है वहीं इससे आपके शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत भी मिलती है। तांबे में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण शरीर में दर्द, ऐंठन और सूजन की समस्या नहीं होती। ऑर्थराइटिस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। तो आज से ही यदि आप प्लास्टिक बॉटल में पानी पीने की जगह तांबे की बोतल अपने पास रखें और उसी पानी का सेवन करें। 



टैंक टाॅप में स्टनिंग दिखीं 44 की शिल्पा, पति का हाथ थाम यूं दिए पोज

टैंक टाॅप में स्टनिंग दिखीं 44 की शिल्पा, पति का हाथ थाम यूं दिए पोज
एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी काफी लंबे समय से  स्लिवर स्क्रीन से दूर हैं लेकिन वह अपनी तस्वीरों की वजह से सोशल साइट पर छाईं रहती हैं। शिल्पा अपने स्टाइल से अच्छे अच्छों को मात देती हैं। वह हमेशा ही दम डिफरेंट ड्रेस और स्टाइल कैरी करती हैं। यही वजह से है कि लड़कियां उन्हें फैशन दिवा कहती हैं। 44 की पार ये एक्ट्रेस आज भी अपने लुक से सबको इंप्रेस करती हैं। हाल ही में एक बार फिर शिल्पा की कुछ तस्वीरें सोशल साइट पर छाईं हुईं हैं। दरअसल, बीती रात सलमान खान की बहन अर्पिता खान ने उनकी शादी की पांचवीं एनिवर्सरी पर ग्रैंड पार्टी दी, जिसमें बाॅलीवुड के कई स्टार्स ने शिरकत की। इसी पार्टी में शिल्पा भी पति राज कुंद्रा के साथ पहुंची। इस दौरान एक्ट्रेस ब्लैक टैंक टाॅप के साथ स्लिवर पैंट में स्टनिंग दिखीं। इसके साथ मिनिमल मेकअप,ब्राउन लिपस्टिक और खुले बाल और शेड्स उनके लुक को कम्पलीट कर रहे हैं। इस लुक में शिल्पा काफी अच्छी लग रही हैं। वहीं राज जींस-टी-शर्ट में हैंडसम दिखे। गाड़ी से उतरकर शिल्पा ने पति राज का हाथ थाम कई पोज दिए। एक्ट्रेस की ये तस्वीरें सोशल साइट पर काफी वायरल हो रही हैं। फैंस उनकी इन तस्वीरों को काफी पसंद कर रहे हैं। काम की बात करें तो शिल्पा जल्द ही फिल्म श्निकम्माश् में नजर आएंगी। फिल्म में शिल्पा राइटर का किरदार प्ले करेंगी। इस फिल्म के जरिए वह 13 साल बाद बड़े पर्दे पर कमबैक कर रही हैं। फिल्म में अभिमन्यु दासानी और शिरले सेतिया लीड रोल में हैं। इसका निर्देशक शब्बीर खान ने किया है। ये फिल्म अगले साल गर्मियों में रिलीज होने जा रही है। 



इमरान संग बोल्ड लुक में नजर आईं वेदिका, स्टाइलिश ड्रेस में बिखेरी दिलकश अदाएं

इमरान संग बोल्ड लुक में नजर आईं वेदिका, स्टाइलिश ड्रेस में बिखेरी दिलकश अदाएं
एक्टर इमरान हाश्मी बॉलीवुड के रोमांस किरदार में सबसे चर्चित एक्टर्स की लिस्ट में से एक हैं। जल्द ही इमरान एक बार फिर रोमांटिक ट्रेक से भरपूर फिल्म द बॉडी में नजर आने वाले हैं। फिल्म में एक्ट्रेस वेदिका कुमार इमरान की गर्लफ्रेंड में किरदार में नजर आएंगी। हाल ही में दोनों स्टार्स को फिल्म की प्रमोशन के दौरान बिंदास लुक में स्पॉट किया गया, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। इस दौरान एक्ट्रेस वेदिका कुमार ब्लू कलर की वन पीस ड्रेस में दिलकश अदाएं बिखेर रही हैं। बेहद खूबसूरत स्टाइलिश ड्रेस के साथ वेदिका ने रेड कलर की हील पेयर की हुई हैं। मिनिमल मेकअप, इयररिंग्स, ओपन हेयर्स एक्ट्रेस के लुक को चार-चांद लगा रहे हैं। दूसरी ओर एक्टर इमरान हाशमी व्हाइट जैकेट, ब्लू जीन्स और व्हाइट शूज जबरदस्त लुक में अपना स्वैग दिखा रहे हैं। काम की बात करें तो फिल्म द बॉडी में इमरान हाशमी और वेदिका कुमार अहम किरदार में नजर आएंगे। डायरेक्टर जीतू जोसेफ द्वारा निर्देशित यह फिल्म 13 दिसंबर को सिनेमा घरों में रिलीज होगी।



मनीष मल्होत्रा के पिता की शोक सभा में हंसती दिखीं करीना,लोग बोले-बेशर्म

मनीष मल्होत्रा के पिता की शोक सभा में हंसती दिखीं करीना,लोग बोले-बेशर्म
बाॅलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के पिता का 90 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया। खबरों की मानें तो मनीष के पिता लंबे समय से बीमार थे और आज सोमवार सुबह आखिरी सांस ली। मनीष के पिता के निधन की खबर सुनते ही करण जौहर, शबाना आजमी समेत कई सितारे मनीष मल्होत्रा के घर पहुंच रहे हैं। मनीष के घर पर पहुंचे बॉलीवुड स्टार्स की तस्वीरें और वीडियो सोशल साइट पर काफी वायरल हो ही हैं। एक्ट्रेस करीना कपूर भी बहन करिश्मा कपूर के साथ मनीष के घर पहुंची थी।इस दौरान की कुछ तस्वीरें सोशल साइट पर काफी वायरल हो रही है। इस तस्वीर में करीना हंसते हुए दिख रही हैं। दरअसल, जया बच्चन भी बेटी श्वेता बच्चन के साथ मनीष को सांत्वना देनी पहुंची थी। इस दौरान करीना जया को घर के अंदाज जाने का रास्ता देती हैं और उन्हें देखकर हंसने लगती हैं। करीना की ये तस्वीर इंटरनेट पर काफी वायरल हो रही है। इस तस्वीर को देखने के बाद फैंस बेबो को काफी ट्रोल कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा-श्वाह कोई मर गया है और इसे हंसी आ रही है। दूसरे यूजर ने लिखा-जैकलीन हंसी थी तो सबने कमेंट किया था। और अब ये मैडम शोक पर गई है या फिल्म प्रमोशन पर। एक अन्य यूजर ने लिखा-श् इतनी खुशी की भी क्या बात हुई है। उसके पापा का निधन हुआ है। पैद नहीं हुए वो। वर्कफ्रंट की बात करें तो करीना इन दिनों फिल्म लाल सिंह चड्ढा की शूटिंग में बिजी हैं। इस फिल्म में उनके साथ आमिर खान हैं। इसके अलावा करीना अक्षय कुमार, दिलजीत दोसांझ और कियारा आडवाणी के साथ फिल्म गुड न्यूज में नजर आएंगे। बीते दिनों ही फिल्म ट्रेलर रिलीज हुआ है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं। इन दोनों फिल्मों के अलावा करीना करण जौहर की मल्टी स्टारर फिल्म तख्त में भी नजर आएंगी। 



नो मेकअप लुक में खूबसूरत दिखीं श्रद्धा कपूर, क्यूट स्माइल ने जीता दिल

नो मेकअप लुक में खूबसूरत दिखीं श्रद्धा कपूर, क्यूट स्माइल ने जीता दिल
बाॅलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर इन दिनों फिल्म बागी 3 की शूटिंग में बिजी हैं। फिल्म की शूटिंग सर्बिया में हो रही है। एक्ट्रेस ने सर्बिया की वादियों में चिंल करते की कई तस्वीरें फैंस संग शेयर की थी। वहीं अब श्रद्धा शूटिंग कर मुंबई लौट आईं हैं। हाल ही में बागी एक्ट्रेस को एयरपोर्ट पर देखा गया। इस दौरान श्रद्धा का ऑल ब्लैक लुक देखने को मिला। लुक की बात करें तो श्रद्धा ब्लैक टाॅप और स्किनफिट जैंगिग में स्टाइलिश दिखीं। नो मेकअप लुक में भी श्रद्धा काफी खूबसूरत लग रही हैं। उन्होंने अपने लुक को ट्रांस्पेरेंट शेड्स और ओपन हेयर्स से पूरा किया था। फुटविअर की बात करें तो श्रद्धा ने ब्लैक शूज पेयर किए थे। एयरपोर्ट पर श्रद्धा ने मुस्कुराते हुए पोज दिए। 



एयरपोर्ट पर मुग्धा गोडसे की स्टाइलिश एंट्री, प्लाजो सूट में कूल दिखीं कृति सेनन

एयरपोर्ट पर मुग्धा गोडसे की स्टाइलिश एंट्री, प्लाजो सूट में कूल दिखीं कृति सेनन
बॉलीवुड स्टार्स की अक्सर एयरपोर्ट पर अपने स्टनिंग लुक से फैंस को इम्प्रेस करते नजर आते हैं, जिसके कारण वो सुर्खियों में भी बने रहते हैं। हाल ही में एक्ट्रेस कृति सेनन और मुग्धा गोडसे को एयरपोर्ट पर स्पॉट किया गया, जहां दोनों एक्ट्रेसेस अपने-अपने लुक से फैंस को दीवाना बना रही हैं। लुक की बात करें तों इस दौरान एक्ट्रेस कृति सेनन कलर के प्लाजो सूट में गॉर्जियस दिखाई दे रही हैं। लुक को कैरी करते हुए कृति ने लाइट मेकअप के साथ कलरड हेयर्स खुले छोड़े हुए हैं। लुक को बिल्कुल सिंपल रखते हुए एक्ट्रेस की एयरपोर्ट पर जबरदस्त अंदाज में पोज दे रही हैं। वहीं एक्ट्रेस मुग्धा गोडसे येलो टॉप और ब्लैक प्लाजो के में नजर आ रही हैं। लुक को कम्पलीट करते हुए मुग्धा ने टॉप के ऊपर से ब्लू कलर का लॉन्ग कोट पहना हुआ है। चेहरे पर ब्लैक गॉग्लस और नेक पर स्टाइलिश चेन एक्ट्रेस के लुक को और भी खूबसूरत बना रहे हैं। काम की बात करें तो एक्ट्रेस कृति सेनन को कुछ दिनो पहले रिलीज हुई फिल्म हाउसफुल 4 में अहम किरदार में देखा गया था।इन दिनों कृति फिल्म श्पानीपतश् की शूटिंग कर रही हैं। वहीं एक्ट्रेस मुग्धा गोडसे जल्द ही आर्यन सक्सेना की फिल्म फौजी कॉलिंग में नजर आएंगी। 



गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाता है तानाजी-द अनसंग वॉरियर का ट्रेलर, यूजर्स बोले.....


  • गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाता है तानाजी-द अनसंग वॉरियर का ट्रेलर, यूजर्स बोले.....

  • अजय देवगन, सैफ अली खान और काजोल स्टारर अपकमिंग पीरियड ड्रामा तानाजी-द अनसंग वॉरियर का मोस्ट अवेटेड ट्रेलर रिलीज हो गया है। ट्रेलर को देखकर ही गूजबंप आने लगते हैं। जबसे इस फिल्म का अनाउंसमेंट हुआ था, तभी से यह फिल्म चर्चा में हैं। यह अजय की महत्वाकांक्षी परियोजना है। जबरदस्त पोस्टर और मोशन पिक्चर्स रिलीज करने के बाद आखिरकार अब ट्रेलर भी दर्शकों के सामने आ गया है। जिसने फैंस को और एक्साइटेड कर दिया है। 3 मिनट 21 सेकंड का यह ट्रेलर हमें इतिहास की झलकियां दिखाता है। ट्रेलर में स्पेशल इफेक्ट्स का शानदार यूज किया गया है। सैफ का क्रूर अवतार, काजोल का शानदार अभिनय और बहादुर ताना जी के किरदार को निभाने की अजय की ईमानदार कोशिश फिल्म में देखने लायक है। फिल्म की भव्यता, निश्चित रूप से मराठा साम्राज्य और इसकी महिमा के बारे में बोलती है। डायलॉग्स और लड़ाई के सीन आपको एक्साइटमेंन्ट से भरते हैं और बैकग्राउंड भी सही उपयोग किया है। मराठा योद्धा के रूप में अजय की बोली और संवाद ट्रेलर को और इफेक्टिव बना रहे हैं। कल अजय देवगन ने मुंबई में अपने दोस्तों के लिए तानाजी द अनसंग वॉरियर की एक स्पेशल स्क्रीनिंग रखी थी। फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली, रोहित शेट्टी और दूसरे बी-टाउन सेलेब्स ने इस स्क्रीनिंग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ओम राउत द्वारा डायरेक्टेड, फिल्म में पद्मावती राव, शरद केलकर, ल्यूक केनी और अन्य लोगों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह फिल्म 10 जनवरी 2019 को सिनेमाघरों में हिट होने के लिए तैयार है।


देश की बढ़ती आर्थिक बदहाली

देश की बढ़ती आर्थिक बदहाली
उपेन्द्र प्रसाद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को अगले कुछ वर्षों में ही भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प किया है। 5 ट्रिलियन का मतलब है 50 खरब। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को 10 प्रतिशत सालाना की विकास दर से विकास करना होगा। इतनी ऊंची दर अभी तक के इतिहास में भारत ने कभी प्राप्त नहीं किया है। लेकिन यदि उस लक्ष्य को हासिल करना है, तो विकास की इस दहाई अंक वाले दर को प्राप्त करना होगा। यह तो हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षा हुई, लेकिन सच्चाई कुछ और है। सच्चाई यह है कि 2016 के 8 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी की घोषणा किए जाने के बाद देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है। उस बड़े फैसले के बाद इसका शुरू में लड़खड़ाना तो लाजिमी ही था, लेकिन उम्मीद की जा रही थी कि कुछ समय के बाद स्थिति न केवल सामान्य होगी, बल्कि अर्थव्यवस्था विकास के नये युग में पहुंच जाएगी और चैतरफा विकास देखने को मिलेगा। नोटबंदी के कुछ शुरुआती महीनों के बाद अर्थव्यवस्था की हालत थोड़ी सुधरती भी दिखाई पड़ी, लेकिन बहुत जल्द पता चल गया कि वह तो एक छलावा था और धीरे-धीरे नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था को दीर्घकाल के लिए अपने लपेटे में लेने लगा।
उसके बाद विकास की दर गति पकड़ नहीं पाई। उसमें गिरावट होने लगी। गिरावट के बावजूद दर पांच प्रतिशत से ऊपर ही चल रही थी। इसलिए इसके बावजूद हमारे नीति निर्माता यह मानने को तैयार नहीं हुए कि अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में प्रवेश कर गई है। शायद वह गलत भी नहीं थे, क्योंकि पांच प्रतिशत की दर से हो रहा विकास भी विकास ही है। उसको मंदी कैसे कह सकते हैं? भारत ने लंबे समय तक 2 से 3 फीसदी की विकास दर का जमाना देखा जाता है। उस दर को हिकारत से हिन्दू विकास दर कहा जाता था। लेकिन नरसिंहराव सरकार द्वारा 1991 में शुरू की गई नई आर्थिक नीतियों ने कथित हिन्दू विकास दर को अतीत की चीज बना दी और हमारा देश 5 फीसदी के ऊपर ही विकास करता रहा। दहाई अंक में तो विकास की दर कभी नहीं गई, लेकिन किसी-किसी साल यह 8 फीसदी की दर को छू चुकी है। 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार के गठन के बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर हो रही थी। तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरी हुई थीं। इससे तेल उपभोक्ताओं को तो राहत मिल ही रही थी, सरकार के तेल उत्पादों पर लगे टैक्सों से राजस्व का भारी लाभ हो रहा था। सरकार के स्तर पर नीतियों में जो ठहराव मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में देखा जा रहा था, वह समाप्त हो गया, क्योंकि मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ एक स्थिर सरकार थी। औद्योगिक उत्पादन की स्थिति अच्छी थी और एकाध उत्पादों को छोड़कर कृषि की स्थिति भी अच्छी थी। दालों के मोर्चे पर कुछ समस्याएं आ रही थीं। देश की अर्थव्यवस्था विकास की उच्चतर दर की ओर अग्रसर हो रही थी। इसी बीच नरेन्द्र मोदी ने हजार और 5 सौ के पुराने नोटों को रद्द कर देने का निर्णय किया। उन नोटों को तो रद्द कर दिया, लेकिन उनकी जगह लेने के लिए सरकार के पास पर्याप्त नये नोट नहीं थे। नोटबंदी के बाद जो स्थितियां पैदा होंगी, उसके बारे में केन्द्र सरकार ने कुछ सोच-विचार ही नहीं किया था। जाहिर है, किसी प्रकार की तैयारी भी नहीं की थी। उसका असर बहुत ही मारक हुआ। देश की अर्थव्यवस्था ठिठक गई। नोटों की कमी के कारण बाजार में मातम छा गया। लाखों लोग बेरोजगार हो गए। बैंकों के पास पैसे आने लगे तो उनपर जमा रकम के ब्याज का बोझ भी बढ़ने लगा। बाजार के तहत-नहस हो जाने के कारण और नोटों की कमी के कारण उद्यमी बैंकों से कर्ज लेने के लिए भी सामने नहीं आ रहे थे। बाहर तो चर्चा हो रही थी कि बाहर पड़ा धन बैंकों के पास आ रहा है, लेकिन वह धन बैंकों के लिए बोझ साबित हो रहा था। जाहिर है, पहले से ही अनेक समस्याओं से जूझ रहे बैंक नोटबंदी के उस दौर में नये किस्म की समस्याओं से ग्रस्त होने लगे। भारी पैमाने पर असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी हुई। फिर संगठित क्षेत्र में भी छंटनी होने लगी। इसके कारण बेरोजगारों की फौज बढ़ती गई। जब बेरोजगार बढ़ेंगे, तो उनके पास क्रयशक्ति की कमी हो जाएगी। इसके कारण बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कमजोर हो जाएगी। और यही भारत में हुआ है। मांग पक्ष बहुत ही कमजोर हो चुका है और कोई भी बाजार वस्तुओं की मांग से ही फलता-फूलता है। मांग में आई यह कमी न तो क्षणिक है और न ही अस्थायी, बल्कि यह एक स्थायी फीचर बन गया है। और आज जो आर्थिक विकास दर में कमी आई है, उसका मूल कारण मांग पक्ष का कमजोर होना ही है।अब सरकार के सामने असली चुनौती यह है कि यह मांग पक्ष को कैसे मजबूत करे, लेकिन उसके सामने कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा है। वह सप्लाई पक्ष पर ज्यादा जोर दे रहा है। यानी उद्यमियों और उद्योगपतियों के लिए सुविधाएं देने पर उसका ज्यादा जोर है। उनके लिए कर रियायतें दी जा रही हैं। आवास निर्माण के लिए सरकारी धन से बड़ा कोष तैयार किया जा रहा है, लेकिन लोगों की आय कैसे बढ़े, इस पर सरकार सोच ही नहीं रही है।
ऐसी बात नहीं है कि इस तरह की समस्या कभी पहले कहीं आई नहीं है।  अनेक देशों में अनेक बार इस तरह की समस्याएं आती हैं और इन समस्याओं पर काबू भी पाया जाता रहा है, लेकिन भारत की सरकार ने जो आर्थिक मॉडल अब अपना रखा है, उसके तहत उन कार्यक्रमों को अपनाना संभव नहीं है और सरकार अपना आर्थिक मॉडल बदलने के लिए तैयार नहीं है। यह रोजगार सृजन के लिए अर्थव्यवस्था में सीधे हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। यह काम बाजार और निजी सेक्टर पर छोड़ रही है, लेकिन निजी सेक्टर के वश में वर्तमान आर्थिक बदहाली को दूर करना नहीं है। और अब सरकार को यह सूझ ही नहीं रहा है कि अर्थव्यवस्था के विकास को फि र पटरी पर लाने के लिए वह क्या करे। 
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संस्कृत का धर्म से संबंध
धर्म के कलकल बहते झरने को रोककर, उसे कीचड़ भरा तालाब बनाने के दुष्परिणाम इस देश ने सदियों भुगते हैं, लेकिन आज भी कुछ लोग देश को उसी दलदल में फंसे रहने देना चाहते हैं। धर्म के इन स्वयंभू ठेकेदारों की ताजा करतूत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में देखने मिली है। यहां संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संस्थान में बतौर शिक्षक डॉक्टर फिरोज खान की नियुक्ति के खिलाफ कुछ  छात्र मोर्चा संभाले हुए हैं और इसे आंदोलन नाम दिया जा रहा है, गोया वे किसी महान उद्देश्य के लिए विरोध कर रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन स्पष्ट कर चुका है कि डॉ. खान की नियुक्ति सारी प्रक्रियाओं का पालन करके हुई है। लेकिन डॉ. खान का विरोध कर रहे छात्र कह रहे हैं कि एक मुस्लिम हमें संस्कृत कैसे पढ़ा सकता है? एक मुस्लिम हमें हमारा धर्म कैसे सिखा सकता है? एक छात्र का तो यह भी कहना है कि बीएचयू के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय भी ऐसा नहीं चाहते थे। अब जबकि भाजपा ने महामना मालवीय को भी अपना महापुरुष बना लिया है, तो फिर उनके बारे में इस तरह की बातें प्रचारित हो भी सकती हैं और इसके लिए किसी पड़ताल की, तथ्यों की पुष्टि की आवश्यकता नहीं है। जो छात्र संस्कृत को धर्म और संस्कार से जोड़ कर देख रहे हैं, उनकी बुद्धि पर तो तरस आता ही है, उससे ज्यादा पीड़ा उस हिंदुस्तानी समाज को देखकर आती है, जिसने अपनी उदार परंपराओं, प्रगतिशील सोच और विवेकशीलता को क्षुद्र स्वार्थों की राजनीति करने वालों का बंधक बना दिया है। जो गलत है, उसे गलत कहने में अब इस समाज का हलक सूख जाता है।  इसलिए इतिहास, धर्म, संस्कृति, विरासत के साथ खिलवाड़ खुलेआम हो रहा है और समाज चुपचाप बैठा तमाशा देख रहा है।कितने दुख की बात है कि डॉ. फिरोज खान को अपनी नियुक्ति पर, संस्कृत के ज्ञान पर सफाई देनी पड़ रही है, सिर्फ इसलिए कि वे मुसलमान हैं। उन्हें बताना पड़ रहा है कि उनके दादा भजन गाया करते थे, उनके पिता भी संस्कृत के ज्ञाता थे और गौशाला जाकर गायों की सेवा करते थे। अब तक हिंदुस्तानी समाज में ये सारी बातें बेहद आम थीं। हिंदी फिल्मों को ही देख लीजिए, जहां कई सुमधुर भजन उन कवियों की कलम से निकले हैं, जिनका धर्म इस्लाम था। मन तड़पत हरि दर्शन को आज, बैजू बावरा फिल्म के इस भजन को शकील बदायूंनी ने लिखा, नौशाद ने सुरों से सजाया, जिसे मोहम्मद रफी ने आवाज दी। अब क्या इसे और इसके जैसे कई भजनों को हिंदुत्व के ठेकेदार सुनने से पहले कान बंद कर लेंगे? मुस्लिम हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं, पूजा की सामग्री बनाते हैं, बेचते हैं, उत्तर भारत में कई ऐतिहासिक रामलीलाएं बिना मुस्लिमों की भागीदारी के पूरी नहीं होतीं।  इन सबसे हिंदुस्तान के प्राचीन हिंदू धर्म को तो कोई खतरा नहीं हुआ, लेकिन अब एक मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने से जरूर धर्मभ्रष्ट हो जाएगा। ऐसा लगता है कि अब हिंदुस्तान का संविधान नहीं, मनु स्मृति ही हमारे समाज की संचालक बनती जा रही है। जिसमें स्त्रियों और निचली जातियों के लिए वेद का पाठ वर्जित था।  बरसों-बरस संस्कृत को इसी तरह कुछ खास लोगों के लिए आरक्षित करके रखा गया। देवों की भाषा, विश्व की प्राचीनतम भाषा और सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा कहकर संस्कृत का गुणगान तो खूब हुआ, लेकिन उसके गुणों को पूरे समाज तक पहुंचने से रोका गया। कालिदास, भवभूति, शूद्रक, माघ, भतृहरि आदि कई महान रचनाकार संस्कृत में हुए हैं, लेकिन इनकी रचनाओं से आज की पीढ़ी परिचित ही नहीं है। क्योंकि संस्कृत को क्लासिक भाषा की तरह पढ़ाया ही नहीं जाता है। उसे हिंदू धर्म की शिक्षा देने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें मंत्रोच्चार करके ही समाज गर्व महसूस करे। और समाज का दोहरा चरित्र तो देखिए, जब कोई जर्मन, रूसी, अमेरिकन या अंग्रेज संस्कृत पढ़ता है, संस्कृत की रचनाओं का अपनी भाषा में अनुवाद करता है, तब भी हम खुश होते हैं कि कोई विदेशी हमारी प्राचीन भाषा पढ़ रहा है। लेकिन बात जब अपने ही देश के मुसलमान के संस्कृत शिक्षक होने की आई तो धर्म पर खतरा महसूस होने लगा।  दरअसल धर्म और संस्कृति तो तभी से खतरे में हैं, जब से इन पर कुछ लोग केवल अपना दावा करने लगे हैं और बाकी समाज को इससे दूर रखने लगे हैं, ताकि वे मनमानी कर सकें। अब यह समाज को देखना है कि वह धर्म के महान उद्देश्यों में बाधक बन रही इस राजनीति को कब तक बर्दाश्त करता है। बुद्ध, कबीर या गांधी के नाम की माला जपने से समाज नहीं बदलेगा, खुद कुछ करने से बदलेगा।


शेयर बाजार में तेजी का माहौल जारी 


शेयर बाजार में तेजी का माहौल जारी 
डॉ. हनुमंत यादव 
भारत के शेयर बाजारों में दिवाली मुहूर्त पर निवेशकों द्वारा जोरदार लिवाली द्वारा जो तेजी का माहौल बना, वह मुनाफा बिकवाली और अन्य बिकवाली के कारण हुई अल्पकालिक गिरावट के बावजूद एक पखवाड़ा पूरा होने पर भी तेजी जारी है। तेजी के इस माहौल में देशी-विदेशी निवेशकों ने करोड़ों रुपये कमाए और अधिकांश कंपनियों का बाजार पूंजीकरण करोड़ों रुपये बढ़ा है।  इस समय बाजार में तेजड़िये हावी हैं। बाजार की भाषा में बात करें तो कह सकते हैं कि इस समय शेयर बाजार सांडों के प्रभाव में है। वैसे तो मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसैक्स ने 2019 में कई बार मनोवैज्ञानिक बिन्दु 40,000 को पार किया था किन्तु वह एक दिन बाद ही नीचे फिसल गया था। किंतु बुधवार 30 अक्टूबर को चोटी के 30 सूचीबद्ध शेयरों का संवेदी सूचकांक सेंसैक्स  40,000 का मनोवैज्ञानिक बिन्दु पार करते हुए 15 नवंबर को 40,350  पार पर जमा हुआ है। नरेन्द्र मोदी ही केन्द्र में स्थिर मजबूत सरकार देने में सक्षम हैं इस धारणा के वशीभूत निवेशकों ने ओपनियम पोल के नतीजों में  लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की भारी जीत की संभावनाओं को देखते हुए 1 अप्रैल को जोरदार लिवाली की। इसका नतीजा यह हुआ कि बीएसई सेंसैक्स ने 1 अप्रैल 2019 को पहली बार 39,000 का बिन्दु पार किया।  23 मई को भाजपा के लोकसभा चुनाव में जीत के समाचार से सेंसैक्स ने पहली बार 40,000 का मनोवैज्ञानिक बिन्दु पार किया। 4 जून को सेंसैक्स ने  40,300 पार करने का कीर्तिमान बनाया। 4 जून के लगभग 5 माह बाद सेंसैक्स ने 8 नवंबर को 40,700 पार करने का नया कीर्तिमान स्थापित किया। सेंसैक्स के समान ही नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के  50 शेयरों के  सूचकांक निफ्टी ने  एक दिन पहले 7 नवंबर को पहली बार 12,000 का मनोवैज्ञानिक स्तर पार कर कीर्तिमान बनाया  है। अमेरिका की प्रख्यात वित्तीय सेवा कंपनी स्टैंडर्ड एण्ड पुअर द्वारा बम्बई स्टॉक एक्सचेंज के साथ जुड़ने के बाद 30 शेयरोंवाले सेंसैक्स के  साथ-साथ दर्जनों सूचकांक बनाए जा रहे हैं जैसे कि 100 सूचीबद्ध शेयरोंवाला बीएसई 100 सूचकांक, बीएसई 500 सूचकांक, बीएसई सेंसैक्स 50, मिडकैप 400 तथा  स्माल कैप 600 आदि भी तैयार किए जाते हैं। इसके साथ ही सेक्टरल इंडेक्स जैसे कि आईटी इंडेक्स, फायनेंसियल इंडेक्स, स्टील इंडेक्स ऑटो इंडेक्स, ऑयल एण्ड नेचरल गैस इंडेक्स आदि भी तैयार किए जा रहे हैं। सेंसैक्स इन सभी सूचकांकों का प्रतिनिधित्व करता है। सेंसैक्स एक भारित सूचकांक है। 15 नवंबर को सेंसैक्स कारोबार के दौरान 40,650 तक पहुंचा था किंतु कारोबार बंद होने के पहले बिकवाली दबाव के कारण सेंसैक्स ने अपनी बढ़त गंवा दी और वह 40,356 पर बन्द हुआ।  निफ्टी जो दिन के कारोबार के दौरान 11,973 पर था 11,895 पर बन्द हुआ। 15 नवंबर को सेंसैक्स में सूचीबद्ध 30 में से 19 शेयर गिरावट के साथ बन्द हुए। ऑटो  इंडैक्स में सबसे ज्यादा गिरावट आई जबकि मीडिया इंडैक्स में 1 प्रतिशत की तेजी आई। एच.डी.एफ.सी. बैंक के लिए 15 नवंबर का दिन खास रहा। इसका बाजार पूंजीकरण 7 लाख करोड़ रुपए पार कर गया, इसको एच.डी.एफ. सी. बैंक की उपलब्धि रही क्योंकि आज तक किसी भी बैंक का एक दिन में इतना बड़ा बाजार पूंजीकरण पहली बार हुआ है। कारोबार के दौरान वोडाफोन-आइडिया के शेयर भाव में ऐतिहासिक गिरावट आई इसका कारण सितंबर तिमाही में इस कंपनी को 50,921 करोड़ रुपए का भारी घाटा होना रहा है। इस तिमाही में भारती एअरटेल को 23,045 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।  वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा टेलीकॉम कंपनियों को दिए गए राहत भरे बयान से 15 नवंबर को बाजार बंद होने के समय टेलीकाम कंपनियों के शेयर भाव में तेजी रही। बीएसई का मिडकैप सूचकांक 14,773 पर बढ़त के साथ तथा स्माल कैप इंडैक्स 13,326 पर गिरावट के साथ बन्द हुए। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने 1 नवंबर से 15 नवंबर की अवधि में इक्विटी शेयरों में 14,436 करोड़ रुपए तथा बांड व ऋणपत्रों में 4767 करोड़ रुपए की शुद्ध पूंजी लगाई इस प्रकार इन संस्थानों ने 19023 करोड़ रुपए का अतिरिक्त निवेश किया है।  बाजार में शेयरों की इस निवेश से तेजी बनी हुई है। बाजार में तेजी आने से कंपनियों का पूंजीकरण भी बढ़ा है। 15 नवंबर को बाजार पूंजीकरण में 931 हजार करोड़ रुपए के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज पहले तथा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज 816 हजार करोड़ के साथ दूसरे स्थान तथा एच.डी.एफ.सी. 700 हजार करोड़ रुपए के साथ तीसरे स्थान पर रही। बाजार पूंजीकरण मेंरू हिन्दुस्तान लीवर, आई.सी.आई.सी.आई बैंक, कोटक महिन्द्रा बैंक, इंडियन टोबैको कंपनी, इंफोसिस तथा स्टेट बैंक आफ इंडिया चैथे से दसवें स्थान पर रहे। एक साल पूर्व 15 नवंबर 2018 को सेंसैक्स 35,390 तथा निफ्टी 10,635  बिन्दु पर थे, एक साल बाद 15 नवंबर को सेंसैक्स 40,360 तथा निफ्टी 11,895 पर बंद हुए। इस प्रकार एक साल में सेंसैक्स में 4,970 बिन्दु और निफ्टी में 1,260 बिन्दु की बढाघ्ेतरी हुई। इस प्रकार एक साल में सेंसैक्स में 14 प्रतिशत तथा निफ्टी में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  दूसरी ओर पिछली तिमाहियों के समान  सितंबर तिमाही में अर्थव्यवस्था की सुस्ती और अधिक बढ़ी है। सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। औद्योगिक विकास दर खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के 1 प्रतिशत तक खिसकने का अनुमान है। कुल मिलाकर मैक्रो-इकानॉमिक इडेंक्टर अर्थव्यवस्था का निराशाजनक चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के विपरीत वर्तमान में शेयर बाजार में उत्साह का माहौल बना हुआ है। सवाल उठता है कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर में गिरावट के बावजूद नवंबर के पहले पखवाड़े में  शेयर बाजार में क्यों कर उछाल आया हुआ है। शेयर बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आगामी मौद्रिक समीक्षा बैठक के दौरान ब्याज दरों में और अधिक कटौती किए जाने की संभावनाओं से बाजार में उत्साह है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कारक भी उछाल के लिए जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए  अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार लैरी कंडलों द्वारा अमेरिका और चीन के  बीच व्यापार वार्ता को सकारात्मक बताए जाने से एशिया के शेयर बाजारों में तेजी आई है जिससे भारतीय शेयर बाजार भी प्रभावित है।  किंतु मेरी राय में उछाल का प्रत्यक्ष स्पष्ट कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा नवंबर के पहले पखवाड़े  में कुल मिलाकर 19,023 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी भारतीय शेयर बाजारों में प्रतिभूतियों की खरीदी के लिए निवेश किया जाना है। इन विदेशी निवेशकों का अनुमान है कि इस अतिरिक्त निवेश से आगे आनेवाले दिनों में वे भारी मुनाफा कमा सकेंगे।


बढ़ता जा रहा है पर्यावरण संकट

बढ़ता जा रहा है पर्यावरण संकट
डॉ अनुज लुगुन 
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ऑड-इवन योजना लागू की थी. इसके साथ ही बाजार ने अपने लिए मुनाफे का अवसर तलाश लिया. अब दिल्ली में ऑक्सीजन बेचने के बार भी खुल गये हैं. गांवों में रहनेवालों और पुरानी पीढ़ी के लिए भले यह हास्यास्पद हो कि हवा भी बेची-खरीदी जा रही है, लेकिन महानगरों में रहनेवालों और 4जी तकनीक से लैस पीढ़ी के लिए तो यह संभाव्य और स्वीकार्य है कुछ महीने पहले सोलह वर्षीया पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली से दिया गया भाषण दुनियाभर में लोकप्रिय हुआ. उसका कहना था कि आपके खोखले शब्दों ने मेरे सपने और मेरा बचपना चुरा लिया. यह बात पूरी दुनिया की हकीकत है. दुनिया के बड़े औद्योगिक नगर तो इसकी चपेट में पहले से ही हैं, अब न केवल छोटे शहर और कस्बे प्रदूषण की भयावह चपेट में हैं, बल्कि इसकी वजह से हो रहा जलवायु परिवर्तन सुदूरवर्ती पारिस्थितिकी को भी प्रभावित कर रहा है. भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में यह आनेवालों दिनों में त्रासदी बनकर सामने आयेगा. इसके उदाहरण के रूप में दिल्ली का 'प्रदूषण इमरजेंसी' हमारे सामने है. देश के तमाम बड़े शहर और महानगर सुदूरवर्ती आम जनता की जीविका का आसरा बना दिये गये हैं. इससे बहुत बड़ी आबादी तेजी से इन महानगरों की ओर चली आयी है. बाहरी जनसंख्या के दबाव ने यहां की पारिस्थितिकी के संतुलन को िबगाड़ दिया है. वास्तव में यह विकास के पूंजीवादी मॉडल का समाजशास्त्रीय परिणाम है. पूंजीवाद न केवल पूंजी का केंद्रीकरण करता है, बल्कि वह इसके साथ ही बहुत बड़ी आबादी को सस्ते श्रमिक में रूपांतरित कर अपने केंद्रों की ओर खींचता है. यह जनता की जीविका के साधनों को ध्वस्त कर, उनकी आत्मनिर्भरता को खत्म कर समाज में खाई पैदा करता है. मसलन, दिल्ली जैसे महानगरों में जो आधारभूत सुविधाएं हैं, वे दंडकारण्य जैसे सुदूरवर्ती आदिवासी क्षेत्रों में नहीं हैं. ठीक उसी तरह दंडकारण्य में जो प्राकृतिक संसाधन हैं, वे दिल्ली में नहीं मिलेंगे. लेकिन महानगर अपने लिए सारा खाद-पानी दंडकारण्य जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों से हासिल करते हैं, उसे अपने यहां केंद्रित कर वहां की स्थानीय आबादी को अपनी ओर खींचते हैं. संसाधनों के साथ ही श्रम का प्रवाह महानगरों की तरफ हो जाता है. संसाधनों के दोहन से स्थानीय पारिस्थितिकी भी प्रभावित हो जाती है और श्रम के रूप में विस्थापित होती आबादी नयी जगह की पारिस्थितिकी को प्रभावित कर देती है. दुनियाभर में यह असंतुलन तेजी से फैल रहा है. अब विश्व बैंक जैसी पूंजीवादी संस्थाएं भी इस असंतुलन पर चिंता जता रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, आनेवाले एक दशक में दिल्ली दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर होगा. अभी टोक्यो दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है. दुनिया बढ़ते हुए प्रदूषण और उससे हो रहे जलवायु परिवर्तन को महसूस कर रही है. हाल ही में ट्रंप ने अमेरिका में बढ़ रहे प्रदूषण के लिए भारत, रूस और चीन की तीखी आलोचना करते हए कहा कि इन देशों का कचरा अमेरिका पहुंच रहा है. यह ठीक वैसे ही आरोप हैं, जैसे दिल्ली के प्रदूषण के लिए समीपवर्ती राज्यों के किसानों को दोषी माना गया. जैसे-जैसे प्रदूषण का स्तर बढ़ता जायेगा, इस तरह के झगड़े और बढ़ेंगे. पड़ोसी एक-दूसरे से झगड़ेंगे, राष्ट्र एक-दूसरे से झगड़ेंगे. खनिज, तेल आदि संसाधनों को लेकर जो लड़ाई चल रही है, वह आगे चलकर बहुत जल्दी सांस लेनेवाली हवा की लड़ाई में तब्दील हो जायेगी. जो ताकतवर होंगे, पैसे वाले होंगे, वही 'सर्वाइव' कर पाने की स्थिति में होंगे. दिल्ली में जो 'ऑक्सी प्योर' ऑक्सीजन बार शुद्ध हवा को बेचने के लिए खुला है, वहां पंद्रह मिनट सांस लेने के लिए करीब तीन सौ रुपये चुकाने होते हैं. तो क्या जो पैसा चुका नहीं सकते, वे सांस लेने के अधिकारी नहीं होंगे? इस तरह के बाजार तक किसकी पहुंच होगी? देखते-देखते इस तरह के बाजार और बड़े होंगे. इसके साथ ही सांस लेने की शुद्ध हवा आम लोगों की पहुंच से और दूर हो जायेगी.साम्यवादी हों या पूंजीवादी देश, सबके उत्पादन के तरीके एक जैसे हैं. हमारी आत्मनिर्भरता मशीनों पर है. तो क्या हमें मशीनों को अपने जीवन से विस्थापित कर देना चाहिए? यह हमारी पूरी सभ्यता का सबसे जटिल सवाल है. 
फिदेल कास्त्रो ने पर्यावरण सम्मेलन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने का एक नकारात्मक असर उन गरीब और विकासशील देशों पर होगा, जो अब भी जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें उन वस्तुओं को उत्पादित करने के लिए प्रकृति का दोहन करना पड़ेगा. उनका कहना था कि अमीर देशों की विलासिता में कटौती कर न केवल करोड़ों गरीबों की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, बल्कि पारिस्थितिकी को भी बचाया जा सकता है. दुनिया में बढ़ती गैर-बराबरी आनेवाले दिनों में पर्यावरण संकट से निबटने में बाधा बनेगी. 
हमारे लिए दिल्ली का जो प्रतीक बनाया गया है, उस प्रतीक को जितना जल्दी बदला जाये, उतना ही ठीक होगा. टोक्यो, लॉस एंजिल्स, शंघाई आदि के वैभव का जो प्रतीक हमारे सामने रखा जा रहा है, उससे बचना ही बेहतर है. गांधी की 150वीं जयंती के वर्ष में सभ्यता के वर्तमान संकट से उबरने के लिए कम-से-कम यह बात कही ही जा सकती है.


हानिकर है सिद्धांतहीन गठबंधन

हानिकर है सिद्धांतहीन गठबंधन
प्रभु चावला  
भारतीय राजनीति के दो पासों वाले जुए में सैद्धांतिकता तथा अनैतिकता के पासों का एक ही खांचे में जा पड़ना ही विजेता तय करता है. लालचभरी महत्वाकांक्षा के शोर-शराबे में पंथ निरपेक्षता की आवाज डूब चुकी है. यहां तक कि राष्ट्रीयता तथा उदारवादिता के ध्रुवीकरण में भी दरारें दिख रही हैं. महाराष्ट्र के मनमौजियों ने यह प्रदर्शित कर दिया कि केवल सत्ता ही वह योजक शक्ति है, जो परस्पर विरोधी विचारधाराओं और अहं को जोड़ सकती है. असंभावना ही अब एकमात्र संभावना बन चुकी है. कट्टर हिंदुत्व की प्रबल पैरोकार शिवसेना भाजपा के साथ अपनी 30-वर्षीय साझीदारी को तिलांजलि देकर वैसे जिस किसी का भी साथ स्वीकार करने को राजी है, जो भारत के इस सर्वाधिक समृद्ध राज्य के मुख्यमंत्रित्व के लिए उसके दावे को अपना समर्थन दे सके. 
दो सुसंगत विचारधाराओं की सियासी शादी अंततः सत्तासुखी साथियों के बीच सिर्फ एक 'लिव इन' संबंध ही साबित हो सकी. भारतीय चुनावी मैरेज ब्यूरो के मंच पर विवाह और तलाक होते ही रहते हैं. वर्ष 1977 में वैचारिक रूप से विरोधी पार्टियां इंदिरा गांधी की पराजय पक्की करने हेतु मिल गयीं. आरएसएस समर्थित जनसंघ ने अपनी पहचान भुलाकर जनता दल के उसी समंदर में स्वयं का विलय कर दिया, जिसकी शरण मोराजी देसाई, चंद्रशेखर एवं जगजीवन राम जैसे कांग्रेसियों ने भी गही. वैचारिक विरोधों के इसी संघर्ष ने जनता दल का पराभव सुनिश्चित किया. अचानक ही समाजवादियों का भगवा विरोध जाग उठा और उन्हें संघ से शुद्धीकरण जरूरी लगने लगा.जब जनता दल का महल ढहा, तो जिन चरण सिंह ने इंदिरा गांधी को जेल भेजा था, उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से ही सरकार बना डाली. चार ही माह बाद, इंदिरा गांधी ने अपना समर्थन वापस लेकर दो-तिहाई बहुमत से वापसी कर ली. अगले नौ वर्षों के लिए गांधियों ने राष्ट्रीय राजनीति पर अपना दबदबा बनाये रखा. पर राजीव गांधी के अनगढ़ सियासी कौशल के कारण वीपी सिंह, अरुण नेहरू एवं आरिफ मुहम्मद खान जैसे प्रमुख कांग्रेसी नाराज हो उठे. उसके बाद के दशक सुविधाओं के, न कि सिद्धांतों के, गठबंधनों के गवाह हुए. वर्ष 1989 में वीपी सिंह देश की बहुदलीय सरकार के मुखिया बने. यह एक सैद्धांतिक खिचड़ी थी, जिसमें टीडीपी, डीएमके तथा एजीपी जैसे क्षेत्रीय तत्वों की छौंक तो पड़ी ही थी, वामपंथियों एवं भाजपा का वरक भी लगा था. यह एक साल भी न चल सकी. राजीव गांधी ने चंद्रशेखर की महत्वाकांक्षा को भुनाकर उन्हें जनता दल से बाहर लाया तथा बीजू पटनायक, देवी लाल और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे कट्टर कांग्रेस विरोधियों ने वीपी सिंह का साथ छोड़ कांग्रेस की बैसाखी पर चलना स्वीकार किया. चंद्रशेखर सरकार पांच माह भी पूरे न कर सकी. उसके बाद के चुनाव ने राजीव गांधी की बलि लेकर पीवी नरसिंह राव की अल्पमतीय सरकार को पांच वर्षों तक बनाये रखा.वर्ष 1996 ने राव की राजनीति को कमजोर कर देश को उसकी पहली त्रिशंकु संसद दी. एक बार फिर, सभी विपक्षी पार्टियां संसद की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सत्ता से बाहर रखने को साथ हो लीं. देवेगौड़ा नीत संयुक्त मोर्चे ने चुनाव-पश्चात का गठबंधन बनाया, जिसमें जनता दल, डीएमके, टीएमसी, एजीपी, एसपी, सीपीआइ एवं कुछ अन्य पार्टियां शामिल थी, जबकि सीपीएम तथा कांग्रेस पार्टी बाहर से समर्थन दे रही थीं. इस अवसरवादिता के औचित्य के लिए एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम भी बना. 
पर चूंकि देवेगौड़ा तथा कांग्रेस पुराने प्रतिद्वंद्वी थे, इसलिए यह संबंध टूट गया. कांग्रेस ने देवेगौड़ा के उत्तराधिकारी के रूप में आइके गुजराल को आगे किया. मगर राजीव गांधी की हत्या का अन्वेषण करनेवाले जैन आयोग ने जब द्रविड़ पार्टियों पर उंगली उठायी, तो गुजराल ने डीएमके मंत्रियों की रक्षा करते हुए इस्तीफा देना बेहतर समझा. चैबीस माह के अंदर डीएमके एक विश्वस्त मित्र से घातक शत्रु बन चुका था. चंद्रशेखर को कांग्रेस के समर्थन की पूर्वशर्त भी यही थी कि तमिलनाडु में डीएमके सरकार बर्खास्त होनी चाहिए.वर्ष 1998 में संयुक्त मोर्चे की सरकार के पतन के पश्चात एक अन्य गठबंधन ने जन्म लिया. संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा ने 13 सियासी संगठनों के सहयोग से कुल 240 सांसदों का समर्थन जुटाया, जिनमें कई परस्पर विरोधी विचारधाराओं से आते थे. मगर जब अटल बिहारी वाजपेयी ने एआइएडीएम के के कहने पर तमिलनाडु में डीएमके सरकार को बर्खास्त करने से इनकार कर दिया, तो एआइएडीएमके ने उनकी सरकार गिरा दी. वर्ष 1999 में देश ने एक बार फिर त्रिशंकु संसद के लिए वोट दिया. भारतीय इतिहास में 23 दलों के सबसे बड़े गठबंधन के समर्थन से वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. सरकार अपने पूरे कार्यकाल तक चली, मगर जब चुनाव निकट आये, तो टीडीपी एवं डीएमके इस गठबंधन से अलग हो गये.वर्ष 2004 में अपनी वापसी को लेकर आत्मविश्वास से भरी भाजपा कई क्षेत्रीय साझीदारों को छोड़ मात खा गयी. अंततः सोनिया गांधी ने एक गठबंधन का प्रस्ताव किया, जिसमें डीएमके, एआइएमआइएम, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद, टीआरएस के अलावा अन्य कई पार्टियां शामिल थीं. सोनिया के नेतृत्व में ही इन पार्टियों ने अगले एक दशक में दो सरकारें चलायीं. तभी मोदी ने भाजपा का नेतृत्व संभाल उसे अपने दम पर पहला बहुमत दिलाया. साल 2019 में 300 से ज्यादा सीटें जीत मोदी ने इतिहास रच दिया और वे भारत के निर्विवाद राष्ट्रीय नेता बने रहे. मगर अब उनका यह वोट भंडार कुछ खिसकता लगता है. कई राज्यों में भाजपा अपनी जीत को दोहरा पाने में असमर्थ रही. पिछले वर्ष मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान उसके हाथ से निकल गये. गुजरात में वह बस किसी तरह बहुमत में आ सकी, जबकि कर्नाटक में वह सरकार नहीं बना सकी. इस वर्ष महाराष्ट्र और हरियाणा उसके लिए नये वॉटरलू सिद्ध हुए. शिवसेना तथा जेजेपी क्षेत्रीय दलों के पुनरोदय का संकेत करते हैं. अपनी सांस्कृतिक एवं सियासी विविधता से जीवंत विशाल भारत केवल एक विकेंद्रित लोकतंत्र द्वारा ही ठीक से प्रबंधित किया जा सकता है. अगले वर्ष दिल्ली तथा झारखंड में होते चुनावों के साथ ही लोकतंत्र ने योद्धाओं को चुनौती दी है. एक लचीले राजनेता के रूप में मोदी के लिए यही वक्त है कि वे भविष्य की समावेशिता को सीने से लगा संघवाद के शत्रुओं को पराजित कर दें.


राज्य की देखरेख में बनेगा रामजन्मभूमि मंदिर

राज्य की देखरेख में बनेगा रामजन्मभूमि मंदिर
डॉ. भरत झुनझुनवाला 
छह दिसंबर 1992 की तरह, 9 नवम्बर भी भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गया है। छह दिसंबर को दिन-दहाड़े जो मस्जिद गिरा दी गई उसकी रक्षा करने का लिखित आश्वासन भाजपा नेता और उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उच्चतम न्यायालय को दिया था। 9 नवम्बर को उच्चतम न्यायालय ने उन लोगों, जिन्होंने देश की कानूनों का मखौल बनाते हुए मस्जिद को गिराया था, की इच्छा को पूरी करते हुए मस्जिद की भूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया। शायद यह पहली बार होगा कि भारतीय राज्य, जो कि घोषित रूप से धर्मनिरपेक्ष है, अपनी देखरेख में एक मंदिर का निर्माण करवाएगा। क्या यह वही गणतंत्र है जिसकी स्थापना हमने 1950 में की थी? स्वतंत्रता के तुरंत बाद यह मांग उठी थी कि सोमनाथ मंदिर, जिसे महमूद गजनवी ने लगभग नष्ट कर दिया था, का पुनर्निर्माण राज्य को करवाना चाहिए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जो उस समय जीवित थे, ने कहा कि हिन्दू अपने मंदिरों का निर्माण और पुनर्निर्माण करने में स्वयं सक्षम हैं। इसे सरकार ने स्वीकार किया यद्यपि कुछ कैबिनेट मंत्री उस गैर-सरकारी ट्रस्ट के सदस्य बने, जिसे पुनर्निर्माण का काम सौंपा गया। मंदिर के पुर्ननिर्माण के बाद उसके उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आधिकारिक हैसियत में भाग लेने के प्रस्ताव का प्रधानमंत्री नेहरू ने विरोध किया। आज जो हो रहा है उससे यह साफ है कि धर्म ने हमारे राज्य तंत्र में गहरे तक घुसपैठ कर ली है। बल्कि सच तो यह है कि कई मामलों में धर्म, सरकार की नीतियों का नियंता बन बैठा है। बाबरी मस्जिद मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की विधिवेत्ता और राजनैतिक दल अपने-अपने ढंग से व्याख्या और विश्लेषण करेंगे। हां, यह अवश्य संतोष और प्रसन्नता का विषय है कि निर्णय के बाद देश में कहीं भी कोई गड़बड़ी या हिंसा नहीं हुई। देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल और अन्य दलों ने इस निर्णय को न केवल स्वीकार किया वरन उसे  श्संतुलितश् बताते हुए उसका स्वागत भी किया। यह समझना मुश्किल है कि यह फैसला क्यों और कैसे संतुलित है। माननीय न्यायाधीशों ने यह स्वीकार किया है कि सम्बंधित मस्जिद में 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी। उनका यह भी मत है कि मस्जिद के गुम्बद के नीचे रामलला की मूर्तियों की स्थापना चोरी-छुपे की गई थी और वह एक अपराध था। उन्होंने यह भी कहा है कि मस्जिद का ध्वंस एक आपराधिक कृत्य था और उसके बाद वहां जो अस्थायी मंदिर बनाया गया, वह अदालत के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश का उल्लंघन था। यह दिलचस्प है कि जिन राजनैतिक शक्तियों और व्यक्तियों ने ये तीनों अपराध किये थे, वे इस निर्णय से बहुत प्रसन्न हैं और कह रहे हैं कि यह साबित हो गया है कि वे सही थे।  एलके आडवानी ने यही कहा है। अदालत ने मंदिर निर्माण का प्रभारी तो राज्य को बना दिया है परन्तु मस्जिद का निर्माण, समुदाय पर छोड़ दिया गया है। पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति गांगुली ने बिलकुल ठीक कहा है कि संविधान के विद्यार्थी के रूप में मेरे लिए इस निर्णय को स्वीकार करना मुश्किल है। जाने माने विधिवेत्ता और एनएएलएसएआर विश्वविद्यालय के कुलपति फैजान मुस्तफा का कहना है कि अयोध्या निर्णय, साक्ष्य विधि के लिए एक बड़ा धक्का है। जहां तक अदालत के निर्णयों को स्वीकार करने का सवाल है, हम सबको याद है कि केवल एक वर्ष पहले भाजपा ने सबरीमाला मंदिर के द्वार स्त्रियों के लिए खोले जाने के निर्णय का विरोध किया था। बाबरी मस्जिद मामले में 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आधार पर अपना निर्णय सुनाया था कि हिन्दुओं की आस्था है कि उसी स्थान पर राम का जन्म हुआ था। न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन भागों में बांट दिया था। उच्चतम न्यायालय भी यह मान कर चला कि हिन्दू मानते हैं कि राम उसी स्थान पर जन्मे थे। परन्तु इस निर्णय में जो अलग है वह यह है कि न्यायालय ने संघ परिवार के इस दावे को स्वीकार नहीं किया है कि उस स्थान पर एक मंदिर था जिसे बाबर के सिपहसालार मीर बकी ने नष्ट कर दिया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रपट के आधार पर उच्चतम न्यायालय इस नतीजे पर पहुंचा है कि उस स्थान पर पहले एक गैर-इस्लामिक ढांचा था परन्तु इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह ढांचा राम मंदिर था और उसे गिरा कर मस्जिद का निर्माण किया गया था। उच्चतम न्यायलय का मुख्य तर्क यह है कि मुस्लिम पक्षकार यह साबित करने में विफल रहे हैं कि मस्जिद के भीतरी प्रांगण में नमाज अदा की जाती थी। यह तर्क इसलिए विश्वसनीय नहीं लगता क्योंकि निर्विवाद रूप से वह स्थान सन 1857 तक मस्जिद था। अतरू वहां नमाज न अदा किये जाने का कोई कारण नहीं है। दूसरी ओर, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मस्जिद का बाहरी प्रांगण हिन्दुओं के कब्जे में था जिसे उन्होंने तत्कालीन यात्रियों के विवरणों व अन्य सबूतों से साबित किया है। अतः उस स्थान पर हिन्दुओं का दावा वैध है।
यह निर्णय शायद समकालीन भारतीय इतिहास के एक दुखद अध्याय को बंद कर दे। राममंदिर विवाद ने ही भाजपा को एक छोटी सी पार्टी से देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाया है। संघ परिवार ने लगातार यह प्रचार किया कि मुस्लिम शासकों ने मंदिरों को तोड़ा और बाबरी मस्जिद, राममंदिर के मलबे पर तामीर की गई। इस प्रचार ने मुसलमानों के प्रति समाज में घृणा फैलाई। यह संतोष की बात है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने इस दुष्प्रचार को गलत ठहराया है। अब हमारे देश को सन् 1991 के उस कानून का सख्ती से पालन करना चाहिए जिसके अनुसार, धार्मिक स्थलों के मामले में 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति बनाए रखी जाएगी। बाबरी मस्जिद को गिराते समय संघ परिवार का नारा था श्यह तो केवल झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है। इस नारे को हमेशा के लिए दफन कर दिया जाना चाहिए। भाजपा को काशी और मथुरा का मुद्दा उठाने की बात करने वाले विनय कटियार जैसे लोगों से किनारा कर लेना चाहिए। तभी हम देश को उस तरह के रक्तपात और तनाव से बचा सकेंगे, जो देश ने बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद भोगा। इस निर्णय से यह भी साफ है कि बहुसंख्यकवादी राजनीति के चलते, आज देश में ऐसा वातावरण बन गया है जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए न्याय पाना मुश्किल होता जा रहा है। देखना यह होगा कि संघ परिवार, जो सत्ता पाने के इस तरह के मुद्दों के आधार पर देश को धु्रवीकृत करता आया है, अपनी इन हरकतों से बाज आएगा या नहीं। 
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आर्थिक मंदी पर बेतुकी बातें
कर्नाटक के बेलगाम से लोकसभा सांसद और केंद्रीय रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगड़ी अर्थव्यवस्था पर अपनी सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बचाव करने के लिए कुतर्कों की प्रतियोगिता में शायद अपने सहयोगी मंत्रियों निर्मला सीतारमण और रविशंकर प्रसाद से भी आगे निकलना चाहते हैं।  ओला-उबर के कारण गाड़ियों की कम बिक्री और फिल्मों की कमाई से देश की अर्थव्यवस्था का संबंध जैसे तर्कों को सुनकर जनता पहले ही अंजामे गुलिस्ता देख रही थी कि अब अंगड़ी जी का दावा है कि अर्थव्यवस्था ठीक काम कर रही है। एयरपोर्ट भरे हुए हैं, ट्रेनें भरी हुई हैं, लोग शादी कर रहे हैं। कुछ लोग बिना वजह नरेंद्र मोदी की छवि को खराब कर रहे हैं। यानि जिस दिन हवाई जहाजों की उड़ान रुक जाएगी, ट्रेनों में भीड़ कम हो जाएगी, लोग धूमधाम से शादी करना छोड़ देंगे, उस दिन शायद मोदी सरकार मानेगी कि मंदी जैसी कोई भयावह आंधी इस देश को तहस-नहस कर गई है। अभी तो मोदीजी विदेशों में 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का ज्ञान बांटने में लगे हैं, जबकि घरेलू मोर्चे पर नींव दरक चुकी है। अब तक आटोमोबाइल, टेक्सटाइल, एफएमसीजी जैसे क्षेत्रों में नोटबंदी, जीएसटी और मंदी का असर दिख रहा था, इस सूची में टेलीकाम इंडस्ट्री भी शामिल हो गई है। एक समय देश में सबसे तेजी से उभरता टेलीकाम उद्योग अब तेजी से लड़खड़ा रहा है। सरकारी दूरसंचार कंपनियां बीएसएनल, एमटीएनएल तो पहले ही इतनी खस्ताहाल हो चुकी हैं कि अपने कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं दे पा रही थीं और अब हजारों कर्मचारी वीआरएस ले रहे हैं। वोडाफोन-आइडिया और भारती एयरटेल ये दो बड़ी कंपनियां भी घाटे में हैं। दोनों को जुलाई-सितंबर 2019 की तिमाही में करीब 74,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही दूरसंचार विभाग की लेवी और ब्याज के तौर पर 13 अरब डॉलर की मांग को वाजिब ठहराया था, जिससे वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल के शेयर को तगड़ा झटका लगा था।  टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों पर इस वक्त करीब सात लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। जिससे इन्हें कर्ज देने वाले बैंक परेशान हैं कि कहीं उनकी राशि डूबत खाते में न चली जाए। पिछले तीन-चार सालों में अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन, टाटा टेलीसर्विसेज, एयरसेल, टेलीनार, सिस्टेमा और वीडियोकोन जैसी कंपनियां बंद हो गई हैं। अब वोडाफोन और एयरटेल भी कब तक मैदान में टिके रहेंगे, कहना कठिन है। इस वक्त केवल मुकेश अंबानी की जियो ही बाजार में आगे दिख रही है और किसी भी कंपनी का एकाधिकार आखिर में ग्राहकों पर क्या असर डालता है, यह अर्थशास्त्री अच्छे से समझते हैं। हालांकि वित्त मंत्री तो अब भी कह रही हैं कि सरकार दूरसंचार क्षेत्र की चिंताओं को दूर करने की इच्छा रखती है।
लेकिन सरकार की असली इच्छा क्या है, यह तो वही जाने। क्योंकि जब तक सरकार मंदी को स्वीकार नहीं करेगी, उसे दूर करने के उपाय कैसे करेगी? मंदी का असर अब बिजली उत्पादन पर भी दिखने लगा है घरेलू और औद्योगिक क्षेत्र में बिजली की मांग में कमी के चलते 133 थर्मल पावर स्टेशन को बंद करना पड़ा है, इसका सीधा असर कोयला उद्योग पर पड़ा है। इधर एनएसओ की एक ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पिछले 40 सालों में पहली बार साल 2017-18 में उपभोक्ताओं की खर्च सीमा में गिरावट आई है। सर्वे बताता है कि किसी भारतीय द्वारा एक महीने में खर्च की जाने वाली औसत राशि साल 2017-18 में 3.7 फीसदी कम होकर 1446 रुपये रह गई है, जो कि साल 2011-12 में 1501 रुपये थी। यह गिरावट गरीबी से प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या की ओर संकेत करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट ज्यादा दर्ज की गई। और यह जानकर हैरानी नहीं हुई कि इस रिपोर्ट को जून में ही सामने आना था, लेकिन इसे रोक दिया गया और अब इसका खुलासा हुआ है। समझना कठिन नहीं है कि सरकार क्यों नहीं चाहती कि देश में बेरोजगारी, गरीबी या उपभोक्ता खर्च में गिरावट के आंकड़े सामने आएं। क्योंकि इसके बाद हार्डवर्क वाले और हार्वर्ड वाले, सभी तरह के लोग सवाल करेंगे, जिनके जवाब देने में सरकार सक्षम नहीं होगी। 


झारखंड भाजपा में बिखराव

झारखंड भाजपा में बिखराव
शीतला सिंह 
गत लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी दूसरी बार ज्यादा बहुमत से चुनकर देश की सत्ता में लौट आई, तो कई हलकों में मान लिया गया था कि अब वह चुनावी मुकाबलों में लम्बे वक्त तक अजेय बनी रहेगी। लेकिन उसके बाद जिन दो राज्यों-महाराष्ट्र और हरियाणा-में विधानसभाओं के चुनाव हुए, उनमें उसका अकेली चुनाव लड़ने का प्रयोग भी सफल नहीं रहा और गठबंधन करने का भी। दोनों  ही राज्यों में उसकी सीटें घट गईं और एक में तो वह साधारण बहुमत से भी पीछे रह गई। ऐसा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे उठाने और मोदी के नायकत्व पर तकिया रखने की उसकी चतुर रणनीति के बावजूद हुआ। हरियाणा में तो उसने जैसे-तैसे फि र से सरकार बना ली, लेकिन महाराष्ट्र में इसके चक्कर में सहयोगी दल शिवसेना से उसकी तीस साल पुरानी दोस्ती टूट गई। उससे बिगाड़ के बाद शिवसेना वहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाने की कवायद में न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की ओर बढ़ गई है। पहले समझा जा रहा था कि अन्ततरू वह सत्ता में भागीदारी के लिए लौटकर भाजपा के पास ही चली जायेगी, लेकिन अब वहां भी गैरभाजपावाद ही निर्णायक तत्व बन गया दिखता है, जिसके फलस्वरूप तीनों दल मिलकर पांच साल की यानी स्थायी सरकार बनाने के प्रयत्न में मुब्तिला हैं।  चुनाव आयोग ने झारखंड विधानसभा का चुनाव महाराष्ट्र व हरियाणा के साथ नहीं कराया तो आरोप लगाया गया था कि उसने ऐसा भाजपा व उसके इकलौते नायक नरेन्द्र मोदी की सुविधा के लिए किया है। एक देश एक चुनाव की समर्थक भाजपा झारखंड में इसलिए बाद में विधानसभा चुनाव के पक्ष में थी क्योंकि उसके मतदाताओं पर उक्त दोनों राज्यों में अपनी सफलता का मनोवैज्ञानिक असर डालना चाहती थी। लेकिन अब उसका दांव उलटा पड़ रहा है और उसके गठबंधन सहयोगी साथ छोड़कर उसके ही विरोध में खड़े हो जा रहे हैं। यहां तक कि बिहार में उसके सहयोग के ही बल पर जीतने वाली लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी भी झारखंड में विद्रोह पर उतारू है और अधिकतम विधानसभा सीटों पर अपने अलग उम्मीदवार लड़ाने के लिए प्रयत्नशील है। हालत यह है कि इस राज्य की अधिकांश पार्टियां भाजपा के विरोध में ही चुनाव मैदान में हैं। उसकी पुरानी सहयोगी आजसू भी अपेक्षित सीटें न मिलने के कारण एकला चलो की राह पर बढ़ गई है।  लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक बड़ा अन्तर यह बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों और स्वार्थों से जुड़े होते हैं, जबकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों व स्वार्थों से।  इसलिए राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदाताओं का समर्थन किसे मिला था, विधानसभा चुनाव में यह निर्णायक तत्व नहीं रह जाता। क्योंकि चुनाव जितनी ही छोटी इकाई का होता है, स्थानीय स्वार्थों से प्रभावित मतों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। तब दलीय या सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता बहुत निर्णायक नहीं रह जातीं। यही कारण है कि ग्राम पंचायतों के चुनाव केन्द्र या प्रदेशों के सत्ता दलों से प्रभावित नहीं होते। लोकसभा चुनाव में आमतौर पर मतदाता व्यापक मान्यता, स्वीकार्यता और पहचान वाले नेता पर जोर देते हैं। भले ही उसके घोषित कार्यक्रम भी स्थायी न हों। इसीलिए उक्त चुनाव में स्थानीयता निर्णायक तत्व नहीं बन पाती, लेकिन ग्राम, क्षेत्र या जिला पंचायत अथवा राज्य स्तर के चुनावों में मतदाताओं की मानसिकताएं भिन्न होती हैं। यही कारण है कि ऐसी भी मिसालें हैं कि जो उम्मीदवार पंचायत चुनाव में असफल हो गये थे, उन्हें लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में बहुमत का समर्थन मिल गया। वे उन सदनों में पहुंचे भी और सत्ता में भागीदारी भी निभाई। जहां तक झारखण्ड की बात है, वह विशेष स्थिति वाला आदिवासी बहुल राज्य है और उसके निवासियों की समस्याएं भी दिल्ली व कोलकाता जैसे महानगरों के निवासियों जैसी नहीं हैं। लेकिन गत लोकसभा चुनाव में व्यापक सफलता के बाद भाजपा को लगने लगा है कि वह देश की समूची धरती पर हर हाल में स्वीकार्य हो गई हैं। वह सोच नहीं पा रही कि विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को जिन मुद्दों को निर्णय देना है, लोकसभा चुनाव में उनका अस्तित्व ही नहीं था। इस कारण वे उनकी विचार परिधि में आए ही नहीं थे।  वह यह बात समझती तो यह भी समझ ही जाती कि लोकसभा चुनावों में हासिल सफलता को किसी राज्य के विधानसभा चुनाव के लिए निर्णायक नहीं कहा जा सकता। ये चुनाव परस्पर एक दूजे को प्रभावित करते तो छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में ज्यादातर सीटें भाजपा के हाथों हार नहीं जाती। इसी तरह महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में उसे मिली व्यापक सफलता राज्य के विधानसभा चुनाव में उसके काम आई होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विधानसभा चुनाव में शिवसेना से गठबंधन के बावजूद वह पीछे की ओर घिसटती चली गई। यह तब था, जब कांग्रेस और राकांपा दोनों मिलकर भी उसका मुकाबला करने में सक्षम नहीं दिख रही थीं। कांग्रेस तो इस कदर पस्त थी कि उसके कई विधायक भागकर भाजपा में शामिल होने की कतार में लग गये थे। बड़े नेताओं की अनुपस्थिति के बावजूद विधान सभा चुनाव में उसकी जीत का अनुपात यह संदेश देने वाला था कि निराश होने के बजाय उसे डटकर संघर्ष और प्रयास करने की जरूरत है। भाजपा में पैठ बना चुके सत्ता के अहंकार का ही परिणाम था कि कर्नाटक में कांग्रेस अपने से बहुत छोटे जनता दल सेकुलर के नेता को मुख्यमंत्री बनाकर उसको सत्ता में आने से रोकने में सफल रही। वहां भाजपा की सरकार कांग्रेस व जनता दल सेकुलर के विधायकों को बगावत के लिए उकसाकर तोड़ लेने के बाद ही संभव हो पाई। तब श्बागी्य विधायक राजनीतिक लाभ के लिए प्रयत्नशील थे-सत्ता में भागीदारी न मिल सके, तो अन्य लाभों से उसकी पूर्ति स्वीकार करने के लिए तैयार भी। लेकिन यह प्रवृत्ति भी कांग्रेस से ज्यादातर विधायकों को साथ नहीं ले जा पाई। आदिवासी बहुल झारखंड पर लौटें तो उसका दुर्भाग्य है कि बढ़ती चेतना के फलस्वरूप आदिवासियों में जो नेतृत्व विकसित हुआ, वह भी सत्ता की भूख और भ्रष्टाचार से परे नहीं रह सका। इससे राज्य की राजनीति में स्वार्थहीनता की, जिसे उसका बड़ा गुण बताया जाता रहा है, स्वीकार्यता खासी घटी और लाभ उठाने की प्रवृत्तियां निर्णायक बन गई हैं। फि र भी राज्य में भाजपा के इस तरह के प्रयोग उसको बड़ा लाभ पहुंचाने वाले नहीं दिख रहे हैं। 


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