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रविवार, 25 अगस्त 2019

ऑटोमोबाइल सेक्टर मे आर्थिक संकट गहराया , लाखो नौकरिया गई

अंजुम खान 
वरिष्ठ पत्रकार 
दहकती ख़बरें 


ऑटोमोबाइल सेक्टर अपने घुटने पर आ गयी है 19 साल मे सबसे कम बिक्री हुई है 300 शोरूम बंद हो चुकी है 31% सलो डाउन है गांव मे भी बिक्री कम siam ने कहा है 12%गिरावट है मारुती ने बताया 36%गिरावट हुंडई ने बतया 10%गिरावट हुई है जिससे ये कंपनियों को लोगो को हटाना पड़ा लोगो को कम कर रही है इससे बेरोजगारी बढ़ रही है अर्थशास्त्री बोल रहे है ये स्ट्रक्चर crises है इसकी वजह नोटेबंदी और GST को मानते है ये मंदी का माहुल है ऑटोमोबाइल सेक्टर  अर्थव्यवस्था का बेल wheather सेक्टर होता है ये बताता है इकॉनमी सही चल रही है या नहीं कहा जा रहा है इस दिवाली मे पहली बार ऐसा होगा सारे डीलर कार और मोटर साइकिल के कह रहे है की उनका धंधा ख़त्म हो चुका है दिवाली मे बहुत कम आशा है की सेल हो इंडियन एक्सप्रेस मे हरीश दामोदर का आर्टिकल छापा उसमे उन्होंने बताया डिमांड नहीं है डिमांड इस लिए नहीं है की आमदनी नहीं है जबकि डिमांड इस देश. मे कभी भी कम नहीं रही जो यंग लोग है वो खर्च नहीं कर पा रहे है क्योंकि वह बेरोजगार है उनके पास पैसा नहीं है  इंडस्ट्री के दिग्गज क्या बोल रहे है  राहुल बजाज "ना  निवेश, ना मांग है क्या विकास और ग्रोथ आसमान से होगा सरकार असलियत को छुपा रही है मगर हकीकत तो हकीकत है  20  अरब डॉलर की कंपनी लारसन एंड tarbo infotech ग्लोबल के मालिक A N  nayak कहते है "सरकार आखिर आर्थिक मंदी पर खामोश क्यों है आने वाले वक्त मे विकास 6.5%से ज़्यादा नहीं होंगी सरकार के आकड़ो पर कितना विश्वास किया जाये कहा नहीं जा सकता कई उद्योग वायातनाम जा चुके है ऐसा क्यों?  सारे उद्योग vayatnam और phillipines जा रहे है भारत छोड़ के इसका क्या मतलब है '        HDFC बैंक  के प्रमुख दीपक पारेख के मुताबिक "अर्थव्यवस्था मे ज़बरदस्त मंदी है और ये समस्या नॉन बैंकिंग फ़ाइननास सेक्टर मे भी पैसा की कमी के चलते है उम्मीद है की त्यावरवो के वक्त बाज़ारो मे ऊर्जा फिर से लौटेंगी ''   शिपिंग सेक्टर ,  पर्यटन,  कंप्यूटर सेक्टर, सेर्विस सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर सब गिरावट की ओर है 15 साल मे सबसे  कम  निवेश हुआ है इस साल  राजीव बजाज कहते है "पीछे 2 साल मे सरकार ने बहुत से यू टर्न लिए है कभी कभी ऐसा वक्तव्य देत है जो स्पस्ट होते है साफ होते है नीति गत होते है हमें दिखाए देता है इसमें दिशा है लेकिन फिर उनके ही साथी इनकी ही नीति की आलोचना करते है तो उद्योग जगत के लोग बड़े कंफ्यूज है इस बात से हम इस सरकार को इजाजत नहीं देंगे ना ही हम रुकेंगे क्युकी सरकार की नीतियाँ बहुत ढ़ोल मूल है उसमे यू टर्न बहुत ज़्यादा है भारत हमारे लिए एक अकेले  मार्किट नहीं हमारे पास पूरा दुनिया मे 90 मार्किट है हमें उनका भी धयान रखना है तो अगर पूरी दुनिया की सरकार की जो  नीति गत निर्णय है होते है जो बदल रहे है तो हम मजबूर नहीं की उनके नीति मे हम नाचते रहे हमें अपना काम करना है 'Adi गोदरेज ने कहा जितनी  भी अशाहीसोूनातआ बढ़ रही है उसको ज़ेहन मे रकते हुए हमारी सामाजिक बनावट  उसमे जो हमले हो रहे है नफरत वाले हमले हो रहे है औरतों के खिलाफ जो अत्याचार हो रहे है जाति और धर्म के नाम पर जो हिंसा चल रही है पुरे देश मे चल रही है   N R नारयण मूर्ति co फाउंडर आफ infosys "समय आ गया है नौजवान खड़े हो जाये बताने के लिए की ये वह भारत नहीं जिसके लिए हमारे पुरखो ने संघर्ष किया लड़े थे '  GST के कारण कार के दाम मेहेंगा  हो गए है GST ने इस सेक्टर को नुकसान पहुचाये है ये 28% है जब तक 18% नहीं होगा सुधार संभव नहीं दूसरे तरफ बैंक का भी सपोर्ट नहीं मिल रहा जिससे डीलर शॉप का  बचना मुश्किल हो गया है डीलर शॉप मे 2 सौ लोग काम करते है जब किसी डीलर की शॉप बंद हो जाती है तो 2 सौ लोग बेरोजगार हो जाते है  सोसाइटी फॉर इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर SIAM के विष्णु माथुर ने ndtv से बात करते हुए बताया हमारे यहाँ 3 लाख 45 हज़ार लोगो की नौकरिया चली गयी ये नौकरिया डीलर के यहा से गई है यही नहीं 10 लाख लोगो की नौकरिया खतरे मे है SIAM के रिपोर्ट के अनुसार 19 साल मे यात्रियों की बिक्री इतनी कम कभी नहीं हुई है जुलाई मे गाड़ियों की बिक्री 30.98% कम रही हौंडा की यात्री गाड़ी 49% कम हुई टाटा. मोटर की गाड़ी की बिक्री 46% कम हुई कमर्शियल गाड़ी की बिक्री 25.71% कम हुई जिससे मोटर पार्ट्स बनने वाले कंपनी मे भी संकट है मारुती मे सबसे ज़्यादा संकट है मंदी से  संघर्ष करते ऑटोमोबाइल सेक्टर मे लाखो लोगो की नौकरिया दाँव पे लगी है वेबसाइट royters के अनुसार कार और बाइक की घटती बिक्री की वजह से ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंपनी को अपनी फैक्ट्री बंद करनी पड़ी automaker पार्ट्स manufacturer डीलर ने अप्रैल से अबतक 3 लाख 50 हज़ार लोगो को निकाला है कार बाइक बनने वाले कंपनी ने 15 हज़ार लोगो को निकाला है गाड़ी के पार्ट्स बनने वाली कंपनी ने 1 लाख लोगो को निकाला है ऑटो सेक्टर देश की  gdp 7% से ज़्यादा योगदान देता है इस सेक्टर 3 करोड़ पचास लाख लोग काम करते है इसके अलावा 2014 से लेकर 19 तक का आकड़ा देखे तो हालत ये है की जो प्रति व्यक्ति आय 2.1% गिरावट आई है इसके इलावा fianance मार्किट डाटा और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुडा डाटा देने वाली संस्था refenative ने बतया है की देश मे तेहवारोू मे भी कंपनी ने 60% से अधिक मुनाफे की उम्मीद छोड़ चुकी है जमशेदपुर मे 30 स्टील की कम्पनिया बंद के कगार मे है विदेशी निवेशको अगस्त के महीने मे भरतीय बाजार से 2.881 करोड़ रूपये निकाला  इससे पहले जुलाई के महीने मे 2985 करोड़ निकाला था    मांग घटने से हिंदुस्तान लीवर डाबर पतंजलि कंपनी घाटे मे है निवेश ना आना बहुत गंभीर बात है पिछले वर्ष 5000 से ज़्यादा  मिलियनर देश छोड़ कर चले गए 2019-20 के लिए  RBI ने घटाया GDP का अनुमान 7%से घाटा कर 6.9% कर  दिया ये चिंता का विषय है सरकार के लिए बड़ी चुनौती है 


मंगलवार, 13 अगस्त 2019

टीपू सुल्तानः नायक या खलनायक.........

टीपू सुल्तानः नायक या खलनायक
हाल में कर्नाटक में दलबदल और विधायकों की खरीद-फरोख्त का खुला खेल हुआ जिसके फलस्वरूप,  कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिर गई और भाजपा ने राज्य में सत्ता संभाली। सत्ता में आने के बाद, भाजपा सरकार ने जो सबसे पहला निर्णय लिया वह यह था कि राज्य में टीपू सुल्तान की जयंती पर सरकारी आयोजन बंद किए जाएंगे। यह भी तय किया गया की टीपू की जयंती- 10 नवंबर - को काले दिन के रूप में मनाया जायेगा और इस दिन इस मध्यकालीन शासक के विरोध में रैलियां निकाली जाएंगी। मध्यकालीन इतिहास की अलग-अलग व्याख्याएं की जाती हैं और कई मामलों में, एक ही व्यक्ति कुछ समुदायों के लिए नायक और कुछ के लिए खलनायक होता है। टीपू के मामले में स्थिति और भी जटिल है। पहले, हिन्दू राष्ट्रवादी भी टीपू को नायक के रूप में देखते थे। सन् 1970 के दशक में, आरएसएस द्वारा प्रकाशित पुस्तिकाओं की श्रृंखला श्भारत भारतीश् में टीपू का महिमागान किया गया था।सन् 2010 में आयोजित एक रैली में, कुछ भाजपा नेता टीपू के भेष में अपने हाथों में तलवार लिए मंच पर विराजमान थे। हमारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, जो कि आरएसएस की भट्टी में तप कर निकले हैं, ने कुछ ही वर्ष पूर्व टीपू के साहस की प्रशंसा करते हुए कहा था कि टीपू ने उस काल में मिसाइलों का प्रयोग किया था। अब, जब कि कर्नाटक में साम्प्रदायिकता ने गहरी जड़ें जमा लीं हैं, टीपू को हिन्दू-विरोधी आततायी शासक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। पिछले कुछ समय से जहां कांग्रेस टीपू का इस्तेमाल मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए कर रही है वहीं भाजपा, हिन्दुओं के वोट हासिल करने के लिए टीपू के दानवीकरण में जुटी है। इस राजा के व्यक्तित्व और कार्यों के बारे में गहराई और निष्पक्षता से पड़ताल करने से यह साफ हो जाता है कि टीपू, दरअसल, अंग्रेजों की इतिहास की साम्प्रदायिक व्याख्या पर आधारित श्फूट डालो और राज करोश् की नीति का शिकार हुए। साम्प्रदायिक तत्व मध्यकालीन इतिहास की चुनिंदा घटनाओं को अनावश्यक महत्व देकर धर्म के आधार पर इस काल के राजाओं को नायक और खलनायक सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। सच यह है कि ये सभी राजा केवल अपने साम्राज्य को बचाए रखने और उसका विस्तार करने के लिए प्रयासरत थे और इसी उद्देश्य से उनमें से कुछ ने मंदिर तोड़े तो कुछ ने मंदिरों का संरक्षण किया। टीपू सुल्तान, मुगल साम्राज्य के कमजोर होने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे। टीपू को अहसास था कि मुगलों के कमजोर पड़ने से ईस्ट इंडिया कंपनी की राह आसान हो गई है। उन्होंने मराठाओं, रघुनाथ राव पटवर्धन और निजाम से अपील की कि वे अंग्रेजों का साथ न दें। उन्हें एक विदेशी ताकत के देश में जड़ें जमाने के खतरे का अहसास था। मराठा और टीपू और निजाम और टीपू एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे। ये तीनों अपने राज्य का विस्तार करना चाहते थे। पटवर्धन की सेना ने सन् 1791 में मैसूर पर हमला किया और श्रृंगेरी मठ को लूट लिया। यह दिलचस्प है कि टीपू ने कीमती तोहफे भिजवाकर इस मठ का पुनरोद्धार किया। वे श्रृंगेरी मठ के मुख्य ट्रस्टी थे और इस मठ के स्वामी को जगद्गुरु कहकर संबोधित करते थे। अपने सैन्य अभियानों के पहले वे मठ के स्वामी का आशीर्वाद लिया करते थे। इसके साथ ही, यह भी सही है कि उन्होंने वराह मंदिर पर हमला किया था। इसका कारण स्पष्ट था। मंदिर का प्रतीक वराह (जंगली सुअर) था जो कि मैसूर के राजवंश का प्रतीक भी था। इसी राजवंश को सत्ताच्युत करके टीपू मैसूर के राजा बने थे। तो इस तरह टीपू सुल्तान ने श्रृंगेरी मठ का संरक्षण किया तो वराह मंदिर पर हमला किया। जाहिर है कि वराह मंदिर पर हमले को टीपू के हिन्दू-विरोधी होने का प्रमाण बताया जा सकता है। परंतु उनके निशाने पर हिन्दू धर्म न होकर वह राजवंश था जिसे उन्होंने युद्ध में पराजित किया था। इसी तरह, मराठाओं ने श्रृंगेरी मठ को इसलिए नहीं लूटा था क्योंकि वे हिन्दू धर्म के खिलाफ थे बल्कि उनके निशाने पर टीपू सुल्तान थे। यह भी कहा जाता है कि टीपू ने फारसी को अपने दरबार की भाषा का दर्जा दिया और कन्नड़ को नजरअंदाज किया। तथ्य यह है कि उस काल में भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश शासकों के दरबार की भाषा फारसी थी। शिवाजी ने मौलाना हैदर अली को अपना गुप्तचर मामलों का मंत्री इसलिए नियुक्त किया था ताकि वे अन्य राजाओं से फारसी में संवाद कर सकें। यह आरोप भी लगाया जाता है कि टीपू ने सैकड़ों ब्राह्मणों का इसलिए कत्ल कर दिया था क्योंकि उन्होंने मुसलमान बनने से इंकार कर दिया था। यह पूरी तरह से गलत है। इस संदर्भ में  हमें यह भी याद रखना चाहिए कि टीपू के प्रमुख सलाहकार एक ब्राह्मण, पुरनैया थे। यह सारे झूठ अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए थे क्योंकि टीपू, भारत में उनके राज के विस्तार की राह में चट्टान बनकर खड़े थे। यह आरोप भी लगाया जाता है कि टीपू ने कुछ हिन्दू और ईसाई समुदायों को प्रताड़ित किया। यह अंशतरू सही है। उन्होंने इन समुदायों को निशाना इसलिए बनाया क्योंकि वे अंग्रेजों की मदद कर रहे थे, जो कि मैसूर राज्य के हितों के खिलाफ था। टीपू ने मुस्लिम माहदवियों को भी निशाना बनाया क्योंकि वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के घुड़सवार दस्ते में भर्ती हो रहे थे। दरअसल यह सब सत्ता का खेल था जिसका धर्म से कोई वास्ता नहीं था। साम्प्रदायिक ताकतें, इतिहास का प्रयोग अपनी विभाजनकारी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए करती आ रही हैं। महाराष्ट्र के एक शोध अध्येता सरफराज शेख ने अपनी पुस्तक सुल्तान-ए- खुदाद में टीपू सुल्तान का घोषणापत्र प्रकाशित किया है। इस घोषणापत्र में टीपू यह घोषणा करते हैं कि वे अपनी प्रजा के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे और अपनी आखिरी सांस तक अपने राज्य की रक्षा करेंगे। और उन्होंने यही किया। अंग्रेजों से समझौता करने के बजाय उन्होंने उनसे लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी। वे 1799 में चैथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में मारे गए।रंगमंच की दुनिया की महान शख्सियत गिरीश कर्नाड ने कहा था कि अगर टीपू हिन्दू होते तो उन्हें कर्नाटक में वही सम्मान और गौरव हासिल होता जो शिवाजी को महाराष्ट्र में है। आज भी मैसूर के गांवों में टीपू की बहादुरी का वर्णन करने वाले लोकगीत प्रचलित हैं।
हमें धर्म के आधार पर इतिहास के नायकों को बांटने से बचना चाहिए। बल्कि मैं तो यह मानता हूं कि हमारे अधिकांश नायक स्वाधीनता संग्राम के नेता होने चाहिए जिन्होंने आज के भारत को आकार दिया। हमें साम्प्रदायिक इतिहास लेखन के जाल में नहीं फंसना चाहिए। 


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