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गुरुवार, 9 मार्च 2023


 "ब्लैकमेलिंग का हथियार बनता जा रहा आरटीआई कानून"

इम्तियाज अहमद

भारत में सूचना का अधिकार कानून को अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को संपूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया । "राइट टू इनफार्मेशन" यानी सूचना पाने का अधिकार । एक देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी संवैधानिक सत्ता से समुचित सूचना पाने का जो अधिकार पहले सिर्फ जनप्रतिनिधियों के पास होता है वही कमोबेश अब इस कानून के माध्यम से जनता में भी हस्तांतरित कर दिया गया है ।लेकिन आधुनिक परिस्थिति इसके बिल्कुल विपरीत नजर आने लगी है। आरटीआई कानून लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है परंतु कहीं ना कहीं यह एक ब्लैकमेलिंग का जरिया बन चुका है । आरटीआई एक्ट का उद्देश्य किसी विशेष जानकारी को हासिल करने से होता है लेकिन यह देखा जाता है कि जिन मुद्दों से किसी व्यक्ति का कोई सरोकार भी नहीं होता वह भी आरटीआई दाखिल कर देता है। यह भी कहीं ना कहीं एक पेशे के रूप में उभरने लगा है । मेरे विचार और स्वयं मैं भी आरटीआई के खिलाफ नहीं परंतु कहीं ना कहीं इसे लेकर कुछ दिशानिर्देश जरूर निर्धारित होने चाहिए । इस ब्लैकमेलिंग के बदलते स्वरूप को लेकर अब सरकारी कार्यालय जानकारी  देने में बचने लगे हैं।अधिकांश यह देखा गया है कि वह आदमी ब्लैकमेल होता है जिनके  काले कारनामे आरटीआई से उजागर होते हैं, जिसके कारण सूचना के अधिकार में कई आरटीआई कार्यकर्ता सरकारी योजनाओं,निर्माणों,प्रशासनिक कामकाज की जानकारी निकलवाते  हैं , लेकिन अब सरकारी तंत्र ने इस तरह जानकारियां देने से बचने के लिए टालमटोल कार्यवाही का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है।

 न जाने कितने आरटीआई के जरिए ब्लैक मेलिंग के केस अक्सर देखने को मिलते रहते हैं ।

अब जरूरत है तो इस कानून में संशोधन करके इसके उचित दिशा निर्देशों में बदलाव करके आरटीआई कानून को एक सशक्त विश्वसनीय कानून के रूप में स्थापित करने की।

"यह लेखक के आज के परिवेश को देखते हुए अपने निजी विचार हैं"

इम्तियाज अहमद 

पत्रकार /लेखक

सामाजिक कार्यकर्ता

मो. 9044777902

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