बदले हुए भारत का व्यवहार
अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
ऐसे मौके पर देश का ऐसा अद्भुत वातावरण, जिसमें हर व्यक्ति परोक्ष तौर पर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ा रहा हो, पहले कभी नहीं देखा गया. हमारे यहां तो पड़ोसी से युद्ध के दौरान भी राजनीति हावी हो जाती है. देश के चरित्र की पहचान इसी से होती है कि कठिन परिस्थिति में सामूहिक प्रतिक्रिया कैसी हो रही है. इस मायने में भारत का सामूहिक चरित्र या तो उदासीनता का रहा है या फिर अतिवादी आलोचना और निंदा का. बहुत कम लोगों ने उम्मीद की थी कि रातभर चंद्रयान-2 मिशन की सफलता के लिए टीवी पर आंखे गड़ाये देश अंतिम समय लैंडर विक्रम के गायब हो जाने की तत्काल निराशाजनक स्थिति में इस तरह आशावादी होकर खड़ा हो जायेगा! मैंने इस बात को महसूस किया है कि जिस ढंग से लोग प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे थे, लगा ही नहीं कि चंद्रयान मिशन सफल नहीं हुआ है. अगर किसी ने एक नकारात्मक प्रतिक्रिया दे दी, तो उसके जवाब में दसों उत्साही प्रतिक्रिया सामने आती थी. भारत के परंपरागत चरित्र को देखते हुए यह अविश्वसनीय स्थिति थी. भारत में आये इस बदलाव की लोग अपने तरीके से व्याख्या कर रहे हैं. वर्तमान लोकतांत्रिक ढांचे में देश के चरित्र निर्माण में राजनीतिक नेतृत्व की सर्वोपरि भूमिका होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हमारी भले कई मुद्दों पर असहमति हो, लेकिन भारत के राष्ट्रीय चरित्र को बदलने में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. इससे तो कोई अंधविरोधी ही इनकार करेगा कि लैंडर विक्रम से ग्राउंड स्टेशन का संपर्क टूटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह स्थिति को संभाला और वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया, वह अतुलनीय था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का मनोबल ऊंचा बना हुआ है. संगठन के प्रमुख डॉ के सिवन ने कहा है कि हम इससे (पीएम मोदी के संबोधन और पूरे देश की तरफ से इसरो को मिले समर्थन) बहुत खुश हैं. इससे हमारा मनोबल ऊंचा हुआ है. इसरो के वैज्ञानिकों को भी उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री ऐसा कुछ करेंगे कि निराशा की स्थिति उत्साह में बदल जायेगी. इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों पर ध्यान दीजिए. उनका 36 घंटे का रूस दौरे का कार्यक्रम काफी व्यस्त था. रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन से द्विपक्षीय बातचीत, प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत, फिर समझौते, साझा पत्रकार वार्ता, रूस के उस सुदूर पूर्व क्षेत्र की विकास परियोजनाओं के मॉडलों को देखना, पोत निर्माण कारखाने में जाना, जूडो प्रतियोगिता मंे अतिथि, इस्टर्न इकोनॉमिक समिट में मुख्य अतिथि, नेताओं से अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ता और वहां से भारत वापसी. उसके बाद इसरो के केंद्र पहुंचकर बैठना.किसी ने मोदी के चेहरे पर थकान का भाव नहीं देखा. जैसे ही इसरो प्रमुख ने आकर उन्हें बताया कि विक्रम का संपर्क टूट गया है, उनको भी हमारी आपकी तरह धक्का जरूर लगा होगा. किंतु चेहरे पर कोई भाव नहीं. वैज्ञानिकों के बीच गये. एक छोटा भाषण दिया. माहौल बनाने की कोशिश की कि जीवन में सफलता-विफलता आती है.
उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैं आपके साथ हूं. ऐसे ही समय नेतृत्व की परीक्षा होती है. केवल इसरो के वैज्ञानिकों और कर्मियों को ही नहीं, पूरे देश के अंदर आत्मविश्वास पैदा करनेवाला जो भाषण था, उसकी उन्होंने तैयारी की होगी. उस भाषण और व्यवहार ने कुछ मिनट के अंदर देश का माहौल ही बदल दिया. उस समय देश को अपने नेता से ऐसे ही भूमिका की आवश्यकता थी.
मोदी सरकार ने अपनी योजना से चंद्रयान-2 से पूरे देश को जोड़ दिया था. इसके प्रचार, इससे लोगों को जोड़ने, क्विज द्वारा छात्रों को जोड़ देने, समय-समय पर चर्चा और प्रचार-प्रसार से देश में यह मानसिकता पैदा करने की कोशिश हुई कि यह केवल वैज्ञानिकों और सरकार का नहीं, पूरे देश का अभियान है.इसकी सफलता से भारत और दुनिया को क्या-क्या प्राप्त हो सकता है, इसका भी बुद्धिमतापूर्वक प्रचार किया गया. इससे चंद्रयान मिशन की एक-एक घटना पर गांवों में भी उत्सुकता थी. कुल मिलाकर मोदी सरकार की रणनीति से देश में अभूतपर्वू वैज्ञानिक वातावरण बना था. नयी अर्थव्यवस्था के बाद हमारे युवक-युवतियों के अंदर कॉमर्स, एमबीए, सॉफ्टवेयर, हार्डबेयर का ज्ञान प्राप्त करने, व्यवसाय करने आदि की ओर ज्यादा आकर्षण है. विज्ञान को विज्ञान की तरह पढ़ने और वैज्ञानिक बनने का लक्ष्य रखनेवालों की संख्या घटती गयी है. इस अभियान के साथ वातावरण बदला है. नयी पीढ़ी के अंदर भी वैज्ञानिक बनने का भाव प्रबल हुआ है. इस तरह विज्ञान की ओर नयी पीढ़ी का आकर्षण तथा देश के सामूहिक आचरण में उल्लास, उत्साह और संकल्प का भाव निर्माण चंद्रयान-2 अभियान के ऐसे पहलू हैं, जिनके दूरगामी असर को नकारा नहीं जा सकता है. बगैर राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका के यह संभव नहीं है.आज एक नये आत्मविश्वास वाला और बदलता हुआ भारत है, जो अपने बेहतर भविष्य को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है. आर्थिक सुस्ती के बावजूद मोदी अपने भाषणों में देश को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की चर्चा पूरा जोर देकर करते हैं और लोगों का समर्थन मिलता है. दुनिया की प्रतिक्रिया भी भारत के संदर्भ में ऐसी ही है. चंद्रयान-2 के संदर्भ में ही दुनिया के अंतरिक्ष संगठनों और मीडिया की टिप्पणियां देख लीजिये, तब आपको यह आभास हो जायेगा कि भारत के प्रति पूरा वैश्विक समुदाय का विश्वास कैसे बढ़ा है.
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गुरुवार, 12 सितंबर 2019
बदले हुए भारत का व्यवहार
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