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रविवार, 20 अक्टूबर 2019

 अगला नंबर आपका है

 अगला नंबर आपका है
नवाज देवबंदी की लिखी ये पंक्तियां इस वक्त हिंदुस्तान की जनता को पढ़नी चाहिए और हो सके तो आत्मचिंतन भी करना चाहिए कि आखिर ये आत्मकेन्द्रित सोच हमें कहां ले आई है। दूसरों की तकलीफ को तमाशे की तरह देख लेने की प्रवृत्ति कैसे आत्मघाती बन चुकी है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म हुआ, दो महीने से अधिक समय तक राज्य बंदी बना रहा, लेकिन शेष भारत इससे बेपरवाह बना रहा कि हमें क्या, हम थोड़ी न कैद हुए हैं। असम में एनआरसी के बाद 19 लाख लोगों को अनागरिक घोषित कर दिया गया, हम आराम से अपने घरों में बैठे लोगों को उनके घरों,  देश से बेदखल करते देखते रहे। बहुत से अनागरिकों को अमानवों की तरह डिटेंशन सेंटर्स में रखा गया, जिनमें से कुछ की मौत हो गई, लेकिन शेष हिंदुस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। नोटबंदी के बाद लाखों नौकरियां चली गईं, कुछ लोगों की मौत हो गई। उनके घर वाले परेशान हुए, लेकिन जिनके पास नौकरियां थीं, वे चैन से बैठे रहे। अब महाराष्ट्र में पीएमसी बैंक के खाताधारकों में तीन लोगों की मौत हो चुकी है। इस बैंक में भी करोड़ों की हेराफेरी की गई है, जिसके आरोपी तो पकड़े जा चुके हैं, लेकिन सजा मिल रही है, उन आम लोगों को जिन्होंने सरकार पर भरोसे के साथ अपनी जमापूंजी बैंक में रखी थी। रिजर्व बैंक ने बैंक से रकम निकालने की सीमा तय कर दी, जिससे ईमानदारी से खाने-कमाने वालों की जान पर बन आई। मोदीजी का जुमला था, न खाऊंगा, न खाने दूंगा। इसका बाद वाला हिस्सा अब सच हो गया है। लोग अपने हिस्से का ही नहीं खा पा रहे हैं। मुंबई में कई दिनों से पीएमसी बैंक के खाताधारक धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। वित्त मंत्री से मुलाकात भी कर ली। लेकिन उनका दर्द कोई समझ नहीं पा रहा है। महाराष्ट्र के चुनाव में भी बैंक की यह जालसाजी भाजपा के लिए कोई मुद्दा नहीं है।  मोदीजी कश्मीर का राग वहां अलाप रहे हैं।  पीएमसी के दो पीड़ित दिल का दौरा पड़ने से मर गए, एक ने आत्महत्या कर ली है। इनकी मौत के चिकित्सीय कारण बतलाए जा रहे हैं, लेकिन राजनैतिक कारणों पर चुप्पी है। जो खेल देश की आर्थिक राजधानी में हुआ है, वह कहीं भी हो सकता है। लेकिन जनता इंतजार ही कर रही है कि अपने घर में आग लगेगी, तब पानी के बारे में सोचेंगे। अभी तो उस राम मंदिर के बारे में सोचा जाए, जिस पर कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है, अगले महीने तक फैसला भी आ जाएगा, लेकिन टीवी में अब अयोध्या जीतेगी, जैसी हेडलाइन्स चल रही हैं। राम मंदिर बनाने के लिए इकऋा किए गए पत्थर दिखलाए जा रहे हैं।
पत्थर बन चुके पत्रकारों के लिए यही मुख्य खबर है। उनके पैसे न किसी बैंक में डूब रहे हैं, न उनके घर में कोई इस कदर लाचार होकर मर रहा है। उधर कश्मीर में सरकार का दावा है कि सब कुछ सामान्य है। मोदीजी तो बाकायदा विरोधियों को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन इस सरकार में खुद इतनी हिम्मत नहीं कि महिलाओं के शांतिपूर्ण, हथियाररहित विरोध-प्रदर्शन का सामना कर सके। मंगलवार को अनुच्छेद 370 हटाने के विरोध में श्रीनगर में प्रदर्शन कर रही कम से कम एक दर्जन महिलाओं को पुलिस ने हिरासत में लिया, इनमें पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला की वृद्धा पत्नी और बेटी भी शामिल हैं। कायदे से जनता को यह सवाल सरकार से करना चाहिए कि एक लोकतांत्रिक देश में शांतिपूर्ण विरोध कर रहे लोगों को आपने हिरासत में क्यों लिया? हो सकता है जम्मू-कश्मीर के लोगों के मन में यह सवाल उठ भी रहा हो, लेकिन बाकी भारत में तो इस मुद्दे पर खामोशी ही है। उत्तरप्रदेश में सरकार ने एक झटके में होमगार्ड के 25 हजार जवानों को हटाने का फैसला ले लिया था, क्योंकि इन्हें भुगतान के लिए सरकारी खजाने में रकम पूरी नहीं पड़ रही। इन में से बहुत से जवानों ने दुख और गुस्से में प्रदर्शन किया, तो सरकार के मंत्री आश्वासन दे रहे हैं कि किसी की नौकरी नहीं जाएगी। लोग आराम से दीवाली मनाएं। देश में कार्तिक मास की अमावस आने से पहले ही अंधेरा छाया हुआ है, और सरकार सबके लिए उजाले करने की जगह कुछ लोगों के लिए आतिशबाजी का इंतजाम करने में लगी है। जनता भी दूसरों की आतिशबाजी की चकाचैंध देखकर खुश है, यह भूल गई है कि इसके बाद उसके हिस्से केवल बारूद की गंध और धुआं ही बचेगा।
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