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बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

गांधी के देश में गोडसे का महिमामण्डन

गांधी के देश में गोडसे का महिमामण्डन
तनवीर जाफरी 
कृतज्ञ राष्ट्र इस वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है। इस अवसर पर गांधीवादी विचारधारा तथा गांधी दर्शन को लेकर पुनरू चर्चा छिड़ गई है। हिंसा, आक्रामकता, सांप्रदायिकता, गरीबी तथा जातिवाद के घोर विरोधी गांधी को देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इसलिए भी अधिक शिद्दत से याद किया जाता रहा है क्योंकि विश्व के कई हिस्सों में इस समय हिंसा, आक्रामकता, सांप्रदायिकता, जातिवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद तथा नफरत का बोलबाला हो रहा है। दुःख की बात तो यह है कि खुद गांधी का देश भारत भी इन्हीं हालात का शिकार है। मानवता को दरकिनार कर बहुसंख्यवाद की राजनीति पर जोर दिया जा रहा है। बहुरंगीय संस्कृति व भाषा के इस महान देश को एकरंगीय संस्कृति व भाषा का देश बनाने के प्रयास हो रहे हैं। जाहिर है गांधी दर्शन के विरुद्ध बनते इस वातावरण में उन्हीं शक्तियों तथा विचारधारा के लोगों की ही सक्रियता है जो गांधीजी के जीवनकाल से ही गांधी के सहनशीलता व श्सर्वधर्म समभावश् के विचारों से सहमत नहीं हैं। निश्चित रूप से यही वजह है कि आज देश में न केवल गांधी-विरोधी शक्तियां सक्रिय हो रही हैं बल्कि गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन भी मुखरित होकर किया जाने लगा है। उसकी मूर्तियां स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इतना ही नहीं जो लोग गोडसे का महिमामंडन करते हैं और उसे राष्ट्रभक्त बताते हैं वह लोग चुनाव जीत कर संसद में भी पहुंच चुके हैं। निश्चित रूप से गांधी-विरोध व गोडसे से हमदर्दी का मत रखने वालों का गांधीजी से मुख्यतः दो बातों को लेकर ही विरोध है। हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि वे मुसलमानों के हितों का अधिक ध्यान रखते थे तथा यह भी कि देश के बंटवारे में उनका रुख नर्म था। एक आरोप यह भी है कि विभाजन के पश्चात भारत पाक के मध्य हुए संसाधनों के बंटवारे के समय भी गांधीजी ने कथित रूप से पाकिस्तान के हित में कई फैसले लिए। इस तरह के आरोप ही अपने आप में यह साबित करते हैं कि गांधीजी कितने विशाल हृदय के स्वामी थे जबकि ऐसे इल्जाम लगाने वाले लोगों के विचार कितने संकीर्ण व स्वार्थ पर आधारित हैं। वैचारिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व इसके सहयोगी संगठनों को गांधी की विचारधारा का विरोधी ही माना जाता है। आज जो भी गोडसेवादी स्वर मुखरित होते सुनाई दे रहे हैं वे सभी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से ही जुड़े हुए हैं। परन्तु इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गांधीजी को विश्व के समक्ष भारत का अनमोल रत्न बताने की ही कोशिश करते हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी का एक लेख अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ। गांधीजी की 150 वीं जयंती के मौके पर प्रकाशित इस लेख का शीर्षक था श्भारत और दुनिया को गांधी की जरूरत क्यों है। अपने लेख की शुरुआत में मोदी ने अमरीकी नेता मार्टिन लूथर किंग के 1959 के दौरे को याद करते हुए उनके इस कथन का जिक्र किया है जिसमें लूथर किंग ने कहा था -दूसरे देशों में मैं एक पर्यटक के तौर पर जा सकता हूं परन्तु भारत आना किसी तीर्थयात्रा की तरह है। इस लेख में गरीबी कम करने, स्वच्छता अभियान चलाने व सौर ऊर्जा जैसी योजनाओं का भी जाक्र  है। निश्चित रूप से गांधी के दृष्टिकोण व उनके विचारों को किसी एक लेख या ग्रन्थ में समाहित नहीं किया जा सकता। गांधीजी ने हमेशा सह-अस्तित्व की बात की। उन्होंने गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात की। उनका कहना था कि हमको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। गांधीजी का कहना था कि मानवता एक महासागर के समान है, यदि सागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो पूरे महासागर को गंदा नहीं कहा जा सकता। परन्तु आज जानबूझ कर पूरी योजना बनाकर कुछ हिंसक लोगों की गतिविधियों को धर्मविशेष के साथ जोड़ने की जी-तोड़ कोशिश वैश्विक स्तर पर की जा रही है। वे कहते थे कि दुनिया के सभी धर्म, हर मामले में भिन्न हो सकते हैं, पर सभी एकजुट रूप से घोषणा करते हैं कि इस दुनिया में सत्य के अलावा कुछ भी नहीं रहता है। गांधीजी का विचार था कि अहिंसा की शक्ति से आप पूरी दुनिया को हिला सकते हैं। परन्तु आज जगह-जगह हिंसा से ही जीत हासिल करने की कोशिश की जा रही है। अहिंसा परमो धमर्रू की जगह गोया हिंसा परमो धर्मः ने ले ली है। गांधीजी की धर्म के विषय में भी जो शिक्षाएं थीं वे मानवतापूर्ण तथा पृथ्वी पर सदा के लिए अमर रहने वाली शिक्षाएं थीं।आप फरमाते थे कि - मैं धर्मों में नहीं बल्कि सभी महान धर्मों के मूल सत्य में विश्वास करता हूं। उनका कहना था कि सभी धर्म हमें एक ही शिक्षा देते हैं, केवल उनके दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। इसी प्रकार गांधीजी का कथन था कि हिंदूधर्म सभी मानवजाति ही नहीं, बल्कि भाईचारे पर जार देता है। गांधीजी यह भी कहा करते थे कि -मैं खुद को हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, बौद्ध और कन्फ्यूशियस मानता हूं।  जाहिर है महात्मा गांधी के इन विचारों में न तो कहीं साम्प्रदायिकता की गुंजाइश है न जाति या वर्ण व्यवस्था की। न गरीबी पैमाना है न अमीरी। न हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना है न बहुसंख्यवाद की राजनीति करने की गुंजाइश। वे हमेशा केवल मानवता और वास्तविक धर्म की बातें करते दिखाई देते थे। तभी तो वे यह भी कहा करते थे कि निर्धन हो या अमीर, भगवान सभी के लिए है। वह हम में से हर एक के लिए होता है। गांधीजी के मुताबिक-सज्जनता, आत्म-बलिदान और उदारता किसी एक जाति या धर्म का अनन्य अधिकार नहीं है। वे हमेशा लोगों को विनम्र रहने की सीख भी देते थे और कहते थे कि विनम्रता के बिना सेवा, स्वार्थ और अहंकार है। वे गरीबी को हिंसा का सबसे बुरा रूप मानते थे। आज के सन्दर्भ में यदि हम कर्ज से तंग हुए किसानों की आत्महत्या को देखें, बेरोजगारी व असुरक्षा की वजह से बढ़ती खुदकशी की घटनाओं को देखें, आसाम में एनआरसी के चलते लोगों में छाया भय तथा धर्म के आधार पर लोगों में फैलाई जा रही दहशत पर नजर डालें या फिर कश्मीर में कश्मीरियों के साथ होने वाले जुल्म व अन्याय को देखें, जनता के संसाधनों पर सत्ताधीशों की ऐशपरस्ती देखें, महिलाओं के साथ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा जुल्म व शोषण देखें तो हम आसानी से इस निष्कर्ष पर स्वयं पहुंच जाएंगे कि यह सब गांधी के देश में बढ़ते गोडसे के महिमामण्डन का ही परिणाम है। परन्तु इसके बावजूद सच्चाई तो यही है कि गोडसे व उसके साम्प्रदायिकता पूर्ण हिंदूवादी विचारों ने गांधी जी की हत्या कर उनको पूरी दुनिया के लिए इस कदर अमर कर दिया कि जो भी भारत की सत्ता पर बैठेगा उसके लिए दिखावे के लिए ही सही परन्तु महात्मा गांधी की सत्य व अहिंसा, मानवता व सर्वधर्म समभाव के सिद्धांतों की उपेक्षा व अवहेलना कर पाना कभी भी इतना आसान नहीं होगा।


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