लेबल

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

विकास का ढांचा बदले तो कुछ बात बने

विकास का ढांचा बदले तो कुछ बात बने
शीतला सिंह 
केन्द्र सरकार छोटे उद्योगों के लिए एक नई योजना बना रही है ताकि उन्हें देश की जीडीपी बढ़ाने का अस्त्र बनाया जा सके। इस योजना के लिए, जो लगभग एक हजार करोड़ रुपये की होगी, आर्थिक और सामाजिक आंकड़े जुटाए जा रहे हैं।  इस क्रम में ड्रोनों से सम्बन्धित इलाके की मैपिंग तो की ही जायेगी, डिजिटल माध्यमों से भी सूचनाएं जुटाई जायेंगी। इतना ही नहीं, लघु व मध्यम उद्योगों की परिभाषा बदलकर छोटे उद्योगों को श्रेणियों में बांटा जायेगा, ताकि उनकी वास्तविक दिक्कतों को पहचानकर उन्हें तत्काल राहत मुहैया कराई जा सके। इनकी नई श्रेणियां भी बनाई जायेंगी, जिससे कारोबारियों को जीएसटी रिफण्ड के साथ दूसरी रियायतें मुहैया कराई सकें। आभूषण, टेक्सटाइल और आटो क्षेत्र की अलग परिभाषा तय की जायेगी और विनिर्माण व सेवा क्षेत्र की श्वास्तविक पहचानश् सुनिश्चित की जायेगी। यह पहला अवसर नहीं है, जब लघु और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित करने व सुविधाएं देने की घोषणा की गई अथवा योजना बनाई गई हो। आजादी के बाद लघु, गृह और कुटीर उद्योगों की परिकल्पना की गई, तब भी उनके उत्पादों की बिक्री की सुविधाओं और समय से वित्तीय सहायता आदि की घोषणाएं की गई थीं। गांधी युग की तो परिकल्पना ही थी कि गृह व कुटीर उद्योगों को बचाए बिना देश का वास्तविक विकास सम्भव नहीं है। गांधी बड़े उद्योगों को देश के विकास का विलोम मानते थे, लेकिन तब जो खादी व ग्रामोद्योग संस्थान स्वयं उन्हीं की परिकल्पना के अनुसार शुरू किये गये, आज उनकी हालत बिगड़ती जा रही है। गांधी के निकट चरखा स्वतंत्रता आन्दोलन का अस्त्र था, जिससे वे ब्रिटेन के लंकाशायर को चुनौती दे रहे थे। उनकी मान्यता थी कि उसके रास्ते आत्मनिर्भरता तो आयेगी ही, लोगों को काम मिलेगा और हमारे स्वाभिमान की रक्षा भी होगी। लेकिन आजादी के बाद उनके अनुयायियों की सत्ता आई तो सोवियत संघ से प्रभावित होकर बनाई गई प्रथम पंचवर्षीय योजना के वक्त से ही बड़े उद्योगों के महत्व को स्वीकार और स्थापित करने का सिलसिला शुरू हो गया। अलबत्ता, स्वदेशी पर जोर और विदेशी से दूरी का सिद्धान्त तय हुआ और हाथ की बुनी खादी के कपड़े पहनने को कांग्रेस की सदस्यता की पात्रताओं में शामिल किया गया, लेकिन पंचवर्षीय योजनाएं अंततः समग्र विकास के वास्तविक लक्ष्य पाने के बजाय बड़े उद्योगों की ही सहायक बन गईं। उनके फलस्वरूप गरीब और गरीब जबकि अमीर और अमीर होते गये। उस वक्त देश की सर्वाधिक निर्भरता कृषि पर थी। आज भी है, लेकिन किसान जोतों के लिहाज से आज तक छोटे, बड़े, मध्यम, नाममात्रिक और अलाभकारी श्रेणियों में बंटे हैं। तब पंाच फीसदी बड़े किसानों के पास ही सबसे अधिक भूमि थी। इस स्थिति को बदलने के लिए जमींदारी खत्म की गई और बड़ी जोतों का अधिग्रहण करके भूमिहीनों व गरीबों को भूमि देने की घोषणा की गई, लेकिन यह घोषणा कागजों तक ही सीमित रह गई क्योंकि जिनके पास जमीन थी, वे भविष्य की व्यवस्था पर भी पैनी नजर बनाए हुए थे। उन्होंने सत्ता और कानून को ठेंगा कदखाकर अपनी भूमियों का बड़े पैमाने पर बेनामी हस्तान्तरण और बंटवारा कर डाला। इस दौरान बहुचर्चित रही खादी का सबसे बड़ा दर्द यह है कि गरीबों की मेहनत के भरपूर उपयोग सेे भी वह उनकी हालत में सुधार नहीं कर पाई। उन दिनों मिलों में बड़ी मशीनों द्वारा जो सूत व कपड़ा उत्पादित हो रहा था, वह सस्ता था और उसके मुकाबले महंगी पड़ने के कारण खादी उपभोक्ताओं की पसन्द नहीं बन पा रही थी। मिलों के कपड़ों में वैविध्य भी था। वे मारकीन से लेकर चादरें तक बहुत कुछ बनाती थीं। यहां तक कि वह गाढ़ा भी, जो खादी से निर्मित होता था। इसके चलते खादी के उत्पाद न मूल्य में उनका मुकाबला कर पाते थे, न लागत में। परिणाम यह हुआ कि खादी से जुड़े ग्रामोद्योग बन्द होते और सिमटते गये। सरकारी सहायता के बल पर उन्हें चालू रखने के प्रयत्न भी कारगर नहीं सिद्ध हुए, क्योंकि उनके बंद होने की गति व अनुपात दोनों कहीं ज्यादा थे। दूसरे पहलू पर जाएं तो देश के पिछड़े क्षेत्रों में सरकारी सहायता देकर नये उद्यम लगवाने के जो प्रयास हुए, वे भी बदनीयतीपूर्वक सरकारी सहायता हड़पने तक सीमित हो गये। इन नतीजों के आलोक में आगे चलकर देश के कर्णधारों की दृष्टि भी बदल गई। 1977 में केन्द्र में जनता पार्टी के बैनर पर बनी पहली गैरकांग्रेसी सरकार ने जहां कोकाकोला जैसी विदेशी कम्पनियों को अवांछनीय मानकर बाहर का रास्ता दिखा दिया था, पीवी नरसिंहराव के दौर में उदारीकरण के नाम पर विदेशी कम्पनियों को मनाकर वापस लाया गया। उनके लिए नई सुख-सुविधाओं, यहां तक कि श्रम कानूनों से बचत करने के प्रावधान भी किये गये। फिर तो यह निष्कर्ष भी निकाला जाने लगा कि बिना विदेशी पूंजी और सहायता के देश का विकास सम्भव ही नहीं। उद्योगों में बड़ी विदेशी पूंजी आई तो उसने उनमें मशीनीकरण और अभिनवीकरण की प्रक्रिया आरम्भ की।  इससे स्वाभाविक ही कल कारखानों में मजदूरों की संख्या घटी, जिनकी बेरोजगारी नई समस्या के तौर पर सामने आई और अभी भी विकराल बनी हुई है। लेकिन विदेशी पूंजी वाली कम्पनियों को इससे कोई मतलब नहीं है। वे नई स्थितियों में अपने लिए घोषित सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाने में ही मगन हैं और उनकी दृष्टि यह है कि भारत जैसा बड़ी जनसंख्या वाला विकासशील देश बाजार की दृष्टि से उनका बड़ा सहायक हो सकता है। सस्ती जमीन और सस्ते श्रम की उपलब्धता से यहां वे अपना मुनाफा भी बढ़ा सकती हैं। अब नये नियमों के तहत उन कम्पनियों को भारत में कमाये मुनाफे का भारत में ही उपयोग करने की कोई बाध्यता भी नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बड़ी विदेशी पूंजी भी गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वाली देश की लगभग आधी जनसंख्या को कोई लाभ पहुंचाने या उसके जीवनस्तर के उन्नयन में सहायक नहीं हो पाई है। ऐसे में सवाल है कि अब जिस नई योजना की घोषणा की जा रही है, वह वर्तमान बने-बनाए विकास के ढांचे को कितना बदल सकेगी? खेती-किसानी में मशीनों के इस्तेमाल को लेकर महात्मा गांधी ने कभी एक विदेशी संवाददाता के सवाल का जवाब देते हुए उससे पूछा था कि क्या टै्रक्टर में ऐसा गुण भी है कि वह हमारे पशुओं जैसी गोबर की खाद प्रदान कर सके? लेकिन आज खेतों की जुताई से लेकर फसलों को सींचने और उनकी कटाई-मड़ाई तक में मशीनों का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। यह छोटे या भूमिहीन और अलाभकारी जोतों वाले किसानों के लिए नुकसानदेह सिद्ध हो रहा है तो उन्हें लेकर यह नई योजना प्रस्तावित की जा रही है कि छोटी व अलाभकर जोतों को कारपोरेट खेती के लिए बड़ी कम्पनियों को दे दिया जाना चाहिए, ताकि वे उस पर आधुनिक ढंग से कृषि उत्पादन का कार्य कर और बेदखल किसानों को लाभ के हिस्से के तौर पर उससे ज्यादा उसे प्रदान कर सकें, जितनी उन्हें पहले उनकी भूमि से आय हुआ करती थी। इसका कुफल यह है कि किसान खुद को जिस भूमि का स्वामी मानते थे, वह भी उनके हाथ से निकलती जा रही है।  साफ है कि जब तक समग्र जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकास के ढांचे को नई शक्ल नहीं दी जाती और उसमें समाज के कमजोर वर्गों का लाभ सुनिश्चित नहीं किया जाता, पहले की ही भांति इस नई योजना से भी कोई लाभ नहीं होने वाला।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Featured Post

आजात चोरों ने बैंक में चोरी की बडी घटना अंजाम देने का प्रयास किया

  आजात चोरों ने बैंक में चोरी की बडी घटना अंजाम देने का प्रयास किया दहकती खबरें ब्यूरो सफलता न मिलने पर उठा ले गए सीसीटीवी का डीवीआर इटवा(सि...