लेबल

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

 अब बेहतर हो रही हैं सार्वजनिक सेवाएं 

 अब बेहतर हो रही हैं सार्वजनिक सेवाएं 
नरेंद्र सिंह तोमर
सार्वजनिक सेवाओं की सुविधाजनक, आसान व विश्वसनीय प्रणाली तैयार करने का कार्य अक्सर इस आधार पर छोड़ दिया जाता है कि यह सब निजी क्षेत्र कर लेगा, क्योंकि सार्वजनिक व्यवस्थाओं से गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की प्रदायगी कराना बेहद कठिन मान लिया गया है। भारत जैसे विशाल देश में वंचित परिवारों तक जरूरी सेवाओं की समता व न्यायपूर्ण प्रदायगी लाभार्थियों के साक्ष्य-आधारित चयन, भलीभांति किए गए अनुसंधान के आधार पर नीतिगत उपायों, सूचना प्रौद्योगिकी से जुडे संसाधनों की उपलब्धता और उनके पूर्ण उपयोग के जरिए मानवीय हस्तक्षेप को कम से कम करते हुए संघीय संरचना में काम करने वाली विभिन्न् एजेंसियों के साथ ठोस तालमेल पर निर्भर करती है। बुनियादी ढांचागत कमियों, विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रों और देश के दुर्गम भूभागों में दूर-दूर बसी विरल आबादी को ध्यान में रखते हुए यह कार्य और भी जरूरी हो जाता है। वास्तव में इतने बड़े पैमाने पर अपेक्षित सेवाओं की संकल्पना, योजना तैयार करना और सेवाएं प्रदान करना गैर-सरकारी एजेंसियों के लिए असंभव है। सच तो यह है कि श्सबका साथ, सबका विकास के व्यापक फ्रेमवर्क में सबको आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति और नए भारत का स्वप्न साकार करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था बहुत जरूरी है, ताकि अखिल भारतीय आधार पर कार्यक्रमों के आयोजन, वित्त-पोषण, क्रियान्वयन और निगरानी के साथ उनमें समय-समय पर अपेक्षित बदलाव किए जा सकें। पिछले कुछ वर्षों के दौरान ग्रामीण विकास हेतु चलाए गए ग्राम स्वराज अभियान जैसे कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी रहे हैं। वास्तव में ये कार्यक्रम समुदाय के प्रति पूरी जवाबदेही के साथ अपेक्षित परिणाम हासिल करने के लिए भरोसेमंद सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। गौरतलब है कि हमारी यह यात्रा जुलाई, 2015 में सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आंकड़ों को अंतिम रूप देने के साथ शुरू हुई। एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, मुफ्त बिजली कनेक्शन के लिए सौभाग्य, मकान हेतु प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, चिकित्सीय सहायता के लिए आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों का चयन एसईसीसी के अभाव संबंधी मानदंडों के आधार पर किया गया। मनरेगा के तहत राज्यों के श्रम बजटों के निर्धारण तथा दीनदयाल अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिला स्वसहायता समूहों के गठन में सभी अभावग्रस्त परिवारों के समावेशन हेतु एसईसीसी के आंकड़ों का उपयोग किया गया। गरीबी के सटीक निर्धारण, आंकड़ों में सुधार और उन्हें अद्यतन बनाने में ग्राम सभाओं की भागीदारी से आधार, आईटी,डीबीटी, परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग, कार्यक्रमों के लिए राज्यों में एक नोडल खाते, पंचायतों को धनराशि खर्च करने का अधिकार दिए जाने किंतु नकद राशि न देने, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) जैसे प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन सुधारों को अपनाया जा सका। इसके नतीजतन, लीकेज की स्थिति में बड़ा बदलाव आया। गरीबों के जन-धन खाते व अन्य खाते भी बिना बिचैलियों के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम बन गए। इससे व्यवस्था काफी सुधरी। मनरेगा जैसे कार्यक्रमों से गरीबों के खातों में धनराशि के अंतरण, टिकाऊ परिसंपत्तियों के सृजन और आजीविका सुरक्षा सहित प्रमुख सुधारों को बढ़ावा मिला। मांग के अनुसार दिहाड़ी मजदूरी के लिए रोजगार मुहैया कराना जरूरी है, साथ ही यह भी जरूरी है कि मजदूरी आधारित इस रोजगार के नतीजतन गरीबों की आय व दशा में सुधार लाने वाली टिकाऊ परिसंपत्तियों का सृजन भी हो। ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी और सामग्री के 60रू40 के अनुपात जैसे नियमों में बदलाव कर इसे जिला स्तर पर भी लागू किया गया। गरीबों के लिए स्वयं अपने मकान के निर्माण कार्य में 90ध्95 दिन के कार्य के लिए सहायता के रूप में व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाएं शुरू की गईं। मनरेगा और इसके सुचारू क्रियान्वयन के लिए विश्वसनीय सार्वजनिक व्यवस्था तैयार करना एक महत्वपूर्ण कदम है। हमने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए एक तकनीकी दल गठित कर साक्ष्य आधारित कार्यक्रम लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। अब इसके परिणाम दिख रहे हैं। 15 दिनों के भीतर ही भुगतान आदेशों की संख्या 2013-14 के मात्र 26 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 90 प्रतिशत से अधिक हो गई। ग्रामीण आवास कार्यक्रम में पिछले 5 वर्षों के दौरान डेढ़ करोड़ से अधिक मकान बनाए गए हैं। सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों ने देश भर में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में पारंपरिक मकान के डिजाइनों का अध्ययन किया। मौजूदा समय में सभी प्रकार की राशि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सत्यापित बैंक खातों में अंतरित की जाती है। संपूर्ण प्रक्रिया की निगरानी उचित समय पर वेबसाइट पर उपलब्ध डैशबोर्ड के जरिए की जाती है। प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग से मकानों का निर्माण कार्य पूरा होने की वार्षिक दर में 5 गुना वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत एसएचजी के माध्यम से महिलाओं की सामुदायिक एकजुटता उल्लेखनीय रहने के बावजूद आजीविका में विविधता लाने और बैंक लिंकेज प्रदान करने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। बैंक लिंकेज पर जोर देने से पिछले 5 वर्षों में एनआरएलएम के तहत लगभग तीन करोड़ महिलाओं के लिए दो लाख करोड़ रुपए से अधिक के ऋण की मंजूरी मिल चुकी है। आजीविका मिशन से जुड़ी 6 करोड़ से अधिक महिलाएं बगैर किसी पूंजीगत सबसिडी के गरीबों का भाग्य बदल रही हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में रचनात्मक बदलाव के लिए जरूरी है कि उनके नैनो उद्यमों को मदद दी जाए, ताकि वे आने वाले वर्षों में सूक्ष्म व लघु उद्यम का रूप ले सकें। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने उद्यमों के विकास हेतु डीडीयू-जीकेवाई के तहत 67 फीसदी से अधिक रोजगार व आरएसईटीआई कार्यक्रम के तहत दो तिहाई से अधिक नियोजन सुनिश्चित किया है। बेशक निजी क्षेत्र ने कई शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इसके साथ-साथ यह भी समझें कि सामाजिक क्षेत्र में गरीबों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम आदि के लिए अब भीसमुदाय के नेतृत्व और स्वामित्व वाली एक ऐसी सार्वजनिक सेवा प्रदायगी व्यवस्था की जरूरत है, जो परिणामों पर केंद्रित हो और गरीबों के जीवन-स्तर में सुधार व कल्याण ही उसका अंतिम लक्ष्य हो। विश्वसनीय सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करने से अब पीछे नहीं हटा जा सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान राजग सरकार शुरू से ही इसके लिए प्रयत्नशील रही है। इसके अनेक सुखद परिणाम सामने आए हैं और यह सिलसिला रुकने वाला नहीं।
(लेखक केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण, ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री हैं)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Featured Post

आजात चोरों ने बैंक में चोरी की बडी घटना अंजाम देने का प्रयास किया

  आजात चोरों ने बैंक में चोरी की बडी घटना अंजाम देने का प्रयास किया दहकती खबरें ब्यूरो सफलता न मिलने पर उठा ले गए सीसीटीवी का डीवीआर इटवा(सि...