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सोमवार, 4 नवंबर 2019

कश्मीर पर दुष्प्रचार, क्या करे सरकार?

कश्मीर पर दुष्प्रचार, क्या करे सरकार?
पुष्परंजन 
लंदन से 72 किलोमीटर दूर नोटिंघम में समोसे से कारोबार शुरू करने वाली माडी शर्मा को भारत में कोई जानता तक नहीं था। पूरे यूरोप में महिला सशक्तीकरण की बात करने वाली माडी शर्मा परित्यक्ता हैं। लंदन से ब्रसेल्स तक उनकी पहचान कुछ वर्षों में बनी है। मालदीव में आम चुनाव था, दो-तीन एमईपी (मेंबर यूरोपियन पार्लियामेंट) को निजी तौर पर ले जाने की वजह से माडी शर्मा सुर्खियों में आयीं थीं। बांग्लादेश में चुनाव के समय शेख हसीना से बगलगीर माडी की तस्वीरें, कईयों के लिए जिज्ञासा का कारण बनी थीं। माडी शर्मा का मामला हिट हुआ है, यूरोपीय संघ के सांसदों को निजी रूप से निर्यात करने की वजह से। इन एमईपी व कूटनीतिकों को प्रायोजित तरीके से लाने की प्रक्रिया को आयात-निर्यातही कहा जाए। आपको अपनी विचारधारा से मिलते-जुलते सांसद कहां, कितने,और किसलिए चाहिए, उसकी आपूर्ति के लिए विश्वव्यापी एजेंट-एक्सपोर्टर बैठे हुए हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, यह तो बड़ा अनैतिक है, कूटनीतिक मर्यादा के विरूद्ध। मगर, क्या करें? इस तरह की अनैतिकता पाकिस्तान अरसे से किया जा रहा था। ब्रसेल्स इसका अधिकेंद्र रहा है, जहां 28 सदस्यीय यूरोपीय देशों की संसद है। कभी संसद के भीतर, तो कभी बाहर कश्मीर की आवाज बुलंद होती थी। 2004 से अब तक, इसका मैं खुद साक्षी रहा हूं। जो महानुभाव आईएसआई द्वारा फं डेड आयोजन में वहां शिरकत कर चुके थे, आप नाम सुनेंगे, हैरान रह जाएंगे। बीजेपी राज्य सभा सांसद सुब्रहमण्यम स्वामी, जो राष्ट्रवाद पर सबसे अधिक ज्ञान बांटते हैं। गौतम नवलखा जिन्हें राष्ट्रद्रोही मान लेने की प्रक्रिया चल रही है, बीजेपी के पूर्व सांसद डॉ उदित राज, कुलदीप नैयर, प्रोफेसर राधा कुमार, प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय, मनोज जोशी, भारत भूषण, कश्मीर टाइम्स के वेद भसीन, दिलीप पडगांवकर, हरिंदर बावेजा, पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर, रीता मनचंदा जैसे दर्जनों नाम हैं, जिन्होंने समय-समय पर कश्मीर सेंटर ब्रसेल्स के सालाना आयोजन में भाग लिया था। कश्मीर सेंटर जब तक खुला रहा, उसके कार्यालय में घुसते ही इन शख्सियतों की तस्वीरें नुमाया होती थीं। 2006 में हुई कश्मीर-ईयू कांफ्रेंस की कुछेक तस्वीरों में कश्मीर पर वार्ताकार रह चुकीं राधा कुमार, डॉ. फई के साथ बैठी दिखी थीं। कश्मीर सेंटर के दूसरे सत्र में जनरल परवेज मुशर्रफ  के साथ राधा कुमार, पूर्व राजनयिक जी.पार्थसारथी मंच साझा करते दिखें। तो सवाल बनता है कि भारत सरकार को इसकी सूचना थी, या नहीं? बड़ा अजीब सा लगता है कि ये लोग आईएसआई का घोषित एजेंट बैरिस्टर मजीद ट्रांबो के मेहमान हो सकते हैं। कैसे? इसका उत्तर आज तक नहीं मिल सका है।यूरोपियन कमीशन से कुछ सौ मीटर के फासले पर कश्मीर सेंटर ब्रसेल्स का कार्यालय था, जिसकी बुनियाद कश्मीर में जन्में बैरिस्टर मजीद ट्रांबो और सैयद गुलाम नबी फई ने रखी थी। मुंबई विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई कर चुके और लंदन में सेटल्ड बैरिस्टर मजीद ट्रांबो हर साल ब्रसेल्स के ईयू परिसर में कश्मीर सप्ताह मनाया करते थे। फ ोटो प्रदर्शनी, रोड थिएटर से इतर कोशिश होती कि भारत के नामी-गिरामी चेहरे उनकी संगोष्ठी में शामिल हों। ट्रांबो का श्कश्मीर सेंटर ब्रसेल्सश्, और अली रजा सैयद की कश्मीर कौंसिल ईयू के बारे में बताना आवश्यक है कि इसे आईएसआई और वर्ल्ड कश्मीर डायसपोरा अलायंस (डब्ल्यू.के. डी.ए) से फंड मिलता रहा था। 19 जुलाई 2011 को अमेरिका के फेयरफैक्स, वर्जिनिया में सैयद गुलाम नबी फई की गिरफ्तारी के बाद इस पूरे नेक्सस का पता चला। सैयद गुलाम नबी फई को अमेरिकी अदालत ने मार्च 2012 में दो साल की सजा सुनाई थी। अदालत ने फई को कश्मीर के लिए लॉबी करने के वास्ते आईएसआई से 40 लाख डॉलर लेने का दोषी पाया था। 16 माह की जेल के बाद 22 नवंबर 2013 को फई,अमेरिकी कोर्ट के रहमों-करम पर रिहा हुआ। कश्मीर के बदगाम जिले के बादवां गांव में जन्मा, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट गुलाम नबी फई, अमेरिका पीएच.डी. करने के बहाने पहुंचा था, और वर्जिनिया में श्कश्मीरी अमेरिकन कौंसिल की स्थापना की थी। उन दिनों एफ बीआई ने वर्जिनिया, ब्रसेल्स और लंदन में सक्रिय उन लोगों को एक्सपोज किया था, जो दुनिया भर में दुष्प्रचार की दुकान थिंक टैंक के नाम पर चला रहे थे। मजीद ट्रांबो पर इतना दबाव पड़ा कि उसे ब्रसेल्स स्थित मिथ्या प्रचार की दुकान बंद करनी पड़ी। यह 1990 की बात है, जब कुलदीप नैयर ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त हुआ करते थे। उन्हीं दिनों पाक के डिप्टी हाईकमिश्नर आसिफ दुर्रानी ने तहरीक ए कश्मीर नामक फोरम की स्थापना बरमिंधम में की थी। जुलाई 1990 के अंतिम हफ्ते आजाद कश्मीर में सक्रिय जमात ए इस्लामी के प्रमुख अब्दुर रशीद दुर्रानी को ब्रिटेन के स्पार्क ब्रुक सम्मेलन में बुलाया गया। उसी सम्मेलन में ब्रिटिश हाउस ऑफ लार्डस के सदस्य नाजिर अहमद ने कश्मीर सेंटर लंदन, कश्मीर सेंटर ब्रसेल्स की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। 1993 आते-आते अमेरिका, कनाडा, यूरोप व मध्यपूर्व के देशों में कश्मीर सेंटर की दर्जनों शाखाएं खुल चुकी थीं। 57 सदस्यीय मुसलमान देशों का संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) का सम्मेलन 1994 में तेहरान में हुआ। इसी सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान ने ओआईसी कांटेक्ट गु्रप ऑन कश्मीर की बुनियाद रख दी। यूरोप में जो लोग कश्मीर गु्रप की नुमाइंदगी कर रहे थे, उनके सदस्य ओआईसी देशों के सम्मेलन में लगातार जाने लगे, और कश्मीर में मानवाधिकार हनन का सवाल मिर्च-मसाले लगाकर उठाते रहे। सवाल यह है कि पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान जिस तरह कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उछालता रहा, उसे काउंटर करने के वास्ते हमने क्या किया? हम हमेशा बचाव की मुद्रा में क्यों रहे? एंबेसडर अशोक सज्जनहार ब्रसेल्स से अवकाश के बाद दिल्ली आ चुके हैं। भारतीय कूटनीतिक कितने बेबस होते थे, उससे गुजर चुके हैं अशोक सज्जनहार। मैं सिर्फ  एक नाम दे रहा हूं। लंदन से बर्लिन तक अनेकों भारतीय कूटनीतिक मूक दर्शक होकर कश्मीर पर पाकिस्तान की बेशर्मी देखते रहे हैं। अब्दुल बासित नई दिल्ली में हाई कमिश्नर नियुक्त होने से पहले बर्लिन में पाक राजदूत थे। बासित ने कूटनीतिक तहजीब को ताक पर रखकर बर्लिन में हर साल श्कश्मीर दिवसश् का आयोजन किया था। अफ सोस कि भारत की ओर से इसे काउंटर करने का प्रयास उतनी शिद्दत से नहीं किया गया।दिक्कत यह है, एफ बीआई द्वारा दबाव के बावजूद, कश्मीर पर दुष्प्रचार की हरकतें रूकी नहीं हैं। इन्होंने कश्मीर वाच डॉट कॉम जैसे दर्जनों वेब पेज निकाले, सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफ ार्म का इस्तेमाल आरंभ किया है। 30 अप्रैल 2018 को बैरिस्टर मजीद ट्रांबो ने ब्रसेल्स प्रेस क्लब में कश्मीर के सवाल पर कुछ एमईपी, शिक्षाविद और पत्रकार बुलाये। इसी मौकेघ् पर श्ब्रूज्ड कश्मीरश् नाम से एक डॉक्यूमेंट्री दिखाकर यह बताने की चेष्टा की गई कि पीएम मोदी की सरकार कश्मीरियों को कितना चोट पहुंचा रही है। मतलब, अमेरिकी खुफि या ने इनकी इतनी दुर्गत की, मगर इनकी बुरी आदतें गई नहीं हैं। भारत सरकार की सेवा में एक से एक थिंक टैंक हैं, मगर दुर्भाग्यपूर्ण है कि माडी शर्मा जैसी एनजीओ संचालिका का सहारा मोदी सरकार को लेना पड़ा। क्यों? इसका उत्तर ये नहीं देंगे। माडी शर्मा से लेकर श्रीवास्तवा गु्रप तक की कहानी की सिल्वर जुबली,विजुअल व सोशल मीडिया पर हो चुकी है। अब उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं। सरकार की चुप्पी से यह मामला दफन हो जाएगा, यह भी संभव नहीं है। सरकार की ओर से बुनियादी गलती यही हुई है कि ऐसे प्रयासों के लिए विपक्ष को भरोसे में नहीं लिया गया। कश्मीर को द्विपक्षीय से बहुपक्षीय मामला मोदी कूटनीति ने बनाया। आप यूरोप के सांसदों, कूटनीतिकों पर भरोसा करते हैं, अपने देश के नेताओं पर नहीं, यह संदेश तो पूरी दुनिया में गया है। अगले संसद सत्र में प्रतिपक्ष तो पूछेगा कि श्रीवास्तवा गु्रप का इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ नॉन अलायंड स्टडीज व माडी गु्रप का वीमेंस इको-नॉमिक एंड सोशल थिंक टैंक (डब्ल्यूईएसटीटी) के पास सेवेन स्टार मेहमाननवाजी के वास्ते करोड़ों रूपये आये कहां से? ईयू के रिकार्ड बताते हैं किमाडी शर्मा की डब्ल्यूईएसटीटी के पास पिछले वित्त वर्ष में 24 हजार यूरो, यानी 19 लाख रूपये की जमा-पूंजी थी। इस महिला का बोल्डनेस देखिये, 19 लाख मात्र की पूंजी और दावेदारी है कि माडी शर्मा उर्फ मधु शर्मा इंटरनेशन बिजनेस ब्रोकर हैं।  लगभग ऐसी ही कंगाल कथा ए-2 बाई 59 सफदरजंग इंक्लेव में चलने वाली श्रीवास्तवा गु्रप की है। इस तीन मंजिली कोठी में एनर्जी से लेकर ट्रेडिंग, पब्लिशिंग, खनन, ट्रेवल, मेडिकेयर जैसी सात कंपनियां और गुट निरपेक्ष देशों का थिंक टैंक भी चल रहा था, जिसके कर्ता-धर्ता अंकित श्रीवास्तवा, उनकी पत्नी नेहा श्रीवास्तवा हैं। दोनों पति-पत्नी सात कंपनियों के डायरेक्टर हैं। अंकित की मां डॉ. प्रमिला श्रीवास्तव चेयरपर्सन बताई गईं हैं। श्रीवास्तवा गु्रप का श्ए-टू-एन ब्राडकास्टिंग लिमिटेडश् ने पिछले वित्त वर्ष में दो हजार रूपये का घाटा दिखाया था। ए-टू-एन ब्राडकास्टिंग लिमिटेड का सिटी बैंक में 10 हजार रूपये और ओरियंटल बैंक में भी दस हजार रूपये खातों में जमा हैं। श्रीवास्तवा मेडिकेयर प्राइवेट लिमिटेड ने 2 लाख 48 हजार का घाटा पिछले वित्त वर्ष में दिखाया है। इनका शेयर कैपिटल एक लाख का है। उसी तरह श्रीवास्तवा गु्रप के ए-टू-एन एनर्जी सप्लाई, एएनआर हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड और न्यू देलही एवीएशन में मात्र एक-एक लाख के शेयर कैपिटल हैं। एएनआर हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड में इन्होंने 31 लाख 56 हजार का घाटा दिखाया है। दरअसल, मोदी सरकार को यह गलतफहमी हो गई है कि चाहे हम कुछ भी करें, हमसे कोई पूछे नहीं। और जवाब देने के लिए भी हम बाध्य नहीं। हम चाहे समोसे वाली को सवा अरब की आबादी वाले देश की कूटनीति का ठेका दें, या फि र दिल्ली की किसी कोठी में चलने वाली प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को। जो हमसे सवाल पूछेगा, वह देशद्रोही की श्रेणी में आएगा! 


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