नव नाजीवादियों के तार भारत में क्यों?
पुष्परंजन
फ्रांस के ल्यों शहर से एक महिला सावित्री देवी मुखर्जी 23 जून 1971 को मुंबई आईं। उस दौर में यूरोप के नाजीवादियों के बीच इस महिला का बौद्धिक डंका बजता था। अगस्त 1962 में ब्रिटेन के ग्लूकशायर में अंतरराष्ट्रीय नाजी कांफ्रेंस हुआ था, जहां वर्ल्ड यूनियन ऑफ नेशनल सोशलिस्ट की बुनियाद रखी गई। इसकी संस्थापक सदस्यों में से सावित्री देवी भी थीं। साठ के दशक में सावित्री देवी की लिखी किताबें आज के नव नाजीवादियों के काम आ रही हैं। अपने लेखन के जरिये सावित्री देवी मुखर्जी ने स्थापित किया था कि हिटलर कलियुग में विष्णु के अवतार थे। सावित्री देवी जर्मन पुरातत्वविद् डॉ. हिनरीश शीलेमन्न की भक्त थीं, जिन्होंने 1896 में स्वास्तिक की खोज तुर्की के ट्रॉय (आज का अनातोलिया) में एक खुदाई के दौरान की थी। कुछ मृद भांडों और मिट्टी के बॉल पर उकेरे स्वास्तिक चिह्न भारत में दिखने वाले स्वास्तिक जैसे ही थे। उसी स्वास्तिक को थोड़ा सा टेढ़ा कर 1920 में नाजी पार्टी ने अपना प्रतीक चिह्न बनाया। देर-सवेर अतीत का रिश्ता वर्तमान से बन ही जाता है। इस समय अमेरिकी-जर्मन खुफिया एजेंसियां उन तमाम नव नाजियों की तलाश में हैं, जो उत्तर अमेरिका व यूरोप से भारत किसी न किसी बहाने आये हैं। दक्षिणपंथ भारत में कैसे समृद्ध हुआ, यह भी उनकी जिज्ञासा का विषय है। सावित्री देवी मुखर्जी, मुंबई से दिल्ली कुछ साल के वास्ते रहने आईं, तो घर में दर्जनों बिल्लियां रख लीं, मगर साथ में उन्होंने सांप भी पाल लिया था। अतीत के उन पन्नों को जर्मन जांच एजेंसियां फिर से पढ़ने में व्यस्त हो गई हैं। 2001 से 2007 तक जर्मनी रहते मैंने स्वयं देखा कि स्वास्तिक चिह्न देखते ही वहां की सुरक्षा एजेंसियां कैसे सतर्क हो जाती थीं। आम तौर पर भारतीय प्रवासियों के पास पोस्ट के जरिये ऐसा कोई स्वास्तिक कार्ड मुसीबत को दावत देने के साथ आता। उसके बारे में जांच होती, और जब यह सुनिश्चित हो जाता किसी शुभ कार्य के निमित्त यह भेजा गया है, तो स्वास्तिक को हरी झंडी मिलती। कभी चोरी-छिपे घूमता स्वास्तिक अब जर्मन विश्वविद्यालयों में दिखने लगा है। नवंबर 2018 में बर्लिन के हुमबोल्ट विश्वविद्यालय में छात्रों को स्वास्तिक निशान के साथ एक पर्ची मिली, जिसमें अपील की गई थी कि आप श्जर्मन एटमवाफेन डिवीजनश् ज्वाइन करें। इसके प्रकारांतर ऐसे पैम्फलेट फ्रैंकफर्ट, कोलोन और बॉन विश्वविद्यालयों में भी जब मिले, तो खुफि या एजेंसियों का सतर्क हो जाना लाजिमी था। यूरोप की खुफि या एजेंसियां स्वास्तिक के तार भारत में लगातार ढूंढती रही हैं। जर्मनी में आंतरिक सुरक्षा पर निगाह रखने वाली खुफि या एजेंसी बीएफवी के प्रमुख थॉमस हाल्डेनवेग का यह बयान महत्वपूर्ण था कि हमें बाहर की एजेंसियां स्वास्तिक समर्थक एटमवाफेन के बारे में जानने में मदद करें।
जांच एजेंसियां कभी खुद को तब मुश्किल हालात में पाती हैं, जब उसी विचारघारा के समर्थक बड़े अधिकारियों से उन्हें सहयोग लेना होता है। उदाहरण के लिए नई दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास है, जिसके राजदूत वाल्टर जे. लिंडर 17 जुलाई 2019 नागपुर संघ मुख्यालय गये थे। भारत में यह विषय कुछेक घंटों के लिए जरे बहस थी, मगर जर्मनी में यह मुद्दा अबतक ठंडा नहीं पड़ा है। जर्मनी के सत्रह सौ प्रबुद्ध लोगों ने पीटर फिडरिश की अगुआई में चांसलर आंगेला मैर्केल को पत्र लिखकर एंबेसडर लिंडर को हटाने की मांग की है। पत्र में लिखा है कि राजदूत वाल्टर जे. लिंडर, हिटलर के प्रशंसक माधव सदाशिव गोलवरकर की तस्वीर के साथ फ ोटो ऑप कराते दिखे हैं, उससे उनकी विचारधारा का पता चलता है। जबकि एंबेसडर लिंडर ने अपनी ओर से स्पष्ट किया था कि एक जर्मन होने के नाते मुझे आरएसएस के बारे में मालूम है कि 1930 और 40 के बीच क्या हुआ था। मैं तो नागपुर संघ मुख्यालय यह देखने गया था कि इंडियन मौजक देखने में कैसा लगता है।
यों, सुनने में यह कुछ अजीब सा लगता है कि फ र्श पर लगे मोजक को देखने एक राजदूत को नागपुर जाना पड़ा। जर्मनी में इस मोजक वाले स्पष्टीकरण का मजाक बन रहा है। चांसलर आंगेला मैर्केल 31 अक्टूबर से दो नवंबर तक नई दिल्ली में थीं, मगर जर्मन एंबेसडर पर कार्रवाई का सवाल कूटनीति के गलियारे में कहीं गुम सा गया। जर्मन खुफि या अधिकारी नव फासीवाद के जिस तार की तलाश भारत में करना चाहते हैं, मौजूदा माहौल में उन्हें सफलता की आशा कम ही दिखती है। ब्रिटेन, रूस और जर्मनी समेत पूर्वी यूरोप कुछेक वर्षों से नव-नाजियों से जूझ रहा था। मगर, इस समय $खतरनाक स्थिति अमेरिका में तैयार एक नये ग्रुप को लेकर पैदा हुई है। नाम है, एटम वाफेन डिवीजन (ए.डब्ल्यू.डी)! इस ग्रुप के सदस्य कमांडो जैसे ड्रेस, पंखे जैसा प्रतीकचिह्न,बाजू में स्वास्तिकपट्टी और खोपड़ीनुमा नकाब मुंह पर लगाये दिखते हैं। यह ग्रुप 2015 में फ्लोरिडा में स्थापित हुआ था, जिसका लक्ष्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और बाल्टिक देशों में फासीवाद को विस्तार देना है। इनके निशाने पर अश्वेत रहते हैं। जो अश्वेतों के समर्थक हैं, उन्हें भी ये नहीं बख्शते। दर्जनों हत्याएं, हमले, अमेरिकी ध्वज को जलाने और हेट क्राइम की वजह से अमेरिका समेत दूसरे देशों में इनकी दहशत का विस्तार हुआ है। जो बात सबसे उल्लेखनीय है, वह यह कि सावित्री देवी मुखर्जी ने जो कुछ लिखा था, इन नव फासीवादियों के लिए पवित्र ग्रंथ की तरह है। हालिया एक घटना ने इस तंत्र को और चर्चा में ला दिया है। अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता और शैक्षणिक संस्थानों में जाने वाली प्रखर वक्ता डोना क्लार्क पिछले साल जर्मनी रहने के लिए आ गईं। अपने काम करने के दौरान उन्हें अमेरिका में कई बार ए.डब्ल्यू.डी. वालों का हमला सहना पड़ा था। मगर, डोना क्लार्क के लिए जान के लाले जर्मनी जाने के बाद भी पड़े रहे। नवंबर 2018 में डोना क्लार्क के पास अंग्रेजी में एक मैसेज जर्मन खुफि या एजेंसी की ओर से आया कि यदि आपको सुरक्षा से संबंधित किसी तरह की समस्या है, तो हमसे तत्काल संपर्क करें। जर्मन खुफि या एजेंसी, संघीय अपराध कार्यालय, संक्षेप में बीकेए (बुंडस क्रिमिनाल आम्ट) को अमेरिकी खुफि या एफ बीआई से खबर मिली थी कि डोना क्लार्क खतरे में हैं। संदेश में यह भी जानकारी साझा की गई थी कि एटम वाफेन डिवीजन (ए.डब्ल्यू.डी.) के कुछ सदस्य नवनाजीवादियों के साथ जर्मनी गये हैं, जिन्हें डोना क्लार्क की तलाश है। अधिकारियों ने डोना क्लार्क को यह सुनिश्चित करने को कहा कि जो रिहायशी पता उन्होंने सरकारी रजिस्टर में दर्ज करा रखा था, उसे डिलीट किया गया है, इसे कन्फर्म करें, और बाहर से घर वापसी तक अपने हेडफोन का इस्तेमाल बिल्कुल न करें। एटम वाफेन डिवीजन (ए.डब्ल्यू.डी.) ने इस समय जर्मनी और बाल्टिक देशों में खासा दहशत फैला रखा है। जर्मन गृहमंत्री होर्स्ट सीहोफर को बोलना पड़ा कि हमारी खुफिया एजेंसियां ए.डब्ल्यू.डी. पर नजर रख रही हैं। उसकी एक और वजह 27 अक्टूबर को ग्रीन पार्टी के दो सांसद, सेम ओजमिर और क्लाउडिया रूथ को जान से मारने की धमकी थी। किसी एटम11 के अकांउन्ट से सेम ओजोमिर को भेजे ई-मेल संदेश में लिखा था लेफ्ट विंग वाले सूअर, अब तुम हमारे डेथ लिस्ट में हो! सांसद क्लाउडिया रूथ को लगभग ऐसा ही संदेश भेजते हुए लिखा गया था, तुम दूसरे नंबर पर हो। हमें तुम्हें भी मारना है। इन धमकियों के नीचे लिखा था, श्आपका विश्वासभाजन, एटमवाफेन डिवीजन डॉयचलांड! इन धमकियों के कुछ दिनों बाद, जर्मनी के विदेश राज्य मंत्री मिशेल रूथ ने दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फ्यूर डॉयचलांड (एएफ डी) की निंदा करते हुए कहा था कि ये लोग राइट विंग अतिवाद के राजनीतिक सरपरस्त हैं। सोशल डेमोक्रेट पार्टी के इस मंत्री का इतना कहना भर था कि 24 घंटे बाद उन्हें ई-मेल पर संदेश आया, तेरे चेहरे पर तेज चाकू से स्वास्तिक का निशान बना देंगे! इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि जो लोग जर्मनी में सरकार चला रहे हैं, वे भी दक्षिणपंथियों द्वारा दहशत में हैं। और दक्षिणपंथियों ने स्वास्तिक को श्रद्धा नहीं, एक बार फिर से आतंक फैलाने का प्रतीक बना दिया। जर्मनी के विभिन्न शहरों में लगभग 50 ऐसे मेयर हैं, जिन्होंने विभिन्न थानों में शिकायत कर रखी है कि नवनाजीवादियों ने उन्हें मारा-पीटा है। जर्मन संघीय पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि 2018 में सिर्फ राजनेताओं पर 1256 हमले हुए हैं। इनमें 517 वैसे हमले थे, जिनका लक्ष्य दक्षिणपंथ का दहशत फैलाना था। 222 उस तरह के हमले थे, जो वामपंथ समर्थकों ने कराये थे। और 43 वैसे हमले, जिनका उद्देश्य केवल अपराध करना था। इन आंकड़ों से यह तस्वीर उभरती है कि जर्मनी जैसे देश में अपराध किसी राजनीतिक मकसद से अधिक होने लगा है, उसमें भी दक्षिणपंथी, हिंसा की राजनीति अधिक कर रहे हैं। जर्मनी से बाहर खुफि या एजेंसी बीकेए यह जानना चाहती है कि यूरोपीय संघ में एएफ डी के जर्मन संासद निकोलस फेस्ट और एलिस वीडेल जब कश्मीर दर्शन के बहाने 29 अक्टूबर से 2 नवंबर तक भारत आये थे, यहां किन-किन दक्षिणपंथियों से मिले?सवाल यह है कि इस तरह की जानकारी की तह तक जाना क्या इतना आसान है? किसी विदेशी एजेंसी के लिए ऐसी सूचनाओं का प्रारंभिक स्रोत दूतावास होता है। वैसे भी दक्षिणपंथ का विस्तार जैसा विषय खुफि या एजेंसियों की हद्देनजर से बाहर है। अकादमिक क्षेत्र निरंतर उसपर काम कर रहा है। छोटा सा उदाहरण, जर्नल ऑफ कंटपररी एशिया है। भारत में अर्थतंत्र और राज्य को नियंत्रित करने के वास्ते राज्यवाद (स्टैटिजम) कैसे देखते-देखते हावी हो गया, उसपर प्रिया चाको का एक दिलचस्प लेख आया है। उसी जर्नल में एडवर्ड एंडरसन और क्रिस्टोफ जेफ्रे लॉट ने श्हिंदू नेशनलिजम सेफ्रनाइजेशन ऑफ पब्लिक स्फेयर जैसे मास्टरपीस में जो विचार दिये हैं, उसके निस्बतन यह तो स्पष्ट होता है कि पश्चिम की निगाहें निरंतर भारत पर हैं
दहकती खबरें न्यूज चैनल व समाचार पत्र सम्पादक- सिराज अहमद सह सम्पादक - इम्तियाज अहमद समाचार पत्र का संक्षिप्त विवरण दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र राजधानी लखनऊ से प्रकाशित होता है । दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त समाचार पत्र एवं उक्त समाचार पत्र का ही यह न्यूज़ पोर्टल है । निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं या हमें ईमेल कर सकते हैं - 9044777902, 9369491542 dahaktikhabrain2011@gmail.com
बुधवार, 20 नवंबर 2019
नव नाजीवादियों के तार भारत में क्यों?
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