गंभीर बीमारियों की नजर से बचें, टीका जरूर लगवाएं
आशीष व्यास
बांग्लादेश की क्रिकेट टीम इंदौर में टेस्ट मैच हार गई। शुरुआत से ही मैच पर भारत का कब्जा बना हुआ था। पूरे मैच में बांग्लादेश की टीम लड़खड़ाती ही नजर आई, जैसे कमजोर पैरों से जमीन पर पकड़ ही नहीं बन पा रही हो। बांग्लादेश के संदर्भ को समझते हुए अब आगे बढ़ते हैं। और, ऐसे सवाल से फिर शुरुआत करते हैं जिसकी संबद्धता चैंका सकती है! क्या बांग्लादेश, टीकाकरण और मध्य प्रदेश के बीच कोई संबंध हो सकता है? इस प्रश्न की पड़ताल से पहले पांच साल पूर्व मध्य प्रदेश में आकर बसीं सामाजिक कार्यकर्ता समरुख धारा से उस अभियान के बारे में जानना जरूरी है, जो बांग्लादेश में गर्भवतियों और बच्चों के स्वास्थ्य के मद्देनजर चल रहा है। श्...बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, मैंने अपनी टीम के साथ एक प्रोग्राम डेवलप किया था। यह मोबाइल पर गर्भवतियों व प्रसूताओं को स्वास्थ्य और टीकाकरण के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाता है। यह एसएमएस सेवा की तरह है, जो टीका लगवाने के लिए लगातार आगाह करती है। यह सेवा अब भी काम कर रही है। इससे दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में रह रही आबादी तक टीकाकरण के फायदे सीधे पहुंच रहे हैं।श् जब बांग्लादेश में ऐसा व्यवस्थित तंत्र विकसित हो सकता है, तो मध्य प्रदेश में क्यों नहीं? विशेष रूप से तब, जब हाल ही में सामने आई रिपोर्ट में मध्य प्रदेश को देश के ऐसे राज्यों में शामिल किया गया है, जो टीकाकरण में पीछे हैं। मध्य प्रदेश में टीकाकरण की विसंगतियों को समझने के लिए देश की समग्र स्थिति पर नजर डालना भी जरूरी है। भारत में टीकाकरण अभियान भले वर्ष 1978 में शुरू हुआ, लेकिन 19 नवंबर 1985 से यह व्यापक रूप में सामने आया। इसके आकार-आवश्यकता को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि यह अभियान विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रमों में शामिल है। जन्म लेने वाले हर बच्चे के लिए संपूर्ण टीकाकरण अनिवार्य है, लेकिन अभी भी 30 प्रतिशत बच्चे इससे वंचित हैं। इस कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने पांच साल पहले मिशन श्इंद्रधनुषश् शुरू किया था। इसका उद्देश्य डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, पोलियो, टीबी, खसरा और हेपटाइटिस-बी के खिलाफ वर्ष 2020 तक हर बच्चे को टीकाकरण के दायरे में लाना था। पहले चरण में 28 राज्यों के 201 ऐसे जिलों को चिन्हित किया गया था, जहां बच्चों का टीकाकरण अधूरा था या फिर वे टीकाकरण से वंचित थे। इनमें से 82 जिले मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के थे। पहले चरण में मध्य प्रदेश के 14 जिलों को शामिल किया गया था। अब 02 दिसंबर 2019 से एक बार फिर इस मिशन को शुरू किया जा रहा है। 11 बीमारियों को खत्म करने के लिए 10 टीके हैं। 90 फीसदी का लक्ष्य लेकर 43 जिलों में टीकाकरण का यह व्यापक अभियान शुरू होगा। सवाल उठना स्वाभाविक है कि पहले 14 जिले और अब 43? क्या तुलनात्मक रूप से मध्य प्रदेश और पिछड़ गया है? टीकाकरण के लिए देश में बनी स्वास्थ्य अधिकारियों की पहली बैच के अधिकारी और दो बूंद जिंदगी की जैसा नारा देकर चर्चित हुए प्रदेश के राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. संतोष कुमार शुक्ला के पास इसका जवाब आंकड़ों में है। वे कहते हैं- श्1000 वन्य ग्राम, 89 आदिवासी ब्लॉक, 1.20 लाख मजरे-टोले और 14 प्रतिशत पलायन, इतनी विषम परिस्थितियां देश के किसी और राज्य में नहीं हैं। इन्हें पहचानते हुए ही इस बार 90 फीसदी टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, शिवपुरी, उमरिया को छोड़ दें, तो बाकी सभी जिले लक्ष्य से लगभग 10 फीसदी पीछे हैं। अब इस रिक्त स्थान को भरने की जरूरत है। वर्ष 2023 तक 09 माह से 15 साल तक के प्रदेश के सभी बच्चों में खसरा, रूबेला रोग का नामोनिशान मिटाने का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले 1978 में चेचक (स्मॉल पॉक्स), 2014 में पोलियो और 2015 में टिटनेस को निर्मूल किया गया है।
निसंदेह 10 प्रतिशत का यह रिक्त स्थान सुनने में आसान लगता है, लेकिन जमीनी तस्वीर कठोर है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि टीकाकरण में 30 प्रतिशत का सुधार लाने में 34 साल (1985 से 2019) लग गए। यहां तीन साल में 10 प्रतिशत का लक्ष्य है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इस बार इतना समय नहीं लगेगा। नवाचार और मैदानी तैयारियों के साथ इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। बाल मृत्युदर में भी अग्रणी मध्य प्रदेश को यदि अपने माथे से इसका कलंक मिटाना है तो भी यह सबसे ज्यादा जरूरी है। क्योंकि, ऐसी बीमारियां जो बाल मृत्युदर को बढ़ाती हैं, उनमें से अधिकांश टीकाकरण से ठीक हो सकती हैं। मध्य प्रदेश में लक्ष्य आसान नहीं है, तो प्रयास भी सामान्य नहीं होना चाहिए। प्रयत्नों की परिभाषा लिखते ही पलायन बड़ी बाधा बनकर सामने आता है। इसीलिए, पहली बार टीकाकरण पर असर डालने वाले पलायन का आंकड़ा ऑनलाइन किया गया है। समीक्षा बैठकों में यह भी सामने आया कि मप्र के 30 से अधिक जिले दूसरे राज्यों की सीमाओं से जुड़े हुए हैं। इनके जरिए हो रहे पलायन पर नजर रखते हुए केंद्र सरकार और यूनिसेफ के साथ मिलकर संयुक्त टीकाकरण अभियान शुरू करने की योजना है। स्पष्ट है जो परिवार रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में चले जाएंगे, उनका नाम, पता वहां के स्वास्थ्य विभाग के अफसरों तक पहुंच जाएगा। इसके बाद नीचे का अमला संबंधित तक पहुंचकर टीकाकरण की प्रक्रिया पूरी कर देगा। इस व्यवस्था को उदाहरण से भी समझते हैं। रीवा में 20 लोगों का एक परिवार पलायन कर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज पहुंच गया। टीकाकरण के बाद समीक्षा करने पहुंची टीम को जब इसकी जानकारी मिली तो मोबाइल के जरिए उन्हें खोजा गया और टीम ने मौके पर पहुंचकर टीकाकरण किया। सरकारी (अ)व्यवस्थाओं और व्यवधानों के बीच कुछ अच्छे और प्रेरणादायक उदाहरण भी हैं। बड़वानी के राजपुर ब्लॉक के दानोद केंद्र की स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएनएम) हैं रीता चैहान। इनका स्वास्थ्य केंद्र पानी से घिरा हुआ है। बावजूद इसके, टीकाकरण 100 प्रतिशत है और 100 प्रतिशत प्रसव भी अस्पताल में ही होते हैं। यहां परेशानियों का हल निकालने के लिए एक देशी तरीका भी निकाला गया। गर्भवतियों के प्रसव का समय नजदीक आते ही 10 दिन पहले पोटली (जरूरी सामान) बंधवाकर रख देती हैं। ताकि, प्रसूति के समय बगैर देरी उसे अस्पताल ले जाया जा सके। इस तरह से आने-जाने में लगने वाला समय घटा और प्रसव के दौरान होने वाली मौतों की संख्या भी घट गई। अस्पताल में प्रसव होने से टीकाकरण भी हो जाता है। इस देशी तरीके की पहचान करते हुए प्रदेश सरकार ने इसे गो-किट का नाम दिया है और यह प्रस्ताव भी दिया है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए।
टीकाकरण को लेकर चल रहे विश्वव्यापी प्रयास के तहत अफ्रीका के रवांडा में, दूरस्थ इलाकों में ड्रोन से टीका पहुंचाया जा रहा है। इससे प्रेरणा लेते हुए मध्य प्रदेश के पहुंचविहीन इलाकों और वन्य ग्रामों के 80 किमी क्षेत्र में भी ड्रोन की मदद से अभियान को गति देने की योजना है। पहली बार मलेरिया का टीका अफ्रीकी देश मलावी में प्रयोग में आ चुका है। इस जानलेवा बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए पिछले 30 साल से शोध चल रहा था। यह टीका पांच महीने से दो साल तक के बच्चों के लिए विकसित किया गया है। यदि यह सफल होता है तो मध्य प्रदेश के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी होगा, क्योंकि प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा जिले इससे बुरी तरह प्रभावित हैं। इसमें भी मंडला की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार करीब 610 मलेरियाग्रस्त गांव के साथ यह जिला विश्व में पहले स्थान पर है।फिलहाल तो उम्मीद ही की जा सकती है कि शासन-प्रशासन के निर्धारित लक्ष्य पूरे हों और सुरक्षित बचपन के साथ हम स्वस्थ समाज की कल्पना को साकार होता देख सकें।
दहकती खबरें न्यूज चैनल व समाचार पत्र सम्पादक- सिराज अहमद सह सम्पादक - इम्तियाज अहमद समाचार पत्र का संक्षिप्त विवरण दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र राजधानी लखनऊ से प्रकाशित होता है । दैनिक दहकती खबरें समाचार पत्र भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त समाचार पत्र एवं उक्त समाचार पत्र का ही यह न्यूज़ पोर्टल है । निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं या हमें ईमेल कर सकते हैं - 9044777902, 9369491542 dahaktikhabrain2011@gmail.com
बुधवार, 20 नवंबर 2019
गंभीर बीमारियों की नजर से बचें, टीका जरूर लगवाएं
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